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बुधवार, अक्टूबर 03, 2018

"नहीं राम का राज" (चर्चा अंक-3113)

सुधि पाठकों!
 बुधवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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और वह गिनता रहा अपना खजाना इक तरफ 

भूँख से मरता रहा सारा ज़माना इक तरफ़ । 
और वह गिनता रहा अपना ख़ज़ाना इक तरफ़।। 
बस्तियों को आग से जब भी बचाने मैं चला । 
जल गया मेरा मुकम्मल आशियाना इक तरफ ... 
Naveen Mani Tripathi  
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एक मौसम था 

रश्मि प्रभा...  
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ज़माना बदल गया है 

Sudhinama पर 
sadhana vaid 
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थार 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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वो घर कभी मेरा भी था 

जहाँ मैं घर घर खेली 
गुड्डे गुड़ियों की बनी सहेली 
वो घर मेरा भी था 
जहाँ मैं रूठी ,इठलाई 
और ज़िद्द में हर बात मनवाई 
वो घर मेरा भी था... 
प्यार पर 
Rewa tibrewal  
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7 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, राधा दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी कहानी, 'ज़माना बदल गया है', को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार राधा जी !

    जवाब देंहटाएं

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