मित्रों!
गुरुवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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‘तब वे वही चुटकुले सुना रहे थे
जिन्हें वे आंसुओं की जगह
इस्तेमाल करते आये थे.’ :
आशुतोष भारद्वाज
समालोचन पर arun dev
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लखनऊ का आम्बेडकर मेमोरियल पार्क,
एक हाथी पालना ही........
यहां तो अनगिनत हैं
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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जी , ये हिन्दी के रचनाकार हैं न जो ब्लॉग पर हिन्दी साहित्य का बखान कर रहे हैं ,यदि पता करें आप तो इनमें से अनेक के बच्चे अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में पढ़ रहे हैं। बच्चियाँ सितार नहीं गिटार बजा रही हैं।
जवाब देंहटाएंयह दोहरा चरित्र जब तक साहित्यिकारों का समाप्त नहीं होगा । अंग्रेजी की दासी बनी रहेगी हिन्दी।
मुझे तो कभी- कभी हिन्दी का ढोल बजाने वाले ऐसे भद्र जनों से न जाने क्यों घृणा सी होने लगती है।
क्षमा चाहता हूँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुतियां हार्दिक आभार आदरणीय आपकी सम्पूर्ण मंडली को
जवाब देंहटाएंसुप्रभात आदरणीय 🙏)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति,मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आप का
प्रणाम
सादर
सलोना-सा सुन्दर अंक आज का. सबको बधाई
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाओं के लिंक
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
वाह ! बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वंदे !
जवाब देंहटाएंवाह ! एक से बढ़कर एक रचनाओं के सूत्र..आभार !
जवाब देंहटाएंसशक्त समीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम शास्त्री जी, मेरे छोटे से प्रयास को मान देने के लिए और अपनी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति सुंदर लिंक चयन शानदार चर्चा अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।