मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सभ्यता के सशंकित सागर में,
नत -नयन नैसर्गिकता की नाव,
डूबने न पाए,
सुदूर है किनारा तो क्या,
आज मांझी को,
सरलता का सुरीला संगीत सुनाओ…
हिन्दी-आभा*भारत पर
Ravindra Singh Yadav
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प्रबल प्रेम का पावन रुप
गूँगी गुड़िया
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मैं बेवफ़ा ही सही
कहानी-संग्रह इधर-उधर-दिलबाग विर्क --
खेल नीति को समझिए, क्रिकेट को कोसना छोडिए
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अंतरंग रिश्ते के दो रंग ... ( दो रचनाएँ ).
बंजारा बस्ती के बाशिंदे पर Subodh Sinha
हिन्दी-आभा*भारत पर
Ravindra Singh Yadav
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प्रबल प्रेम का पावन रुप
गूँगी गुड़िया
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मैं बेवफ़ा ही सही
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खेल नीति को समझिए, क्रिकेट को कोसना छोडिए
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अंतरंग रिश्ते के दो रंग ... ( दो रचनाएँ ).
बंजारा बस्ती के बाशिंदे पर Subodh Sinha
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हिन्दी के हिमायती बन कर,
संस्थाओं से नेह जोड़िये.. काका हाथरसी
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
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दशहरा विशेष दो लघुकथाएं |
डॉ० चंद्रेश कुमार छतलानी
लघुकथा दुनिया (Laghukatha Duniya)
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दशहरा !
हिन्दी के हिमायती बन कर,
संस्थाओं से नेह जोड़िये.. काका हाथरसी
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
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दशहरा विशेष दो लघुकथाएं |
डॉ० चंद्रेश कुमार छतलानी
लघुकथा दुनिया (Laghukatha Duniya)
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दशहरा !
दशहरा या विजयादशमी हमारे देश का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है और साथ ही इसको संस्कृति से जोड़ते हुए समाज को एक सन्देश - बुराई पर भलाई की विजय या सत्य की असत्य पर विजय जाता है। पूरे देश में कहीं विजयादशमी का सम्बन्ध सिर्फ रामायण महाकाव्य की लीला से होता है और कहीं पर इसको दुर्गा पूजा के साथ जोड़ कर देखते हैं कि दुर्गा जी के द्वारा महिषासुर का वध भी शक्ति की विजय दिखता है और दोनों का ही एक ही सन्देश जाता है… मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
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पिछले साल किसे मारा था ?
फिर रावण को मार रहे हो ! पिछले साल किसे मारा था ? देख सको तो देखो अब भी, कितने रावण घूम रहे हैं। धन-सत्ता की मदिरा पीकर, अपने मद में झूम रहे हैं… अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
पिछले साल किसे मारा था ?
फिर रावण को मार रहे हो ! पिछले साल किसे मारा था ? देख सको तो देखो अब भी, कितने रावण घूम रहे हैं। धन-सत्ता की मदिरा पीकर, अपने मद में झूम रहे हैं… अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
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सबके अपने- अपने राम।
कोई कहता है राम बनो
कोई कहता मत रावण बन ।
कोई कहता मत बुरा बन
कोई कहता कर बुरा अंत।
रावण हर एक के मन में है
हर एक के मन में बसे राम…
मान जाऊंगा..... ज़िद न करो
सबके अपने- अपने राम।
कोई कहता है राम बनो
कोई कहता मत रावण बन ।
कोई कहता मत बुरा बन
कोई कहता कर बुरा अंत।
रावण हर एक के मन में है
हर एक के मन में बसे राम…
मान जाऊंगा..... ज़िद न करो
इस प्रतिष्ठित मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिये आपका हृदय से आभार,धन्यवाद एवं प्रणाम।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात आदरणीय 🙏 )
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 🙏,शानदार रचनाएँ, सभी रचनाकरो को हार्दिक बधाई, मुझे स्थान देने के लिये सहृदय आभार आदरणीय
सादर
शास्त्रीजी धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसबके अपने-अपने राम ।
और रावण को लेकर विचार भी ।
कभी-कभी लगता है, दशहरा द्वंद का दूसरा नाम है ।
विचारोत्तेजक रचनाओं के लिए सबका आभार ।
बेहतरीन प्रस्तुति ,सभी रचनाकारों को सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविविधता लिए सुन्दर चर्चा संकलन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबढ़िया संयोजन
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात बहुत सुंदर संकलन प्रस्तुत किया आपने... बंजारा बस्ती के परिंदे और सर काका हाथरसी को पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगा
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