स्नेहिल अभिवादन
रविवार की चर्चा में आप का हार्दिक स्वागत है|
देखिये मेरी पसन्द की कुछ रचनाओं के लिंक |
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रचते सबने देखा है,
उजड़कर मोहब्बत को
रंग लाते देखा है?
उजड़कर मोहब्बत को
रंग लाते देखा है?
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गुम दो किनारे
काश!
होता दो किनारों वाला,
मेरा आकाश!
न होता, ये असीम फैलाव,
न जन्म लेती तृष्णा
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इक वो भी दीपावली थी..
आश्रम में रहने का एक बड़ा लाभ यह हुआ है
कि मैंने वहाँ जो अनुशासित जीवन व्यतीत किया है
वह सदैव के लिए मेरी दिनचर्या बन गया है ।
व्याकुल पथिक
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याद तुम्हारी-- नवगीत
मन कंटक वन में-
याद तुम्हारी -
खिली फूल सी
जब -जब महकी
हर दुविधा -
उड़ चली धूल सी!!
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इक शाम सा हूँ मैं बौराया
ये जीवन सुबह की है धूप ,इक रात ने चुपके से बोला ,
इक शाम सा हूँ मैं बौराया , हूँ खुद पे अब आवाक सनम
इक शाम सा हूँ मैं बौराया , हूँ खुद पे अब आवाक सनम
तूने पूछा था जाते पल ,क्या दूँ तुझको ए "नील " मेरे ,
तू दर्जी है मेरे मन का , दे सपनों के पोशाक सनम
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खुशियों के पल
चाँद-चाँदनी की अनुपस्थिति में,
तारे खिलखिला रहे हैं।
कभी कभी अमावस भी होनी चाहिये।
बिलों से निकल कर चूहे- कर रहे हैं धमाचौकड़ी।
आज पूसी मौंसी घर पर नहीं है,
आओ कुछ देर हँसलें खेल लें।
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सीढियाँ एक मजदूर जब सीढियाँ बनाता है
तो सबसे पहले करता है
ढलाई उस मचान की जिससे सीढियाँ जमीन पर उतरेंगी,..!
वो ये गलती नहीं करता कि सीढ़ी का पहला पायदान बनाकर दूसरा,
फिर तीसरा, फिर चौथा बनाते हुए सीढ़ी के अंतिम पड़ाव यानि छत पर पहुँचे,..!
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दिवाली के संकल्प
संकल्प करें अब दिवाली में,
विदेशी दीप नहीं जलाएँगे।
माटी से बना देशी तेल का
दीया हम सभी जलाएँगे।
विदेशी दीप नहीं जलाएँगे।
माटी से बना देशी तेल का
दीया हम सभी जलाएँगे।
मादक , मसृण , मृदुल , महमहा
मादक , मसृण , मृदुल , महमहा ।।
तव यौवन झूमें है लहलहा ।।
जैसी कल थी तू आकर्षक ।
उससे और अधिक अब हर्षक ।
तू सुंदर , अप्सरा , परी तू ।
तव यौवन झूमें है लहलहा ।।
जैसी कल थी तू आकर्षक ।
उससे और अधिक अब हर्षक ।
तू सुंदर , अप्सरा , परी तू ।
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हर घर के स्वागत द्वार पर
छोटे-छोटे दीपों का हार है
प्रभु की स्नेहिल अनुकम्पा का
यह अनुपम उपहार है !
मैं कब तक चीखती रहूं चिल्लाती रहूं ….
ये तो अंधे हैं बहरे हैं, गूंगे हैं ।
इनकी आत्माएं मरी हुई है.
अनु की दुनिया : भावों का सफ़र
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी शनिवार, रविवार।
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आदरणीय शास्त्री जी के दोहे में ज्ञान का प्रकाश रहता है, परंतु जब तक हमारी संवेदनाएँ नहीं जगेगी, किसी भी प्रकार के प्रदूषण से मुक्ति संभव नहीं है।
जवाब देंहटाएंअनिता बहन आज भी आपने सुंदर रचनाओं से मंच को सजाया है। इन्हीं के मध्य मेरे एक संस्मरण को भी स्थान दिया है। अतः पुनः आभारी हूं आपका, धन्यवाद प्रणाम।
आगे लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।
बहुत सुन्दर और उपयोगी पठनीय लिंक।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
सुप्रभात।बेहतरीन प्रस्तुति अनीता बहन !बहुत ही सुंदर और अनोखे अंदाज में सभी रचनाओं को सजाया है आपने। मेरी छोटी-सी रचना पुष्प को अपने चर्चाअंक के गुलदस्ते में सजाया आपने ।इसके लिए सादर आभार।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं से पुष्पगुच्छ सी सजी प्रस्तुति। विविध लिंक्स के बीच मेरी रचना को मान देने के हार्दिक आभार अनीता जी ।
लाजवाब प्रस्तुति ,मेरी रचना को भी शामिल किया यहां इसके लिए आपका हार्दिक आभार अनिता जी ,नमस्कार ,शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंएक और सरस सुंदर सुगढ़ सामयिक प्रस्तुति।
बेहतरीन रचनाओं का मनोरम समागम।
व्याकुल पथिक जी की वैचारिक यात्रा से ब्लॉग संसार परिचित है। अब इस सफ़र में कुछ उत्सुकता भरे मोड़ पाठकों को निरंतरता के लिये जोड़े रखते हैं। लेखन का उद्देश्य व्यक्तिगत कुंठाओं और भड़ास से इतर जब समाजोपयोगी हो जाता है तब साहित्य में भी उसे ससम्मान स्वीकारा जाता है।
ब्लॉगिंग का क्षेत्र अब अत्यंत व्यापक हो चला है। साहित्य की मुख्यधारा में अब ब्लॉगर के सृजन को भी स्वीकार्यता मिलने लगी है। ब्लॉग अनेक उद्देश्यों को लेकर बनाये जाते हैं। साहित्यिक ब्लॉग समय के साथ प्रासंगिक बने रहते हैं। आजकल सबसे बड़ी बिडंबना ब्लॉगिंग में राजनीति की घुसपैठ है जहाँ ब्लॉगर अपने राजनीतिक रुझान के साथ तल्ख़ी से भरा लेखन कर रहे हैं जिसमें शाब्दिक-अशिष्टता और शाब्दिक-हिंसा अब सामान्यीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। मतभिन्नता स्वाभाविक मानवीय गुण है जिसका स्वस्थ परंपरा के रूप में स्वागत होना चाहिए।
आज की प्रस्तुति में विषयों की विविधता मुख्य आकर्षण है।
शानदार प्रस्तुति के लिये बधाई अनीता जी।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सहमत।
हटाएंमुझे सम्मान देने के लिये आपका आभार।
हटाएंनिश्चित ही शब्दों की मार पर ध्यान रखना चाहिए। पत्रकारिता में हमारे गुरु स्व0 रामचंद्र तिवारी जी कहते थें कि अखबार मिलने का मतलब यह नहींं है कि सीधे दनादन गोली दाग दो। हाँ, चिकोटी काटते रहो।
जी मैं भी सहमत हूं रविंद्र सर जी काफी सुंदर विचार आपने प्रस्तुत किए
हटाएंआभार अनीता जी आज की खूबसूरत प्रस्तुति में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सशक्त सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को इसमें सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंनमस्कार #अनिता सैनी जी आज मै काफी व्यस्त थी इसलिए अभी जाकर आपकी चर्चा मंच के लिंक पर आ पाई.... और हमेशा की तरह सुंदर संकलन तैयार पाया .. साहित्य की अलग-अलग गतिविधियों का सुंदर समागम जब से मैं इस लिंक पर आ रही हूं मुझे देखने को मिल रही है ....मन को बेहद शांति मिलती है जब हम अपनी तरह के पठन सामग्री को आत्मसात करते हैं.. आज की चयनित रचनाएं भी बेहद शानदार है खासकर रविंद्र यादव सर जी की #मिटकर मेहंदी को...!# रविंद्र सर जी की त्रुटियां विहीन रचनाएं पढ़ने का एक अलग ही आनंद मिलता है... वर्तमान समय मैं हवाओं में काफी अशांति फैली हुई है... लोग बाग कई तकलीफों से गुजर कर अपनी नौकरी अपने पैसे अपने भविष्य की चिंता में मरे जा रहे हैं.. ऐसे अस्त-व्यस्त माहौल में सुकून के दो पल यहां मिल जाते हैं बस इसलिए सब के ब्लॉग पर जाकर अपने विचार रख आती हूं और वहां से कुछ सीख लेती हूं... मेरी रचना भी आपने सम्मिलित किया इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक प्रिय अनिता। सभी सूत्र प्रभावी। और उस पर पाठको के विचार सोने पे सहागा। बहुत प्रयास किया पर दिन में लिख ना पाई। कल और आज मे सभी रचनाकारों को है
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें। शशि भाइ के भाव पूरण लेख पढ़कर अच्छा लगा।मेरी रचे🙏🙏🙏🙏चर्चा मंच और तुम्हारी आभारी हूँ। 🙏🙏
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स से सजा आज का चर्चा मंच |
शानदार प्रस्तुति सुंदर संकलित लिंक चयन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं उच्चस्तरिय, पठनीय।