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बुधवार, अक्टूबर 31, 2018

"मंदिर तो बना लें पर दंगों से डर लगता है" (चर्चा अंक-3141)

सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

बालकविता  

"चिड़ियारानी मुझको रोज जगाती हो"  

( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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दोहे  

"ओवरलोडिंग"  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

गाड़ी में भरना नहीं ,कभी अधिकतम भार 
मोबाइल से मत कभीचालक करना प्यार... 
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ओ हेलो !!! . . 

मी टू पर एक नज़्म 

लड़कों से" ओ हैलो!!! 
लड़की अगर हंस के बोल दी 
तो क्या समझते हो 
तुम्हारे जाल में फंस गयी ?? 
पहले डिनर फिर पिक्चर 
और फिर.....  
क्या समझते क्या हो 
तुम अपने आपको... 
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कुछ अनकही 

कुछ मुलाकातों का सिलसिला चला  
कुछ बातों का सिलसिला चला  
कुछ कदम हम साथ चले  
संग कुछ मीठे एहसास चले... 
anuradha chauhan  at  
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मीठा खट्टा 

एक मच्छर दूसरा तिलचट्टा है,
एक सिल है तो दूसरा बट्टा है... 
Vimal Shukla  
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अपना हिसाब फरेबी लिखते हैं 

ये वो लोग हैं जो बाजार खरीदते हैं।  
ना कभी हारते हैं ना कभी जीतते हैं... 
धीरेन्द्र अस्थाना  
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मिली है ज़िन्दगी तुझको.... 

कुँवर बेचैन 

Kunwarbechain.jpg
ये लफ़्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल,
अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल ।

कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर,
ग़ज़ल की बात है उसको न ऐसे टाल के चल... 
yashoda Agrawal  
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मृत्यु से बड़ी शांति कभी नही 

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चाँद पर दाग 

सब कहते चाँद में है दाग
पर मेरा सोच ऐसा नहीं
चंद्रमा पर छाया आ जाती है
वही नजर आती है जब तब 
कभी सोचती हूँ लगा है काजल का
टीका है माथे पर नजर न लग जाए
माँ ने अपने बेटे को सजाया है
सुन्दरता पर नजर न टिक पाए
तभी काला दाग लगाया है | 
Akanksha पर 
Asha Saxena  
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मंदिर तो आज बना लें 

पर दंगों से डर लगता है 

Dayanand Pandey 
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7 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद रूप चन्द्र शास्त्री जी |

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, राधा दी।

    जवाब देंहटाएं

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