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शुक्रवार, अक्टूबर 11, 2019

"सुहानी न फिर चाँदनी रात होती" (चर्चा अंक- 3485)

मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सभ्यता के सशंकित सागर में,  
नत -नयन नैसर्गिकता की नाव,  
डूबने न पाए,  
सुदूर है किनारा तो क्या,  
आज मांझी को,  

नमस्ते namaste पर noopuram  
दशहरा या विजयादशमी हमारे देश का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है और साथ ही इसको संस्कृति से जोड़ते हुए समाज को एक सन्देश - बुराई पर भलाई की विजय या सत्य की असत्य पर विजय जाता है। पूरे देश में कहीं विजयादशमी का सम्बन्ध सिर्फ रामायण महाकाव्य की लीला से होता है और कहीं पर इसको दुर्गा पूजा के साथ जोड़ कर देखते हैं कि दुर्गा जी के द्वारा महिषासुर का वध भी शक्ति की विजय दिखता है और दोनों का ही एक ही सन्देश जाता है… मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव 

प्रभा बालसाहित्य सम्मान पर समीक्षा पांडेय  
--
पिछले साल किसे मारा था ?
फिर रावण को मार रहे हो ! पिछले साल किसे मारा था ? देख सको तो देखो अब भी, कितने रावण घूम रहे हैं। धन-सत्ता की मदिरा पीकर, अपने मद में झूम रहे हैं… अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) 

हृदय-पुष्प पर राकेश कौशिक 
--
सबके अपने- अपने राम।
कोई कहता है राम बनो 
कोई कहता मत रावण बन । 
कोई कहता मत बुरा बन 
कोई कहता कर बुरा अंत। 
रावण हर एक के मन में है 
हर एक के मन में बसे राम… 
मान जाऊंगा..... ज़िद न करो 

11 टिप्‍पणियां:

  1. इस प्रतिष्ठित मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिये आपका हृदय से आभार,धन्यवाद एवं प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात आदरणीय 🙏 )
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 🙏,शानदार रचनाएँ, सभी रचनाकरो को हार्दिक बधाई, मुझे स्थान देने के लिये सहृदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. शास्त्रीजी धन्यवाद ।
    सबके अपने-अपने राम ।
    और रावण को लेकर विचार भी ।
    कभी-कभी लगता है, दशहरा द्वंद का दूसरा नाम है ।
    विचारोत्तेजक रचनाओं के लिए सबका आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति ,सभी रचनाकारों को सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. विविधता लिए सुन्दर चर्चा संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात बहुत सुंदर संकलन प्रस्तुत किया आपने... बंजारा बस्ती के परिंदे और सर काका हाथरसी को पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं

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