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शुक्रवार, जुलाई 20, 2018

"दिशाहीन राजनीति" (चर्चा अंक-3038)

मित्रों! 
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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काले बदरा और पहाड़ का मन्दिर 

आँखों के सामने होती है कई चीजें लेकिन कभी नजर नहीं पड़ती तो कभी दिखायी नहीं देती! कल ऐसा ही हुआ, शाम को आदतन घूमने निकले। मौसम खतरनाक हो रहा था, सारा आकाश गहरे-काले बादलों से अटा पड़ा था। बादलों का आकर्षण ही हमें घूमने पर मजबूर कर रहा था इसलिये निगाहें आकाश की ओर ही थीं। काले बादलों के समन्दर के नीचे पहाड़ियां चमक रही थीं और एक पहाड़ी पर बना नीमज माता का मन्दिर भी। कभी ध्यान ही नहीं गया और ना कभी दिखायी दिया कि यहाँ से नीमज माता का मन्दिर भी दिखायी देता है! दूसरे पहाड़ को देखा, वहाँ भी बन रहे निर्माण दिखायी दिये... 
smt. Ajit Gupta 
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संजू --  

एक बड़े लेकिन शरीफ बाप के  

बिगड़े बेटे की  

दर्दभरी कहानी --- 

पहले हमने सोचा कि ये फिल्म पहले ही बहुत कमा चुकी है, इसलिए क्या फर्क पड़ता है !  फिर ना ना करते देख ही ली।  हालाँकि देखकर अच्छा भी लगा और कुछ बुरा भी। फिल्म के पहले भाग में संजय दत्त की जिंदगी की डार्क साइड दिखाई गई है जिसे देखकर बहुत दुःख होता है कि किस तरह अच्छे घरों और बड़े मां बाप के बेटे बिगड़ जाते हैं। हालाँकि इसमें अक्सर उनका कोई कसूर नहीं होता। लेकिन... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
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कोई आग दिल में जलाए रखना 

Sahitya Surbhi पर 
Dilbag Virk 
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मन का भूगोल !!! 

SADA 
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578. उनकी निशानी... 

आज भी रखी हैं  
बहुत सहेज कर  
अतीत की कुछ यादें  
कुछ निशानियाँ  
कुछ सामान  
टेबल, कुर्सी, पलंग, बक्सा  
फूल पैंट, बुशर्ट और घड़ी  
टीन की पेटी   
एक पुराना बैग  
जिसमें कई जगह मरम्मत है  
और एक डायरी  
जिसमें काफ़ी कुछ है... 
डॉ. जेन्नी शबनम 
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सूना री हिंडोला 


Sudhinama पर 
sadhana vaid 
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हलाला बनाम बलात्कार 

पिता समान ससुर से सेक्स की बात को 
मजहब के आड़ में हलाला बता सही ठहराते हो 
हो शैतान और तुम मुल्ले-मौलवी कहलाते हो 
और हलाला रूपी बलात्कार का विरोध करने वाली 
एक महिला से भी डर जाते हो 
हद तो यह कि उसे शरीया का हवाला देकर 
सड़े हुए अपने धर्म से निकालने का फतवा सुनाते हो 
और तो और इन शैतानों के साथ देने वाले 
खामोश रहकर जो मुस्कुराते हो 
तुम भी क्यों जरा नहीं लजाते हो.. 
चौथाखंभा पर Arun Sathi 
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देशवा बचाके रख भईया 

नमस्कार, स्वागत है आप सभी का यूट्यूब चैनल "मेरे मन की" पर| "मेरे मन की" में हम आपके लिए लाये हैं कवितायेँ , ग़ज़लें, कहानियां और शायरी| आज हम लेकर आये है कवियत्री रेखा जी का भोजपुरी गीत  
"देशवा बचाके रख भईया"  
आप अपनी रचनाओं का यहाँ प्रसारण करा सकते हैं और रचनाओं का आनंद ले सकते हैं... 
Mere Man Kee पर 
Rishabh Shukla 
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ऐसी आंधी तूफानों..... 

ऐसी आंधी तूफानों को पहले भी हमने देखा है,  
जहां से आते थे तूफां उस जड़ को ही उखाड़ फेंका है... 
kamlesh chander verma  
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ये तेज़ाबी बारिशें, 

बिजली घर की राख ,  

एक दिन होगा भू- पटल, 

वारणावर्त की लाख। 

Virendra Kumar Sharma  
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कहीं मन रीता न रह जाये..... 

निधि सक्सेना 

मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal 
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क्वांटम फिज़िक्स और वेदांत फिलॉसफी :  

सलिल समाधिया का शोध आलेख 

गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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कार्टून :- TRP 

7 टिप्‍पणियां:

  1. भारत के विभाजन से पूर्व अखंड भारत में रेलवे स्टेशनों पर भले' हिन्दू पानी मुस्लिम पानी 'प्याऊ (पौशाला )पर ज़रूर मिलता था लेकिन यह किसी साम्प्रदायिक विद्वेष का प्रतीक नहीं था।

    विभाजन के बाद के भारत में अल्प संख्याक राजनीति बहुत काल तक पूजती रही। एक दिन घड़ा भरा और भारत धर्मी समाज खुलकर सामने आ गया।

    भारत में छः सम्प्रदाय थे जो सनातन विचार धारा की रीढ़ थे -षडदर्शन। सम्प्रदाय ही होते कहलाते थे द्वैत और अद्वैत ,विशिष्ठ -अद्वैत ,द्वैत -अद्वैत वादी। वैमनस्य हिन्दू मुस्लिम सम्प्रदायों के बीच नेहरुवियन राजनीति ने बोया आखिर उसकी फसल कब तक काटी जा सकती थी। कांग्रेस का सफाया हो गया। देश हित में इनकी संख्या लोकसभा में सिमट कर ४४ सांसदों पे तिकी हुई है २०१९ में यह चार आदमियों की पार्टी रह जायेगी -नेहरू का उच्छिष्ट होगा यह।

    बेहतरीन समालोचना।

    सन्दर्भ :




    हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी






    जयपुर. धर्म केप्रति निष्ठा होनेऔर साम्प्रदायिकहोने में बहुत अंतरहै. किसी भी धर्मको मानने वालाअपने धार्मिकविश्वासों पर अडिगरहते हुए जनहितमें काम कर सकताहै. लेकिन साम्प्रदायिक व्यक्ति या समूहों जो धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं वे जनविरोधी काम करते हैं. सुप्रसिद्धकथाकार असग़र वजाहत ने अपनी नयी पुस्तक 'हिन्दू पानी - मुस्लिम पानी' के लोकार्पण समारोह मेंकहा कि राजनीति ने जिस प्रकार से धर्म को इस्तेमाल किया है उससे साम्प्रदायिकता बढी है. दूसरी ओर शिक्षा औरजागरूकता के प्रति देश के नेताओं को जो चिन्ता होनी चाहिये थी वो रही नहीं. क्योंकि उन्हें धर्मांधता को फैलाना हीहितकर लगा.

    बाबा हिरदाराम पुस्तक सेवा समिति द्वारा आयोजित समारोह में वरिष्ठ कथाकार और लघु पत्रिका 'अक्सर' केसम्पादक हेतु भारद्वाज ने भारत की सामासिक संस्कृति की गहराई को रेखांकित करते हुए कहा कि आजसाहित्य के समक्ष इस सामासिक संस्कृति को मजबूत करने का दायित्व आ गया है.



    आयोजन में कथाकार भगवान अटलानी ने साहित्यऔर संस्कृति के सम्बन्ध को अटूट बताते हुए भाईचारे कीआवश्यकता बताई. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.पल्लव ने समारोह में असग़र वजाहत के रचनात्मक अवदान परअपने वक्तव्य में कहा कि पांच भिन्न भिन्न विधाओं में प्रथमश्रेणी की यादगार कृतियां लिखने वाले असग़र वजाहत कालेखन हमारी भाषा और संस्कृति का गौरव बढ़ाने वाला है. उन्होंने वजाहत के हाल में प्रकाशित कहानी संग्रह'भीड़तंत्र' का विशेष उल्लेख करते हुए संग्रह की कहानी'शिक्षा के नुकसान' का उल्लेख भी किया. इससे पहले राजस्थानविश्वविद्यालय की प्राध्यापिका प्रियंका गर्ग ने विमोचित होनेवाली कृति पर एक परिचयात्मक आलेख प्रस्तुत किया. उन्होंनेबताया कि इस संकलन में असग़र वजाहत की साम्प्रदायिकसद्भाव विषयक श्रेष्ठ कहानियां तो हैं ही, वैचारिक पृष्ठभूमि केरूप में उनके छह महत्वपूर्ण लेख भी संकलित हैं, जिनको साथरखकर पढ़ने से इन कहानियों के नए अर्थ खुलते हैं.

    समिति के उपाध्यक्ष डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने समिति के क्रियाकलाप का परिचय देते हुए बताया कि ‘हिंदू पानी-मुस्लिम पानी’ शीर्षक वाले इस संकलन का प्रकाशन बाबा हिरदाराम पुस्तक सेवा समिति ने किया है. समिति काप्रयास बहुत कम मूल्य पर उच्च गुणवत्ता वाली पुस्तकें प्रकाशित कर पुस्तक संस्कृति को प्रोत्साहित करना है,इसीलिए लगभग 150 पृष्ठों के इस संकलन का मूल्य भी मात्र तीस रुपये रखा गया है. समारोह का संचालन युवारचनाकार चित्रेश रिझवानी ने किया.

    समारोह का एक अतिरिक्त आकर्षण यह रहा कि इसे प्रो. असग़र वजाहत के जन्म दिन की पूर्व संध्या के रूप में भीआयोजित किया गया. इस अवसर पर समिति के सचिव गजेंद्र रिझवानी ने सभी की तरफ से असग़र साहब को जन्मदिन को शुभ कामनाएं दीं और केक भी काटा गया.


    अंत में समिति के अध्यक्ष आसनदास नेभनानी ने आभार प्रदर्शित किया.आयोजन में बड़ी संख्या में लेखक-कवि, साहित्य प्रेमी और पत्रकारउपस्थित थे.
    __________________________________
    दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
    dpagrawal24@gmail.com

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  2. गागर में सागर भरे राधे नागरी कहलाये ,

    नेहा का हर पग धरे पग पग राह दिखाए।

    'माँ की नज़र' (राधा तिवारी राधे गोपाल )माँ सा सारल्य लिए आई। आल इन वन है माँ। कुलमिलाकर इस बार का चर्चा मंच नए क्षितिज आंजता है -बादल पर शास्त्री जी -

    उच्चारण पर
    रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
    --
    ग़ज़ल
    “रूप हमें दिखलाते हैं"

    उच्चारण
    देर तक अपना असर बनाये रहती है।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बेहतरीन लिंक्स उम्दा प्रस्तुतिकरण

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  4. सुन्दर सार्थक सूत्र ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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