फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, अप्रैल 10, 2020

तप रे मधुर- मधुर मन ! (चर्चा अंक-3667)

सादर अभिवादन !
आज की चर्चा में आप सभी गुणीजनों का
हार्दिक स्वागत करती हूँ । 
--
तप रे मधुर-मधुर मन!
विश्व-वेदना में तप प्रतिपल,
जग-जीवन की ज्वाला में गल,
बन अकलुष, उज्ज्वल औ’ कोमल,
तप रे विधुर-विधुर मन!
कविवर सुमित्रानंदन पंत द्वारा सृजित सुप्रसिद्ध कालजयी कवितांश के साथ बढ़ते हैं आज की मंच-चर्चा की चयनित रचनाओं की ओर--
--
सुखद बिछौना सबको प्यारा लगता है
यह तो दुनिया भर से न्यारा लगता है

जब पूनम का चाँद झाँकता है नभ से
उपवन का कोना उजियारा लगता है

सुमनों की मुस्कान भुला देती दुखड़े
खिलता गुलशन बहुत दुलारा लगता है
***
एक कहानी है, जो एक जेन गुरु ने अपने शिष्यों को सुनाई। ये कहानी सुनाकर उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा था “बताओ, इस कहानी में गलत क्या है?” उनके शिष्य तो नहीं बता पाए थे, क्या आप बता पाएंगे?
***
परत
***  
मेरे मौसम में अब कोई नहीं  
न मेरे मिजाज में कोई शामिल है  
मेरे मन पर जो एक नरम परत लिपटा था  
समय की ताप से पककर  
वह अब लोहे का हो गया है। 
***
इस रास्ते को देखकर मुझे अपने स्कूल के दिनों की याद आ गयी। जब हम स्कूल में थे तो आखिरी पेपर के खत्म होने पर हम पैदल ही अपने स्कूल से घर तक आते थे। लेकिन हम स्कूल से घर सीधे सीधे सड़क से होकर नहीं आते थे बल्कि ऐसी ही पहाड़ियों से गुजरकर पहले ऊपर वाली सडक तक जाते और फिर उधर की सड़क से आगे बढ़कर ऐसी ही एक पहाड़ी से नीचे आ जाते।
***
याद करती हूँ जब भी आप को तो स्मृतियों में बेला महक उठता है आप क्यारी से बेले के फूल तोड़ कर तकिए के पास या मेज पर रख लेते थे...महकता रहता सारा दिन आपका कमरा।
आज तक ये रहस्य हम नहीं समझ पाते कि वो आपकी चादर,कपड़ों,से दिव्य महक कैसे आती थी ।
***
दृष्टि पटल से पलक उठी जब
गिरती-उठती करती वंदन ।
याद हृदय  में उन लम्हों की 
शीतल सुरभित बनती चंदन ।।
***
व्यर्थ लगे सब अर्जित साधन ऐसा आज तलक ना देखा
दहशत में है सबका जीवन ऐसा आज तलक ना देखा

धरती से मंगल तक पहुंचे पर क्या मंगल हो पाया?
खोया खोया है सबका मन ऐसा आज तलक ना देखा
***
आंसू का खारा जल पीकर
अपनी प्यास बुझाने वाली
होंठों पर मुस्कान सजाए
डलिया में दिनकर रखती हूं
मैं मुट्ठी में जुगनू भरकर सौदा सूरज से करती हूं
***
संयुक्त राष्ट्र और उसकी स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत के 21 दिन के लॉकडाउन को 'जबर्दस्त’ बताते हुए उसकी तारीफ की है. डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने इस मौके पर गरीबों के लिए आर्थिक पैकेज की भी सराहना की है ।
***
ठिगना कद । नाक-नक्श कुछ-कुछ आदिवासियों से । एकदम काले नहीं तो गोरे भी नहीं। तोंद कुछ बाहर निकलती हुई और सिर इतना छोटा कि किसी बड़े से घड़े के संकरे मुंह पर रखे कटर जैसा । नस्ल 
नामालूम । आर्य शब्द से इतना लगाव कि पहले नाम के आगे लेकिन अब पुछल्ले के रूप में भी। 
***
स्वप्न में हम सृष्टि रचते 
निज भयों को रूप देते, 
खुद सिहरते, व्यर्थ डरते 
जागकर फिर खूब हँसते !
*** 
शब्दोदधि में डूब जाओ 
मुक्ता-से शब्द ढूँढ़ लाओ 
ये घिसे-पिटे 
उबाऊ चुभते 
रसीले शब्दों ने 
मन खिन्न किया है 
***
शब्द-सृजन-16 का विषय है :-
'सैनिक'
आप इस विषय पर अपनी रचना 
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे ) तक 
चर्चामंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये 
भेज सकते हैं। 
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा अंक में 
प्रकाशित की जाएँगीं।
***
आज के लिए समापन करती हूँ ।
आप सबका दिन मंगलमय हो 🙏🙏

"मीना भारद्वाज"

10 टिप्‍पणियां:

  1. तप रे विधुर-विधुर मन!
    विश्व-वेदना में तप प्रतिपल...
    अत्यंत सुंदर और सार्थक भूमिका है मीना दी। मैं भी अपने हृदय को सदैव कुछ ऐसा ही कह समझाया करता हूँ कि अपनी वेदान को विस्तार दो, इसे औरों के प्रति संवेदना में परिवर्तित कर दो। तुम्हारे विधुर मन का तप पूर्ण हो जाएगा। तुम शुद्ध हो जाओगे, बुद्ध बन मुक्त हो जाओगे। अनंत बाँहें फैला तुम्हारा स्वागत कर रहा होगा। पृथ्वी तुम्हारी विदाई पर कहेगी - ओ मेरे लाल आजा, तुझको गले लगा लूँ।
    सत्य तो यही है मीना दी कि वेदना में ही वह शक्ति है, जो दृष्टि देती है, इस यातना से गुजर कर हम दृष्टा हो सकते हैं।
    आपकी प्रस्तुति का आकर्षण मेरे जैसे ग़ैर साहित्यकार को भी ऐसी कालजयी रचनाओं में बाँध देता है। प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर और सुगठित चर्चा।
    --
    आप सिद्धहस्त हैं इस कला में भी।
    --
    मीना भारद्वाज जी आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति। बेहतरीन रचनाओं का चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ। कविवर सुमित्रानंदन पंत जी के मनमोहक कवितांश से चर्चा को आगे बढ़ाता प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण।

    मेरी रचना इस चर्चा में शामिल करने हेतु सादर आभार आदरणीया मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. " तप रे विधुर-विधुर मन " अभी मन को तपाना ही समय की मांग हैं ,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति मीना ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर आज की चर्चा मंच सभी लिंग पर जाने का प्रयास करूंगा हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर प्रेरणादायी भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का संकलन, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर भूमिका आदरणीया दीदी. सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर. मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. सुंदर रचनाओं का संलकलन। मेरी रचना को जगह देने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।