मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बाल कविता
"पंछी"
( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
नभ में सूरज है आता।
जाने कहाँ चन्द्र छिप जाता।
पंछी छोड़ घोसलें आते।
नभ में उड़ कर खुश हो जाते...
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----- ॥ दोहा-पद २० ॥ -----
----- ॥ गीतिका ॥ -----
हरिहरि हरिअ पौढ़इयो, जी मोरे ललना को पलन में.,
बल बल भुज बलि जइयो, जी मोरे ललना को पलन में.,
बिढ़वन मंजुल मंजि मंजीरी,
कुञ्ज निकुंजनु जइयो, जइयो जी मधुकरी केरे बन में.....
NEET-NEET पर Neetu Singhal
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शिकायत थी जिंदगी से ......
शिकायत थी जिंदगी से कभी कोई हमनवां नहीं मिलता ....
आज सोचती हूँ ( तो ) समझती हूँ कि मिलता है ,
और अक्सर ही मिलता है ....
बस कभी उनको तो कभी हमको समझ नही आता ....
दोनों समझ सकें बस वो लम्हा नहीं मिलता .....
निवेदिता
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव
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बर्लिन में भी
‘नमूने’
मिल ही गए
*‘बर्लिन से बब्बू को’ -
चौथा पत्र:
चौथा हिस्सा*
आज दिन में हम लोग खरीददारी के लिये बाजार में गए। खरीददारी क्या करनी थी, एक रस्म अदाई मात्र थी। जो कुछ थोड़े पैसे हमारी जेबों में थे, उनसे क्या लिया जा सकता था? कुछ भी तो नहीं। पर टी. वी. टॉवर के पास बना हुआ बर्लिन का मुख्य बाजार “सेन्ट्रम” अपने आप में एक विशालतम बाजार है। मेरा ऐसा अनुमान है कि इस बाजार में प्रतिदिन नहीं नहीं तो भी एक या डेढ़ करोड़ रुपयों का सौदा बिकता होता। अलग-अलग मंजिलों पर चित्रों द्वारा उन सभी चीजों के संकेत कर दिये गये हैं जो कि आप वहाँ खरीद सकते हैं। काउण्टरों पर सारा काम लड़कियाँ देखती हैं....
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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ग़ाफ़िल हूँ मुझको देखा ओ भाला करे कोई
गर कर सके तो क्यूँ न उजाला करे कोई
लेकिन ये क्या के ख़ुद का रू काला करे कोई
ले ले कहाँ है यार किसी भी लुगत में अब
सो चाहिए के अब तो न ला ला करे कोई...
लेकिन ये क्या के ख़ुद का रू काला करे कोई
ले ले कहाँ है यार किसी भी लुगत में अब
सो चाहिए के अब तो न ला ला करे कोई...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण लिंक प्रस्तुत करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
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