मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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ह्यूस्टन का तमाशा:
इससे किसी सार्थक और
सकारात्मक परिणाम की
अपेक्षा करना बेमानी है
हेमंत कुमार झा
क्रांति स्वर पर vijai Rajbali Mathu
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माँ ...
पलट के आज फिर आ गया २५ सितम्बर ... वैस तो तू आस-पास ही होती है पर फिर भी आज के दिन तू विशेष आती है ... माँ जो है मेरी ... पिछले सात सालों में, मैं जरूर कुछ बूढा हुआ पर तू वैसे ही है जैसी छोड़ के गई थी ... कुछ लिखना तो बस बहाना है मिल बैठ के तेरी बातें करने का ... तेरी बातों को याद करने का ...
सारी सारी रात नहीं फिर सोई है
पीट के मुझको खुद भी अम्मा रोई है
गुस्से में भी मुझसे प्यार झलकता था
तेरे जैसी दुनिया में ना कोई है...
स्वप्न मेरे ...पर दिगंबर नासवा
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old school charm
मुझे यात्राओं का कोई बहुत ज्यादा मौका नहीं मिला है; पुराने ज़माने के लोगों की तरह मेरी यात्रा भी छुट्टियों में ननिहाल जाने या बहुत हुआ तो किसी और रिश्तेदार के यहां जाने तक का एक सीमित अनुभव है । पर इस सीमित यात्रा में भी जो कभी रोडवेज की बस से और कभी भारतीय रेल से की गई; उसमे कुछ जगहें ऐसी हैं कि उनको देख कर या याद कर के आप किसी और ही संसार में पहुँच जाते हैं। यह एक तरह से हमारा देसी नार्निया वाला छोटा मोटा अनुभव है...
Bhavana Lalwani
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फेसबुक के चक्कर में
ब्लॉगिंग भूल गए --
फेसबुक पर हम इतना झूल गए,
के कविता ही लिखना भूल गए।
जिसने देनी थी जीवन भर छाया ,
उस पेड़ को सींचना भूल गए...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
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गणेश चन्दा
"सोनम दरवाजे पर कौन था ?'
" माँ गणेश का चन्दा माँगने के लिए चार पाँच लड़कों का ग्रुप आया है।'
" अरे हाँ अब गणेश चतुर्थी आ रही है यानि गणेश बैठाने के दिन, अब बच्चें दरवाजे की घन्टी बजा बजा कर परेशान करते रहेंगे ।'
"आप कल जब घर पर नहीं थीं तब भी,तीन चार ग्रुप चन्दा माँगने आए थे।'
"फिर तूने उन्हें चन्दा दिया ?"
"नहीं मम्मी आप घर पर नहीं थी ,मैं किसी को जानती नहीं ... मैं ने तो दरवाजा भी नहीं खोला।'...
" माँ गणेश का चन्दा माँगने के लिए चार पाँच लड़कों का ग्रुप आया है।'
" अरे हाँ अब गणेश चतुर्थी आ रही है यानि गणेश बैठाने के दिन, अब बच्चें दरवाजे की घन्टी बजा बजा कर परेशान करते रहेंगे ।'
"आप कल जब घर पर नहीं थीं तब भी,तीन चार ग्रुप चन्दा माँगने आए थे।'
"फिर तूने उन्हें चन्दा दिया ?"
"नहीं मम्मी आप घर पर नहीं थी ,मैं किसी को जानती नहीं ... मैं ने तो दरवाजा भी नहीं खोला।'...
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मेरा देश
यही है मेरा अपना देश ,
विश्व में जिसका नाम विशेष,
धार कर विविध रूप रँग वेष,
महानायक यह भारत देश...
शिप्रा की लहरें पर प्रतिभा सक्सेना
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गुम सवाल
ज़िन्दगी जब भी सवालों में उलझी
मिल न पाया कोई माकूल जवाब
फिर ठठाकर हँस पड़ी
और गुम कर दिया सवालों को
जैसे वादियों में कोई पत्थर उछाल दे।
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बेहतरीन प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
सादर
सुन्दर प्रस्तुति जिसमें विविध रचनाओं का कौशलपूर्ण चयन. सभी रचनाकारों को बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को मान देने के लिये सादर आभार शास्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा सूत्र ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए ...
ब्लॉग सेतु बैज देख कर अच्छा लगा। सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंसाथ में रवींद्र जी का स्वागत भी।
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंबहुत बहुत सुंदर चर्चा अंक सभी पठनीय सुंदर लिंक।सभी रचनाकारों को बधाई।
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