सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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ग़ज़ल
"राधे ख्यालों में खोने लगी है"
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फसल धान की
फसल धान की मन को भाई
मनभावन सर्दी अब आई
हरी हरी है सभी दिशाएं
लहर लहर फसलें लहराई...
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दोहे
"रहा जगत में काम"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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निशान किये कराये के
कहीं दिखाये नहीं जाते हैं
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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कोई मीरा अभी ये कहाँ जान पायी हैं...
dr.zafar
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नायाब
सहर ने एक नायाब शब्बाब इख्तियार कर लिया
रूहानियत आफरीन अकदित हो उठ आयी
खुल्द खुलूस तस्कीन से जो जब तलक महरूम थी
आज मुख़्तलिफ़ बन मय्सर हो आयी
अमादा हो गयी मानो जमाल की अकीदत
लिहाज़ लहज़ा वसल जैसे एहतिराम कर आयी ...
MANOJ KAYAL
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समीक्षा किसी और देश में
किसी और देश में विनय कुमार जी का लघुकथा कहानी संग्रह है जिसमे छोटी बड़ी कई कहानियाँ शामिल हैं। संग्रह की पहली कहानी शीर्षक कहानी 'किसी और देश में ' विदेशों की मंहगी पढाई कर्ज को उतारने के बाद बच्चों का पैसों की चकाचौंध के लिए विदेशों में बस जाने की मार्मिक कथा है। यह कथा पीछे असहाय माता पिता की पीड़ा छोड़ जाती है।
लड़कियाँ सबके लिए सहज ही एक ममत्व भाव सहेजे होती हैं और इसी भाव को व्यक्त करती कथा है बेटियाँ जो अनायास आँखें नम कर देती है...
कासे कहूँ? पर
kavita verma
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ले स्नेह तूलिका -
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कद्दू में गुण बहुत हैं
पर
Virendra Kumar Sharma
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दृष्टि और रंगों की गाथा.....
सुमन रेणु
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
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अपने लिए जिए तो क्या जिएं
Digvijay Agrawal at
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शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है
हवा में ठंडक है शायद गांव में कांस फूला है
आज धूप का मिजाज़ किसी प्रेमिका सा है
जो बार-बार छत पर आती जाती है इंतजारे इश्क में ।
बाहर हल्का शोर है लेकिन भीतर शून्य है।
ये दिल्ली शहर है
जहां अक्सर इंसान शून्य में ही रहता है
मानसिक शून्यता,वैचारिक शून्यता...
Dr Kiran Mishra at
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वह चंचल चित्रकार !
Meena Sharma at
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...यक़ीनन हम इंतज़ार में हैं
#Ye Mohabbatein at
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ये चर्चा भी बहुत खूब हैं।
आभार।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण संकलन सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकल
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
फसल धान की मन को भाई
जवाब देंहटाएंमनभावन सर्दी अब आई
खेतों में खुलकर लहराई ,
मौसम ने जब ली अंगड़ाई ,
जोबनिया खुद से शरमाई।
राधे तिवारी की सुंदर प्रस्तुति ,बधाई
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रखना सोच-विचार कर, लोगों से अनुबन्ध।
जवाब देंहटाएंकच्चे धागे की तरह, होते हैं सम्बन्ध।।
उपनिवेश का आदमी, बन बैठा उपवेश्य।
खाना-पीना-खेलना, अब उसका उद्देश्य।।
दाँव-पेंच में तो नहीं, होता कोई दक्ष।
पारदर्शिता से रखो, न्यायालय में पक्ष।।
पहले जैसा तो नहीं, रहा जगत में काम।
काम-काम में हो रहा, मानव अब बदनाम।।
बदल गयीं है नीतियाँ, बदल गये अब ढंग।
देख मनुज का आचरण, गिरगिट भी है दंग।।
बहुत सुन्दर अति -उत्कृष्ट रचना शास्त्री जी की :
शिव भक्ति ने देखिये ,बदले कितने रंग ,
राहुल को चढ़ने लगी बिना पिए ही भंग।
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार राधा जी 'उलूक' के सूत्र को भी स्थान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय राधाजी, चर्चामंच के सुंदर संकलन में मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर आभार !!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय राधा जी -- सादर आभार इस प्रतिष्ठित मंच पर मेरी रचना को सजा ने लिए | सभी रचनाकारों और पाठकों को सस्नेह आभार जिन्होंने मेरे ब्लॉग पर जाकर मेरी रचना का मान बढ़ाया | सादर -
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