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सोमवार, सितंबर 16, 2019

"हिन्दी को वनवास" (चर्चा अंक- 3460)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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आओ हिंदी दिवस मनाऍं 

मनोज पर करण समस्तीपुरी  
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३८०. 

कूड़ा 

अगर तुम्हें कहीं चिंगारी मिले,
तो मुझे दे देना,
बहुत सारा कूड़ा फैला है मेरे इर्द-गिर्द,
उसे जमा करना है,
जलाना है उसे... 
कविताएँ पर Onkar 
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हिंदी 

शब्द तूलिका पर श्वेता सिन्हा 
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परिचय की गाँठ 

अब प्रेम पराग,
अनुराग राग का
उन्माद ठहर चुका है...
बचे हैं कुछ दुस्साहसी
लम्हों की आहट,
मुकर जाने को तत्पर
वैरागी होता मन,
और आस पास
कनखजूरे सी
ख़ामोशी....
इतनी भी पुख़्ता नहीं होती
परिचय की गाँठ !!! 
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा 
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यादों के नाम 

लिख रहा हूँ नज़्म तेरी यादों के शाम

महकी महकी सोंधी साँसों के नाम 

सागर की कश्ती बाँहों के पास...  

उड़ रहा आँचल निकल रहा आफताब .. 

RAAGDEVRAN पर 
MANOJ KAYAL 
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अंधियारा जब फैला हो ... 

अंधियारा जब फैला हो जुगनू बन तुम आ जाना  
रपटीली डगर जीवन की बन सहारा छा जाना... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव  
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बीती रात  

हुआ सबेरा 

जयन्ती प्रसाद शर्मा 
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7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छे लिंक संजोये हैं आपने शास्त्री जी...धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. कानखजूरे सी ख़ामोशी और परिचय की गाँठ
    हिंदी को लेकर खींचातानी
    ख़बरों में सच्चाई ? सच्चाई जो सूट करती हो.
    क्योंकि सच इनका है.बाकी जो कहें झूठा है.
    पता नहीं क्रांति का अर्थ शिकायत करना और व्यवस्था को दोष देने तक ही कब सीमित हो गया. उसका क्या हुआ जो चुपचाप सुलगती है दिलों में और कहती है - ख़ुद भी कुछ कर के दिखाओ. दोष मढना आसान है. छोटा ही सही, कभी विफल भी, बदलाव लाना तुम्हारा भी काम है.
    चर्चा जारी है.हर रचना न्यारी है.
    धन्यवाद शास्त्रीजी. नमस्ते.

    जवाब देंहटाएं
  3. इस अंक में मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चामंच खूब सजा है |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं

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