आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है
शास्त्री और गांधी जयंती के अवसर पर
बापू
गाँधी जयंती और हरसिंगार
मंटो : नीम का कड़वा पत्ता
शास्त्री और गांधी जयंती के अवसर पर
बापू
गाँधी जयंती और हरसिंगार
मंटो : नीम का कड़वा पत्ता
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
धन्यवाद मेरी रव्हाना शामिल करने के लिए |
जवाब देंहटाएंआज बढ़िया सजा चर्चा मंच |
सुन्दर गुरुवारीय चर्चा। आभार दिलबाग जी 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, सार्थक और संतुलित चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय दिलबाग विर्क जी।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
वक़्त को देता हूँ मौक़ा कि तोड़ डाले मुझे
जवाब देंहटाएंसीखना चाहता हूँ, टूटकर जुड़ने का हुनर।
सीख लो अभी से चलना चिलचिलाती धूप में
ग़म की वीरान राहों पर, मिलते नहीं शजर।
साहित्य सुरभि में दिल बाग़ सिंह विर्क की ग़ज़ल नै परवाज़ भर रही है समय के आकाश पर :
गम के वीराने सफर में और भी हैं तल्खियां ,
और भी रातें बकाया हौसला न हारो बशर।
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वक़्त को देता हूँ मौक़ा कि तोड़ डाले मुझे
जवाब देंहटाएंसीखना चाहता हूँ, टूटकर जुड़ने का हुनर।
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ग़म की वीरान राहों पर, मिलते नहीं शजर।
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जलने को परवाना आतुर, आशा के दीप जलाओ तो।
जवाब देंहटाएंकब से बैठा प्यासा चातुर, गगरी से जल छलकाओ तो।।
स्वाति नक्षत्र की बूँद कहाँ जो चातक को मिल पाएगी ,
अब बादल भी नकली नकली रब जाने बरखा आएगी।
और
'मास्साहब मत पकड़ो कान ',
हम पहले से ही हलकान।
बधाई शास्त्री के लेखन कर्म को नित्य प्रकाशन को।
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शानदार प्रस्तुति ,
जवाब देंहटाएंभावनाओ का ये पिटारा गज़ब का हैं
आभार