मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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कभी खरीदने आना होता है
कभी बेचने जाना होता है
आना जाना बना कर ही
संतुलन बनाना होता है
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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मेरे शिवा का
इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव
मेरे शिवा को बचपन में कोई खिलौना पसंद ही नहीं आता था; हम जब भी उसे बाजार ले जाकर किसी खिलौने की दुकान पर अपनी पसंद का खिलौना पसंद करने को कहते तो वह पूरी दुकान में इधर-उधर घुसते हुए ढूढ़ता-फिरता, लेकिन बहुत देर बाद जब उसे उसकी पसंद की कोई चीज नहीं मिलती तो वह मुंह फुलाकर बुत बनकर आकर सामने खड़ा हो जाता। पूछने पर कि क्या हुआ, क्या हुआ, तो कुछ भी नहीं बोलता बस हाथ पकड़कर एक दुकान से दूसरी दुकान के चक्कर कटवाता रहता। जैसे ही उसे किसी दुकान पर गणेश के खिलौने या मूर्ति नजर आती तो झट उंगुली से इशारा करते हुए हाथ खींचकर ले जाता। यदि उसे उसकी पसंद के गणपति जी मिल गए तो वह खुशी से उछल-कूद करते हुए घर की ओर चल देता और यदि नहीं तो फिर एक दुकान से दूसरी दुकान खंगालने की जिद्द कर अपनी मांग पूरी करके ही दम लेता...,
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पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी ...
धूल कभी जो आँधी बन के आएगी
पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी
अक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगा
बीज नई आशा के मन में बोयेगा
खींच लिए जायेंगे जब अवसर साधन
सपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगी
पल दो पल फिर ...
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३७८.
ख़ुशी
मैं तुमसे बस इतना चाहता हूँ कि
तुम हमेशा ख़ुश रहो,
तुम्हारी ख़ुशी आधी-अधूरी नहीं,
पूरी हो, भरपूर हो..,
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लेख-
कौन हो तुम?
अचानक फोन की घण्टी बजती है।वहाँ से आवाज आती है। आप कौन? अपना तआरुफ़ तो कराइए। जी हम है बताइए क्या काम है। उधर से- आप व्हाट्सएप्प बहुत चलाते है, आपने फलाने ग्रुप में क्या लिखा था?कुछ देर सोचने के उपरान्त मैं- क्या लिखा हूँ ऐसा।। मै तो कभी कुछ लिखता ही नही हूँ। उधर से-आवाज आती है कि भाई तुम्हारे लिखने की वजह से मुझे समस्या हो गयी है...
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जुबां अना जमीर सब सही सलामत है
बेचा नहीं कभी कहीं
1970 में फ़िराक गोरखपुरी को ज्ञानपीठ मिला तो लोगों ने उन से पूछा कि आप अब इतने सारे पैसे का क्या करेंगे । इस के दो साल पहले इलाहाबाद में ही रहने वाले सुमित्रानंदन पंत को 1968 में ज्ञानपीठ मिल चुका था । ज्ञानपीठ से मिले पैसों से उन्हों ने एक कार ख़रीद ली थी । जिस को फ़िराक साहब मोटर कहते थे । तो लोगों ने पंत जी की कार का हवाला देते हुए फ़िराक से पूछा , इन पैसों का आप क्या करेंगे...
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हर घड़ी
मुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से
फ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से
आँगन तेरी आँखों का न हो जाये कहीं तर
डरता हूँ इसलिए मैं वफ़ा के बयान से...
ठहराव पर लोकेश नदीश
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(आलेख )
अनुकम्पन :
रायगढ़ कथक पर बनी पहली फ़िल्म
Swarajya karun
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प्यार की बातें और नारी शक्ति
अभी कुछ दिन पहले मैं मुम्बई से बैगलोर फ्लाईट से वापिस आ रहा था, तो सिक्योरिटी के बाद अपने गेट पर फ्लाईट एनाऊँसमेंट का बैठकर इंतजार कर रहा था, तभी एक दिखने में वृद्ध परंतु चुस्त जोड़ा मेरे सामने आकर बैठा, उम्र लगभग 70 वर्ष के आसपास होगी। पति पत्नी दोनों के हाथ में एक एक बैग था, पत्नी को बैठाकर, अपने बैंग पत्नी के पास ही रखकर पति महोदय कहीं चले गये, और थोड़ी देर बाद एक अखबार लेकर वापिस आये...
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सुन्दर मंगलवारीय चर्चा। आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए आज ...
शास्त्रीजी, अनेकानेक धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंएक-एक रचना के लिए.
चर्चा बनाम सम्पूर्ण पत्रिका को नित्य इतना रोचक और ज्ञानवर्धक बनाने के लिए.
और बधाई सभी के योगदान पर.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सर
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा मंच शास्त्री जी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका आभार!
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