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शनिवार, अप्रैल 18, 2020

'समय की स्लेट पर ' (चर्चा अंक-3675)

स्नेहिल अभिवादन। 

शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 
समय के गर्भ में क्या छिपा रहता है यह कोई नहीं जानता किंतु वर्तमान में जो घटित होकर भूत होता जा रहा उसके हम साक्षी हैं. निस्संदेह हम आगे चलकर सोचेंगे कि समय की स्लेट पर लिखी जा रही पल -पल की पोथी में हमारी भूमिकाएँ कितनी सार्थक रहीं। 
साहित्यकार अपने समय का सच लिपिबध्द करता हुआ उससे जुड़े विभिन्न आयामों पर अपना दृष्टिकोण सम्प्रेषित करते हुए भटकाव के बिंदुओं पर रौशनी की मशाल लिए खड़ा होता है। 
- अनीता सैनी 

आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ- 

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बुढ़ापे में याददाश्त जवाब देने लगती है.
 36 साल से भी ज़्यादा वक़्त तक इतिहास पढ़ाने वाले मुझ जैसे
 शख्स को यह भी ठीक से याद नहीं आ  रहा है
 कि दिल्ली में क़त्ले-आम 1739 में हुआ था या 1947-48 में या 1984 में या फिर -----!


रोज के
डरे हुऐ के लिये

कोई
नयी बात नहीं है
एक नया डर

**

"अरे बहुत कुछ कहना था,
कह लिए होते,"
यह सोच एकांत में रुलाती रहे
उससे पहले चलो
ढेर सारी बातें करते हैं ।
यह भाषा अलिखित सी,
मौन भी है मुखरित हुआ।
माँ के मुस्कानों में दिखता
शिशु प्रेम पल्लवित हुआ।
पुष्प खिला सुंदर, सर्वत्र आंगन में उत्कर्ष है।
माँ का शिशु की सांसों को मिला नव स्पर्श 
अनुवाद सिर्फ एक 
भाषा का दूसरी भाषा 
में नहीं होता 
अनुवाद उससे भी कहीं इतर 
और वृहद होता है
पक्षियों की चहचाहट
संग उनका फुदकना
उनकी बोली का अनुवाद है
**
दुःख आए तो,मत घबराना,
कुछ पल ही,ठहरेगा ये भी,
धैर्य धरना,मन हार न जाना,
दिल में,न पीर बसाना तुम,
आंसू आएँ,तो बह जाने दो,
रात अँधेरी फिर सुबह सुनहरी, 
ये आना-जाना लगा रहेगा
**
My Photo
मानवता में वास है  असीम सर्वोच्च शक्ति का बस संसार में अकाल है तो  केवल क़द्रदानों का... देवदूत या परियाँ कपोल कल्पित कल्पनाएँ नहीं हकीकत है ज़मीनी  जो हर पल होती है हमारे आस-पास भोर बेला में सफाई कर्मी **

चल हट जा ना झूठे

सुन तेरी बातें

हम तुझसे ही रूठे

यह झूठ बहाना है

कर प्यारी बातें

अब घर भी जाना है

** 

निराशा से आशा की ओर

मन की वीणा - कुसुम कोठारी। 

**

नवगीत'त्राहिमाममानवताबोली'

एक श्रमिक कुटी में बंधित,

भूखे बच्चों को बहलाता ।

एक श्रमिक शिविर में ठहरा,

घर जाने की आस लगाता।

गेहूँ पके खेत में झरते,

मौसम भी कर रहा ठिठौली।

महाशक्ति लाचार खड़ी है,

त्राहिमाम मानवता बोली ।

**

‘डांडी मार्च’, ‘संथाली कन्या’,  ‘सती का देह त्याग’ भी बनाने वाले चित्रकार थे  नंदलाल बोस 

3 दिसम्बर 1882 को बिहार के जिला मुंगेर में पैदा हुए भारत के प्रसिद्ध चित्रकार और संविधान की मूल प्रति का डिजाइन करने वाले नंदलाल बोस की आज पुण्‍यतिथि है।

**

चलते-चलते पढ़ते हैं मानव व्यवहार पर कवि की सूक्ष्म दृष्टि-

समय की स्लेट पर 

दर्ज हो रहे 
क़िस्से-दर-क़िस्से 
मानवता के विस्तार 
और संवेदनाविहीन व्यवहार के
समय की स्लेट पर 
*
आज सफ़र यहीं  तक 
फिर मिलेंगे आगामी अंक में 
-अनीता सैनी 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चर्चा। सभी रचनाएँ शानदार।

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक सन्देश के साथ
    पढ़ने के लिए सुन्दर व उपयोगी लिंक मिले।
    --
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर और विविधता पूर्ण लिंक्स से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति अनीता जी ! मेरे सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. साहित्यकार अपने समय का सच लिपिबध्द करता हुआ उससे जुड़े विभिन्न आयामों पर अपना दृष्टिकोण सम्प्रेषित करते हुए भटकाव के बिंदुओं पर रौशनी की मशाल लिए खड़ा होता है।
    सार्थक भूमिका एवं उत्कृष्ट लिंको से सजा शानदार चर्चा मंच...।मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा प्रस्तुति ! सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं ! सभी सुरक्षित, स्वस्थ व प्रसन्न रहें !

    जवाब देंहटाएं
  6. "वर्तमान में जो घटित होकर भूत होता जा रहा उसके हम साक्षी हैं."बिलकुल सत्य ,सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन अनीता जी ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी कविता "आना-जाना लगा रहेगा" को 'समय की स्लेट पर ' (चर्चा अंक-३६७५) में स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी।🙏 😊

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।

    जवाब देंहटाएं

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