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रविवार, अक्तूबर 21, 2018

"कल-कल शब्द निनाद" (चर्चा अंक-3131)

मित्रों!  
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।  
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  
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बेवजह 


कहाँ माँगे थे चाँद और सितारे कभी  
तुम यूँ ही हमसे नज़रें चुराते रहे !

न रही जब ज़ुबानी दुआ और सलाम
बेवजह ख्वाब में आते जाते रहे... 

Sudhinama पर 
sadhana vaid 
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सुन चिड़े हो सावधान 

सुन चिड़े हो सावधान,
बदल गया है अब विधान।
हम दोनों हैं अनुगामी।
नहीं हो तुम मेरे स्वामी।
तुम मुझको नहीं  टोक सकोगे,
अब नहीं मुझको रोक सकोगे... 
Jayanti Prasad Sharma 
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----- ॥ दोहा-द्वादश ८ ॥ ----- 

हरि मेलिते खेवटिया छाँड़ा नहीँ सुभाए |  
जीउ हते हिंसा करे दूजे कवन उपाए ||... 
NEET-NEET पर 
Neetu Singhal  
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नदी, उदासी, इश्क 

Pratibha Katiyar  
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बीत गई सो बात गई,  

नहीं वह   

Metto  

बन जाती है 

Virendra Kumar Sharma 
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आज दशहरा है.....  

55 डेसिबल ध्वनि और  

मदिरापान का त्योहार 

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शब्द...  

राजेन्द्र जोशी 

yashoda Agrawal  
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9 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा।
    दोहे का संदेश भी बहुत पसंद आया
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा। चर्चा मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तम मंच ,उत्तम चर्चा आदरणीय श्री मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आपका आभारी हु

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्र आज के चर्चामंच में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर रविवारीय चर्चा।मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

    जवाब देंहटाएं

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