मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दशहरा और रावण दहन
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दशहरे में विजयोत्सव मनाना तो उचित है पर रावण का पुतला जलाना क्या उचित है ? पढ़िए छः मुक्तक
1. आदि काल से बुरा रावण को जलाया जाता है २८ बुराई पर सत्य की जय, यही बताया जाता है लोभ, मोह, काम, क्रोध, हिंसा, द्वेष ये बुराई हैं जलाने वाले क्या इन सबको जलाया जाता है ? २. बुराई सभी अपने अंदर हैं, उसको जलाओ २७ रावण को बदनाम कर उसका पुतला न जलाओ हर इंसान के मन भीतर छुपा है एक रावण उसे निकालो और सरेआम उसे ही जलाओ ...
कालीपद "प्रसाद
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ग़ज़ल
"नहीं हमको आती हैं ग़ज़लें बनाना"
(राधातिवारी "राधेगोपाल")
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जीने की वजह
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जीने की वजह
पहले थीं कई
अब जैसे कोई नहीं !
बगिया के रंगीन फूल,
और उनकी मखमली मुलायम पाँखुरियाँ !
फूलों पर मंडराती तितलियाँ,
और उनके रंगबिरंगे सुन्दर पंख...
Sudhinama पर
sadhana vaid
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कहीं मत जाना तुम --
कविता
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बिनसुने - मन की व्यथा --
दूर कहीं मत जाना तुम !
किसने - कब- कितना सताया -
सब कथा सुन जाना तुम...
क्षितिज पर
Renu
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चुप रहने की बारी अब हमारी है
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एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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वक़्त का आलम
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अपने पन का नक़ाब वक़्त रहते बिख़र गया,वक़्त का आलम रहा, कि वक़्त रहते सभँल गये,
हर बार कि मिन्नतों से भी वो नहीं लौटे, इंतज़ार में हम, वो दिल कहीं ओर लगा बैठें...
हर बार कि मिन्नतों से भी वो नहीं लौटे, इंतज़ार में हम, वो दिल कहीं ओर लगा बैठें...
Anita Saini
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जब जागो तभी सबेरा
आप मुर्गे की बांग से जागते होंगे, हमको तो पड़ोस की जूली जगाती है! जूली का मालिक भोर में चार बजे ही निकल जाता है मॉर्निंग वॉक पर। जूली की मालकिन अपने पति देव के जाने के बाद, गेट बाहर से उटका कर, देर तक कॉलोनी में टहलती रहती हैं और जूली बन्द गेट के भीतर से मालकिन को देख देख कूकियाती रहती है...
बेचैन आत्मा पर
देवेन्द्र पाण्डेय
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है सजर ये मेरे अपनों का...
डॉ. आलोक त्रिपाठी
बड़ा अजीब सा मंझर है
ये मेरी जिन्दगी की उलझन का
गहरी ख़ामोशी में डूबा हुआ
है सजर ये मेरे अपनों का...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार
सादर
सुन्दर चर्चा। विजयादशमी की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंरावण को हर वर्ष जलाते हैं, फिर भी हर साल पैदा हो जाता है क्यों?
जवाब देंहटाएंआदरनीय सर -- सादर प्रणाम | आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार | दूसरे सभी अंक देखे |कुछ पर टिप्पणियाँ संभव ना हो पायी पर '' एकोहम ' ब्लॉग पर जाकर अत्यंत ख़ुशी हुई और संतोष कुमार चतुर्वेदी जी की कवितायें बहुत ही सराहनीय लगी |नये ब्लॉग जगत से परिचय करवाने के लिए आपको करबद्ध आभार |
जवाब देंहटाएंदशहरे के पावन अवसर पर सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं ! आज के चर्चामंच में बहुत ही सुन्दर सूत्रों का संकलन ! मेरी दोनों पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
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