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शनिवार, अक्टूबर 20, 2018

"मैं तो प्रयागराज नाम के साथ हूँ" (चर्चा अंक-3130)

मित्रों! 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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रावण ने सीताहरण को  

मुक्ति का मार्ग बनाया 

मुझे बचपन से ही रामलीला देखने का बड़ा शौक रहा है। आज भी आस-पास जहाँ भी रामलीला का मंचन होता है तो उसे देखने जरूर पहुंचती हूँ। बचपन में तो केवल एक स्वस्थ मनोरंजन के अलावा मन में बहुत कुछ समझ में आता न था, लेकिन आज रामलीला देखते हुए कई पात्रों पर मन विचार मग्न होने लगता है। रामलीला देखकर यह बात सुस्पष्ट है कि इस मृत्युलोक में जिस भी प्राणी ने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु सुनिश्चित है, चाहे वह भगवान ही क्यों न हो। एक निश्चित आयु उपरांत सबको इस लोक से गमन करना ही पड़ता है। रावण भी मृत्युलोक का वासी था, इसलिए उसने भी ब्रह्मा जी की तपस्या करके अभय रहने का वरदान तो मांगा ही साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से अपनी मुक्ति का कारण भी बता दिया... 
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 दशहरे में हम तुम्हारा पुतला फिर जलाएंगे 

 किन्तु जरा भी भयभीत न होना तुम 
 पुतला ही तो जलेगा न

jagdish kumud 
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विजयादशमी  

मुक्तक 


गुज़ारिश पर सरिता भाटिया  
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राम और रावण की आपबीती,  

रामलीला के बाद 

अब छोड़ो भी पर 

Alaknanda Singh  

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मंदिर-दर-मंदिर 

एक वही तो है
जो बदलता नही
मिलने की लाख कोशिश करने पर भी 
शिकवा नही करता
जमाने से 
संध्या आर्य  
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जरूरत और फर्ज का धर्म  

.... वह दिन और आज का दिन। सूत के कच्चे धागे ने दोनों परिवारों को ऐसा बाँधा कि 2002 की नफरत और नृशसंता शर्मिन्दा होकर उल्टे पाँवों लौट गई। सारे त्यौहार दोनों परिवार मिल कर मनाते हैं। ईद की सिवैयों के लिए केवड़े का सत् कोकिला बेन लाती हैं। होली की पापड़ियाँ महबूब भाई के यहाँ से बन कर आती हैं और मुहर्रम का सोग राणा परिवार मनाता है.... 

एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 

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मैं तो प्रयागराज नाम के साथ हूं 

को कहि सकहि प्रयाग प्रभाउ।
कलुष पुंज कुंजर मृग राउ।।
भरद्वाज मुनि अबहूं बसहिं प्रयागा।
किन्ही राम पद अति अनुरागा।।
याज्ञवल्क्य मुनि परम विवेकी।
भरद्वाज मुनि रखहि पद टेकी।।
'देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।
सागर मंज्जई सकल त्रिवेनी...  
Dayanand Pandey 

10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात आदरणीय
    सुन्दर प्रस्तुति
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये सह्रदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं तो प्रयागराज नाम के साथ हूं
    दयानन्द पांडेय जी एक गुनगुनाहर पैदा कर दी आपके इस संस्कृति पोषक लघु कलेवर आलेख ने।

    प्रयाग राज जिन तनिक न भाया ,

    कलुष भरा उनके मन काया।
    bironta05.blogspot.com
    hariomtatsat05.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. bironta05.blogspot.com
    hariomtatsat05.blogspot.com

    आलोकित हो चमन हमारा।
    हो सारे जग में उजियारा।।
    चहके प्यारे सोन चिरैया कोमल सुकुमार भावनाओं का भाव गीत शास्त्री जी की कलम से बाँचकर मन आनंदित हुआ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर चर्चा। मेरी कविता शामिल की. आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर चर्चा हमें शामिल करने हेतु हृदय से आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी पोस्ट चर्चा में शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

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