“रूप”-रंग पर गर्व न करना, नश्वर काया, नश्वर माया। बूढ़ा बरगद क्लान्त पथिक को, देता हरदम शीतल छाया। वाह ! लाज़वाब मरबे -हवा क्या कहने है तर्ज़े बयाँ के : झूठे रिश्ते झूठी काया , सबको माया ने भरमाया रोवे तरह दिन तक तिरिया फ़िर एक नया बटेऊ आया , तिरिया को उसने बहकाया , माया को कोई समझ न पाया। blog.scientificworld.in vaahgurujio.blogspot.com nanakjio.blogspot.com veerujianand.blogspot.com
वाह ! बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सजी आज की चर्चा ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे ! वैसे आज ब्लॉग पर सूचना नहीं थी ! कदाचित स्पैम में चली गयी होगी ! पुन: आभार आपका !
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सुप्रभात,
जवाब देंहटाएंसुबह की पावन बेला के साथ ये रंगभरी चर्चा अछि लगी।रचनाये बहुत अच्छी हैं।मुझे भी स्थान देने के लिए शुक्रिया।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं“रूप”-रंग पर गर्व न करना,
जवाब देंहटाएंनश्वर काया, नश्वर माया।
बूढ़ा बरगद क्लान्त पथिक को,
देता हरदम शीतल छाया।
वाह ! लाज़वाब मरबे -हवा क्या कहने है तर्ज़े बयाँ के :
झूठे रिश्ते झूठी काया ,
सबको माया ने भरमाया
रोवे तरह दिन तक तिरिया
फ़िर एक नया बटेऊ आया ,
तिरिया को उसने बहकाया ,
माया को कोई समझ न पाया।
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सुन्दर चर्चा ... नए लिंक ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और उपयोगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सजी आज की चर्चा ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे ! वैसे आज ब्लॉग पर सूचना नहीं थी ! कदाचित स्पैम में चली गयी होगी ! पुन: आभार आपका !
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
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