मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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एक गजल -
कुर्सी
(अरुण कुमार निगम)
कुछ काम नहीं करता, हर बार मिली कुर्सी
मंत्री का भतीजा है, उपहार मिली कुर्सी...
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बचपने वाला बचपन ......
बचपन ....
ये ऐसा शब्द और भाव है कि हम चाहे किसी भी उम्र या मनःस्थिति में हों ,एक बड़ी ही प्यारी सी या कह लें कि मासूम सी मुस्कान लहरा ही जाती है | बच्चे को अपने में ही मगन हाथ पैर चला चला विभिन्न भंगिमाएं बना बना कर खेलते देखते ही ,मन अपनी सारी उलझनें भूल कर उसके साथ ही शिशुवत उत्फुल्ल हो उठता है....
झरोख़ा पर
निवेदिता श्रीवास्तव
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निमंत्रण
* भ्रमण के लिये बाहर न जा पाऊँ तो साँझ घिरे ,अपने ही बैकयार्ड में टहलना अच्छा लगता है . ड्राइव वे तक, मज़े से सवा-सौ कदम हो जाते है दोनो ओर से ढाई सौ - काफ़ी है कुछ चक्कर लगाने के लिये.धुँधळका छाया होता है ,ऊपर आकाश में तारे ,या चाँद के बढ़ते-घटते टुकड़े . हाँ ,कभी पूरा चाँद या अक्सर ग़ायब भी. चारों ओर हिलते हुये पेड़, क्यारियों के विविधवर्णी फूलों के रंग ईषत् श्यामता लपेटे और मोहक हो उठते हैं. कहीं कोई भूला-भटका पंछी बोल जाता है...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर चर्चा, मेरी पोस्ट को स्थान् देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अंदाज़ की रचना कथ्य भी मनभावन।
जवाब देंहटाएंबचपन-यौवन साथ न देता, कभी किसी का जीवन भर
सिर्फ बुढ़ापे के ही संग में, इस जीवन की शाम ढली
करता दग़ा हमेशा है ये, नहीं “रूप” पर जाना तुम
लोग हमेशा से कहते हैं, होता है ये हुस्न छली
सुन्दर चर्चा, मेरी पोस्ट को स्थान् देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। शुभकामनाएं पुस्तक विमोचन समारोह के लिये।
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आज के विराट आयोजन की सफलता हेतु अग्रिम शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के सुंदर सूत्र। मेरी गजल शामिल करने हेतु हृदय से आभार।
सुन्दर संयोजन , हार्दिक बधाई और आभार !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा
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