सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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मरीचिका
हम धीरे धीरे ख़त्म हो रहे थे
जैसे एक बादल बूँद बूँद बरस रहा हो
देर तक हवा में झूलने की इच्छा लिये हुए।
हम कम कम ख़्वाब देख रहे थे
मानो सारा ख़्वाब अाज ही देख लिया
तो सारी सांसें भी आज ही ख़त्म हो जायेंगी...
एक बूँद पर
Pooja Anil
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श्रुतिकीर्ति
अहा ! इन्ही खुशियों भरे पलों की प्रतीक्षा थी हम सब को ... हमारी अयोध्या के प्रत्येक कण को । दिल करता है इन पलों के प्रत्येक अंश को जी भर देखने ,संजो लेने में मेरी ये दो आँखें असमर्थ हो रही हैं ,तो बस पूरे शरीर को आँखें बना लूँ ...
झरोख़ा पर
निवेदिता श्रीवास्तव
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अब कब
565?
हमारा भारत है ना, यह 565 रियासतों से मिलकर बना है।
अंग्रेजों ने इन्हें स्वतंत्र भी कर दिया था लेकिन सरदार पटेल ने इन्हें एकता के सूत्र में बांध दिया। ये शरीर से तो एक हो गये लेकिन मन से कभी एक नहीं हो पाए। हर रियासतवासी स्वयं को श्रेष्ठ मानता है और दूसरे को निकृष्ठ। हजारों साल का द्वेष हमारे अन्दर समाया हुआ है, यह द्वेष एक प्रकार का नहीं है. इसके न जाने कितने पैर हैं...
smt. Ajit Gupta
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उलझन
उलझन सुलझी ..?
नहीं .....?
कोशिश करो ..
कर तो रहे है ,
पर ये धागे इतने उलझ गए हैं कि
सुलझ ही नहीं रहे अरे भैया ,
धीरज रखो आराम से ..
एक -एक गाँठ ..
धीरे -धीरे खोलो...
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चन्द्रकान्ता उपन्यास
अध्याय-प्रथम,
बयान-13
PBCHATURVEDI प्रसन्नवदन चतुर्वेदी
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर और संतुलित चर्चा।
जवाब देंहटाएंवाह!!पहली बार यहाँ आना हुआ ,बहुत ही खूबसूरत चर्चा ! मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्ससे सजा आज का चर्चामंच |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
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