मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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एक व्यंग्य :
हिंदी पखवारा और मुख्य अतिथि
अरे भाई मिश्रा जी ! कहाँ भागे जा रहे हो ? " ---आफिस की सीढ़ियों पर मिश्रा जी टकरा गए ’भई पाठक ! तुम में यही बुरी आदत है है । प्रथमग्रासे मच्छिका पात:। तुम्हें मालूम नहीं कि आज से ’हिन्दी पखवारा" शुरू हो रहा है । मालूम नहीं कि सरकारी विभाग में हिन्दी पखवारा का क्या महत्व है ...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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लघुकथा समाचार |
लघुकथाओं में बड़ी बात |
दैनिक ट्रिब्यून | 01 Sep 2019 |
मनमोहन गुप्ता मोनी
Chandresh
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सहज हुए से मिले अविनाशी
जीवन जितना सरल है उतना ही जटिल भी. जिसने यह राज समझ लिया वह सरलता और जटिलता दोनों से ऊपर उठ जाता है. जिस क्षण में जीवन जैसा मिलता है, उसे वह वैसा ही स्वीकार करता है. वन में जहरीले वृक्ष भी हैं और रसीले भी, गुलाब में कंटक भी हैं और फूल भी, यदि हम एक को स्वीकारते हैं और दूसरे को अस्वीकारते हैं तो मन सदा एक संघर्ष की स्थिति में ही बना रहता है...
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प्रश्नोत्तर के घेरे में ज़िन्दगी ....
हर साँस बस एक सवाल पूछती हैज़िन्दगी तू ऐसे चुप सी ज़िंदा क्यों है ?
क्या साँसों का चलना ही है ज़िन्दगी
हर कदम लडखडाती अटकती
मोच खाए पाँव घसीटती है ज़िन्दगी...
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चुनाव
आईने के सामने अभ्यास चल रहा है
कैसे छिपाना है चेहरे का ताव ।
कैसे लाना है सेवक का भाव ।
कैसे बदला जाए बोलने का ढंग ।
कैसे चढ़ाया जाए हमदर्दी का रंग...
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क्यूँ ‼
मुझपे ..!
क्यूँ ? मुझपे उसको यकीं आता नही ।
यूँ ही बेवज़ह कोई ,अश्क़ बहाता नहीं...
के सी वर्मा
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं एक से बढ़कर एक।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
सुंदर सूत्रों से सजा आज का अंक मेरी रचना को शामिल टरने के लिए बहुत-बहुत आभार सर।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर मेरा आर्टिकल प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, पठनीय रचनाओं का सुंदर संकलन..आभार !
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