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मंगलवार, सितंबर 24, 2019

"बदल गया है काल" (चर्चा अंक- 3468)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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बेटी-दिवस 

कल बेटी दिवस था. कल बेटियों की शान में कसीदे पढ़े गए होंगे, उन्हें घर की रौनक बताया गया होगा. सोशल मीडिया में उन पर गीतों, कविताओं और आलेखों की भरमार रही होगी. स्चूलों और कॉलेजों में उन पर भाषण भी दिए गए होंगे.आगे भी बेटी-दिवस पर ऐसा ही होता रहेगा. साल में एक दिन बेटी का गुणगान करने की नौटंकी चलेगी, बाक़ी 364 दिन उसे ख़ुद को उपेक्षा, दमन, शोषण और लिंग-भेद से बचाने के लिए संघर्ष करना होगा... 
गोपेश मोहन जैसवाल 
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लघु अंकन . 

मु्क्त छंद सा जीवन ,  
अपनी लय में लीन ,  
तटों में बहता रहे स्वच्छंद .  
न दोहा, न चौपाई -  
बद्ध कुंड हैं जल के.  
कुंडलिया छप्पय... 
प्रतिभा सक्सेना 
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मकर जाल 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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ग़ज़ल...  

बेटी -  

डॉ. वर्षा सिंह 

इक करिश्मा-सा हर इक बार दिखाती बेटी।
धूप  में छांह  का अहसास कराती  बेटी।

वक़्त के साथ में  चलने का हुनर आता है
वक़्त के हाथ से  इक लम्हा चुराती बेटी... 
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बेबसी 

ये कतई ज़रूरी नहीं के,
मेरी नज़र जो देख रही है, तुझे दिखाई दे,
मगर अब भी गर राबता है मुझसे तो,
मेरी आखों में जो डर है, वो तो तुझे दिखाई दे.... 
Anjana Dayal de Prewitt 
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सजदे 

मन के पाखी पर Sweta sinha  
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7 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति 👌
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति सुंदर लिंक चयन।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर विविधतापूर्ण रचनाओं से सजी प्रस्तुति.
    बधाई.

    जवाब देंहटाएं

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