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शुक्रवार, अक्टूबर 12, 2018

"सियासत के भिखारी" (चर्चा अंक-3122)

मित्रों! 
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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जिसने पालन किया समय का, 
उसका बेड़ा पार हो गया।
 काम सदा ही करते रहना,  
जीवन का आधार हो गया... 
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नवरात्र के व्रत और  

बदलते मौसम के बीच सन्तुलन 

जब प्रकृति हरी-भरी चुनरी ओढ़े द्वार खड़ी हो, वृक्षों, लताओं, वल्लरियों, पुष्पों एवं मंजरियों की आभा दीप्त हो रही हो, शीतल मंद सुगन्धित बयार बह रही हो, गली-मोहल्ले और चौराहे  माँ की जय-जयकारों के साथ चित्ताकर्षक प्रतिमाओं और झाँकियों से जगमगाते हुए भक्ति रस की गंगा बहा रही हो, ऐसे मनोहारी उत्सवी माहौल में भला कौन ऐसा होगा जो भक्ति और शक्ति साधना में डूबकर माँ जगदम्बे का आशीर्वाद नहीं लेना चाहेगा... 
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देवी -प्रार्थना -  

गीतिका 

करो कुछ कृपा, दींन के चौक आए  
सभी दीन इक बार,आशीष पाए | 
नहीं भक्ति, श्रद्धा, तुम्ही कुछ बताओ  
सभी संग आराधना गीत गाए... 
कालीपद "प्रसाद"  
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खुली किताब 

शिवनाथ कुमार 
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घटनाओं के समुच्चय में 

हमें कोई गुमान नहीं कि 
हमने क्या लिखा आज तक। 
कोई संताप नहीं कि 
क्या पढ़वाने को मजबूर करती हैं 
आलोचना... 
विजय गौड़  
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किसका नाम कबीर प्रवचन से  

(PART II ) 

हिन्दू मुस्लिम दोउ कस्बी ,  
एक लीन्हें माला ,एक लीन्हें तस्बी।  
एक पूरब निहारे , एक पश्चिम निहारे ,  
और धर -धर तीर, धरनी पे धारे... 
Virendra Kumar Sharma 

मुक्ति 

सामने दुकान है, दुकान के पास खड़ा है नीम का पेड़, इस पेड़ के चारों ओर बाँधा गया है चबूतरा। कल तक पेड़ और चबूतरा दोनों प्रफुल्लचित्त रहते थे कल शायद फिर प्रसन्न हों किन्तु आज उदास हैं, शायद सिर्फ यही उदास हैं अगर कोई अन्य उदास है तो वह है लेखक। क्योंकि थोड़ी देर पहले इस चबूतरे से एक लाश उठाकर ले जाई गयी है अंतिम संस्कार के लिए। आज सुबह वह मर गयी थी या आसपास वालों को लगता है कि वह आज सुबह मरी थी। जहाँ तक लेखक का प्रश्न है लेखक को लगता है वह अपने जीवन में बहुत बार मरी होगी या यूँ कहें उसके अपनों ने उसे मारा होगा, आज तो उसे मुक्ति मिल गयी... 
मेरी दुनिया पर Vimal Shukla 
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डॉक्टर सर्वज्ञ सिंह कटियार का  

यूँ चले जाना 

पद्मश्री, पद्म विभूषण .... महान वैज्ञानिक ..... कानपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति के तौर पर तमाम दूरदर्शी परिवर्तन लाने वाले डॉक्टर सर्वज्ञ सिंह कटियार का यूँ चले जाना ... हम सबसे ... हमारी सभ्यता और संस्कृति से सवाल करता है ... 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर संकलन
    सादर आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात आदरणीय

    बहुत ही सुन्दर संकलन,बेहतरीन रचनायें
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
    मेरी रचना को स्थान दिया आपका अति आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. अर्ज़ किया हे
    हम हिंदुस्थानी बचपन से ये सुन्दर संकलन,बेहतरीन रचनायें अच्छा ज्ञान पड
    कर बड़े होते ही इन्हे दिमाग से नीकाल नफरतो के कचरो में कियु फेंक देते हे

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर ज्ञानवर्धक संकलन.
    पढ़ने और चुनने के लिए हार्दिक आभार.

    जवाब देंहटाएं

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