सादर अभिवादन।
चर्चा मंच पर आदरणीय शास्त्री जी के सानिध्य में अतिथि चर्चाकार के रूप में मेरी पहली प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।
ब्लॉग जगत् में सामूहिक ब्लॉग का अब बड़ा महत्त्व स्थापित हो गया है। रचनाकार को जहाँ एक ओर प्रबुद्ध पाठक वर्ग मिलता है वहीं सुधि पाठकों को एक ही पटल पर विभिन्न प्रकार की स्तरीय रचनाओं का आस्वादन प्राप्त होता है। आजकल ऐसा देखा जा रहा है कि सामूहिक ब्लॉग एक प्रकार की प्रतियोगिता का हिस्सा बन गये हैं। स्वस्थ प्रतियोगिता हमेशा सकारात्मक एवं रचनात्मक परिणाम देती है अतः इसी उम्मीद के साथ मैं आदरणीय शास्त्री का आभार व्यक्त करता हूँ मुझे चर्चा मंच में अतिथि चर्चाकार के तौर पर आमंत्रित करने और एक बड़ी जवाबदेही सौंपने के लिये।
आइये पढ़ते हैं हाल ही में प्रकाशित हुईं कुछ ताज़ातरीन रचनाएँ-
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आज आदरणीय शास्त्री जी की जीवनसंगिनी श्रीमती अमर भारती जी का जन्मदिवस है। हमारी ओर से उन्हें जन्मदिवस की अशेष मंगलकामनाएँ।
पेश है आदरणीय शास्त्री जी की एक विशिष्ट ग़ज़ल -
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ग़ज़ल
"30 सितम्बर जन्म दिन मेरी श्रीमती"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्रस्तुत हैं नवरात्रि के पावन उत्सव पर शास्त्री जी द्वारा रचित दोहे -
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पेश-ए-नज़र है मन स्निग्ध करती एक मनोरम एहसास से गुज़रती रचना डॉ. अपर्णा त्रिपाठी जी की-
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ग़ज़ल के अशआर हमारे एहसासात से गुज़रते हुए ज़िन्दगी में नये रंग भरते हैं। पेश-ए-नज़र है डॉ. शरद सिंह जी की एक उम्दा ग़ज़ल -
वरना वो भी सुधर गया होता ( ग़ज़ल )...
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हिंदी भाषा में एक विशिष्ट विधा का स्थान लेती हैं 'कह मुकरियाँ' जिसमें कहकर मुकर जाने का भाव निहित है और एक प्रकार का विशिष्ट शिल्प होता है। आइए समझते हैं इस विधा को आदरणीया रेखा जोशी जी की एक रचना के माध्यम से -
कह मुकरियाँ
मत लो और मेरी परीक्षा
कर रही हूँ तेरी प्रतीक्षा
रहता सदा तेरा ही ध्यान
का सखि साजन, न सखि भगवान
Ocean of Bliss
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आइये वैदिक साहित्य में पृथ्वी के महत्त्व और साहित्यिक सन्दर्भों का बयाँ करती संस्कृत भाषा की स्निग्धता से ओतप्रोत करती आदरणीय गिरिजेश राव जी की इस विशिष्ट रचना का अवलोकन करते हुए भावविभोर होते हैं -
माँ - १ : द्यौ: माता पृथिवी
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कैसे-कैसे डर बसते हैं
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साहित्य-सृजन के बदलते सन्दर्भों में नयी पीढ़ी ने एक ताज़गीभरी ख़ुशबू बिखेर दी है। आइये महसूस करते हैं कविता का ताज़ा मर्म आदरणीय नीतिश तिवारी जी की इस रचना में -
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और अंत में प्रस्तुत है अनीता सैनी जी की एक रचना जो प्रकाश डालती हुई सन्देश देती है जीवन में सुर-सरगम-संगीत किस प्रकार रचे-बसे हुए हैं और सृष्टि में संगीत की व्यापकता हमारी धड़कनों को किस प्रकार आत्मविभोर करती है -
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आज बस यहीं तक।
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
सादर।
रवीन्द्र सिंह यादव
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