फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, अक्टूबर 01, 2019

"तपे पीड़ा के पाँव" (चर्चा अंक- 3475)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी का
चर्चा मंच पर स्वागत है
आज सबसे पहले पढ़िए दो वर्ष पूर्व 
उनकी लिखी यह सशक्त रचना... 
--

दूब 

...छाँव  न  भी  दे सके    तो   क्या,
घात-प्रतिघात    की,
रेतीली     पगडंडी    पर,
घाम  की   तीव्र तपिश  से,
तपे     पीड़ा     के    पाँव,
मुझपर     विश्राम     पाएंगे,
दूब  को  दुलार  से  सहलायेंगे।
@रवीन्द्र  सिंह यादव 
 
Ravindra Singh Yadav 
--
--
--

मौन सुर 

मन के पाखी पर Sweta sinha  
--
--
--
--
--

नीरस जीवन 

...नासा और इसरो अभी भी चाँद की सटीक दूरी का अंदाज़ा लगाने के लिए प्रयासरत हैं पर मेरे अंदर का बच्चा कहता है कि चाँद तो हमारे घर के सामने ही है। किसी दिन कोई बड़ी सी चिड़िया आएगी और मुझे अपने पंखों पर बिठाकर चाँद तक ले जाएगी। 
Amit Mishra 'मौन'  
--

एक दि‍न...... 

रूप-अरूप पर रश्मि शर्मा  
--

चिड़िया:  

कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ? 

कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ?  
जिससे पहुँचे भाव हृदय तक,  
मैं वह गीत कहाँ से लाऊँ... 
आपका ब्लॉग पर Meena sharma 
--
--
--

काले मेघा,  

इतना तू मत पानी दे 

अब के बारिश में तो ये, कार-ए-ज़ियाँ होना ही था, 
अपनी कच्ची बस्तियों को, बे-निशाँ होना ही था, 
किस के बस में था हवा की, वहशतों को रोकना, 
बर्ग-ए-गुल को, ख़ाक, शोले को, धुआँ, होना ही था. 
मोहसिन नक़वी 
गोपेश मोहन जैसवाल 
--

घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है ... 

घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है 
हर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है      

पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध है 
रूई के तकिये, रज़ाई, चादरें    
खेस है जिसमें के माँ की गन्ध है 
ताम्बे के बर्तन, कलेंडर, फोटुएँ 
जंग लगी छर्रों की इक बन्दूक है 
घर मेरा टूटा ...  
स्वप्न मेरे ...पर दिगंबर नासवा  
--

Google Alerts 

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 
--

मैं:  

रामलीला की सती सुलोचना 

नवरात्रि मुख्यतः देवी आराधना का पर्व है। व्यक्तिगत स्तर पर और सामाजिक स्तर पर घट स्थापना हो जाती है। मुहल्ला स्तर से लेकर महानगर स्तर तक, गरबों के सतरंगी पाण्डाल तन जाते हैं। सुबह देवी आराधना से दिन शुरु होता है। दिन भर अपना काम, शाम को देवी पूजा और रात में गरबा। चौबीस घण्टों में सामान्यतः दस-बारह घण्टे व्यस्त रहनेवाला समाज सोलह-सोलह, अठारह-अठारह घण्टे व्यस्त हो जाता है। लेकिन यह पर्व केवल देवी आराधना और गरबा रास तक ही सीमित नहीं रहता। आश्विन/क्वाँर प्रतिपदा से एक सिलसिला और शुरु हो जाता है... 
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 
--
--
--

11 टिप्‍पणियां:

  1. विविधापूर्ण सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति सर।
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार आपका सर।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात आदरणीय
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,सभी रचनाकरो को हार्दिक शुभकामनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री जी की। शानदार रचनाओं का कौशलपूर्ण चयन। सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    मेरी रचना को मान देते हुए इस प्रतिष्ठित पटल पर प्रदर्शित करने के लिये सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी। आपका स्नेह और आशीर्वाद साथ रहे यही दुआ करता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. विस्तृत चर्चा सूत्र ...
    आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  6. चर्चामंच परिवार के सभी सदस्यों को पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ! माँ का आशीर्वाद सभी पर बना रहे

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सी पठनीय सामग्री के साथ सजी सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को लेने के लिए आदरणीय शास्त्रीजी और चर्चामंच का बहुत बहुत आभार। सादर।

    जवाब देंहटाएं
  8. सराहनीय प्रयास बहुत सुन्दर ब्लॉगों को संजोया गया है। हमारे लिए यह मगर्दर्शन होगा।

    जवाब देंहटाएं
  9. सराहनीय प्रयास बहुत सुन्दर ब्लॉगों को संजोया गया है। हमारे लिए यह मगर्दर्शन होगा।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई।
    बहुत सुंदर लिंको का चयन।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।