सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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मन की महिमा अपरंपार है। यक्ष के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए महाराजा युधिष्ठिर ने कहा था कि संसार में सबसे तेज़ चलनेवाला मन है। फिर मन के मोल की तो बात ही निराली है।
आज की प्रस्तुति का आग़ाज़ कविवर अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की कविता 'मन का मोल' का अंश-
"कई कितनी जगहों में घूम।
उमड़ते आते घन से पास।
पर नहीं था, उन में वह नीर।
बुझा देता जो जी की प्यास।
भला बदले में लेकर पोत।
कौन देता है मोती तोल।
महँगा हो गयी प्रेम की माँग।
नहीं मिल पाया मन का मोल।"
साभार : कविता कोश
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-अनीता सैनी
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शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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मन की महिमा अपरंपार है। यक्ष के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए महाराजा युधिष्ठिर ने कहा था कि संसार में सबसे तेज़ चलनेवाला मन है। फिर मन के मोल की तो बात ही निराली है।
आज की प्रस्तुति का आग़ाज़ कविवर अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की कविता 'मन का मोल' का अंश-
"कई कितनी जगहों में घूम।
उमड़ते आते घन से पास।
पर नहीं था, उन में वह नीर।
बुझा देता जो जी की प्यास।
भला बदले में लेकर पोत।
कौन देता है मोती तोल।
महँगा हो गयी प्रेम की माँग।
नहीं मिल पाया मन का मोल।"
साभार : कविता कोश
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
-अनीता सैनी
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अपने कुटिया-नीड़ को, रखते सभी सँभाल।
मगर टिकाऊ है नहीं, कपड़े का पंडाल।।
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कट्टरपन्थी मत बनो, रहना सदा उदार।
मगर टिकाऊ है नहीं, कपड़े का पंडाल।।
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कट्टरपन्थी मत बनो, रहना सदा उदार।
अन्धभक्ति से पूर्व ही, करना सोच-विचार।।
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कतार में होने से क्या हो जाता है
कतार जा कर कतार में मिल जाती है
कैदी सौ गुनाह माँफ कर दिया जाता है
कतारें जमीन में लोटना शुरु हो जाती हैं
जमीन जमीन फैला हुआ आसमान हो जाता है
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मन क्या चाहता था कभी सोचा नहीं था
आत्मबल में सराबोर
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खोखला मन
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जब विपरीत परिस्थिति सामने आई
मन ने की बगावत हुई बौखलाहट
झुझलाहट में गलत राह पकड़ी
कब बाजी हाथ से निकली ?
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ना पीछे हटी ना ही मानी हार
रही सदा बिंदास सब के साथ
खुद को अक्षम नहीं पाया
आत्म बल से रही सराबोर सदा |
कभी स्वप्न सजोए थे
पंख फैला कर उड़ने के
अम्बर में ऊंचाई छूने के
वह भी पूरे न हो पाए |
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कुछ समय पहले ही बगीचे में एक नई बेल लगाई गई थी | कुछ जलवायु और कुछ उसकी आगे निकलने की होड़ ने उसे वसंत आते-आते इस काबिल बना दिया था कि उस पर नारंगी आभा लिए हजारों फूल एक साथ खिल पड़े |
जब-जब तेज धूप से बनी अपनी परछाईं पर उसकी नजर पड़ती तो वह आत्ममुग्ध हो नाच उठती | लगाने वाले ने जब उसपर नजरबट्टू बाँधा तब तो उसका दिमाग़ सातवें आसमान पर जा लगा |
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यादे रह जाती है...!!!
किसी का जाना यूँ स्वीकार नही किया जाता,मन को मार कर,खुद को इग्नोर करके,उनकी यादो को स्किप कर दिया जाता है,दिख जाए तो उसकी तस्वीर तो हम उनसे आँखे चुराते है,घाव फिर हरे ना जो जाए,बस उसकी हर याद से भागते है...वो कमरा, वो बिस्तर,वो कपड़े जो कुछ उनका समान होता है,रखना सहेज कर चाहते है,पर दोबारा देखना नही चाहते...
किसी का जाना यूँ स्वीकार नही किया जाता,मन को मार कर,खुद को इग्नोर करके,उनकी यादो को स्किप कर दिया जाता है,दिख जाए तो उसकी तस्वीर तो हम उनसे आँखे चुराते है,घाव फिर हरे ना जो जाए,बस उसकी हर याद से भागते है...वो कमरा, वो बिस्तर,वो कपड़े जो कुछ उनका समान होता है,रखना सहेज कर चाहते है,पर दोबारा देखना नही चाहते...
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पूरे चाँद की चमकती रात अंधेरी लगती है ,
अकसर ख़ामोश सी पूछती है कब मिलोगे !
बिखरी अलकों से पूछती अधखुली पलकें
तुम्ही बताओ ऐ स्वप्न सच बन कब मिलोगे !
मुझसे दूर जाती नामालूम से लम्हों की कतारें ,
ठिठकती अटकती सी पूछती है कब मिलोगे !
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जिह्वा पर प्रभु नाम रहें , नैनो में रघुनाथ
सिय की छवि ह्रद में बसे, लखन हनु रहें साथ।।
सत्कर्मों में मन लिप्त रहे,जीवन का हो ध्येय
दीन दुखी के कष्ट हरें, कभी न सोचे हेय।।
प्रीत डोर ऐसी बन्धे ,जैसे चाँद चकोर
दूर से निरखत रहें,प्रीत करें पुरजोर।।
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भैय्या मेरे छोटी बहन को न भुलाना।
मौली सुबह सबेरे उठकर जल्दी से तैयार होकर गीत गुनगुनाते हुए काम निबटा रही थी।
बिटिया क्या बात है आज बड़ी जल्दी उठ गई? वैसे तो नौ बजे तक सोती रहती हो?
अरे बापू!यह भी कोई पूछने की बात है?आज रक्षाबंधन है बसंत दादा को राखी बाँधने जाना है।
राखी बाँधने जाना है! पर क्यों? हर बार तो वो खुद चलकर आता था?
बापू कल आप खेत में थे तब बंशी दादा आए थे!कह रहे थे जरूरी काम है तो दादा नहीं आ पाएंगे!तो तुझे घर पर बुलाया है।
मौली सुबह सबेरे उठकर जल्दी से तैयार होकर गीत गुनगुनाते हुए काम निबटा रही थी।
बिटिया क्या बात है आज बड़ी जल्दी उठ गई? वैसे तो नौ बजे तक सोती रहती हो?
अरे बापू!यह भी कोई पूछने की बात है?आज रक्षाबंधन है बसंत दादा को राखी बाँधने जाना है।
राखी बाँधने जाना है! पर क्यों? हर बार तो वो खुद चलकर आता था?
बापू कल आप खेत में थे तब बंशी दादा आए थे!कह रहे थे जरूरी काम है तो दादा नहीं आ पाएंगे!तो तुझे घर पर बुलाया है।
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गाने भी वो गाए
बन-ठन के वो आए
आग भी लगाए
क्यूँ समझ न आए
बूझते-बूझते ही मैं कट गया
सिवाय बँटने के
मेरा कोई काम नहीं
मेरा कोई वजूद नहीं
मेरा कोई नाम नहीं
अपने ही चेहरे पे कई नाम लिख गया
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केश लटकते हैं कानों तक
मुखड़े पर मोहक मुस्कान,
झरनों जैसी हँसी बह रही
मन पीड़ा से है अनजान !
अथक परिश्रम करके पहुँची
के जी एम सी के कैम्पस में,
वर्षों तक किया है अध्ययन
लिया दाखिला अब एम डी में !
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आज का सफ़र यहीं तक फिर मिलेंगे
आगामी अंक में🙏
अनीता सैनी
बहुत सुंदर चर्चा। सभी रचनाएँ शानदार।
जवाब देंहटाएंअच्छी लिंक्स के साथ अच्छी चर्चा...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद 💐
आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचनाएं आज सम्मिलित करने के लिए अनीता जी आभार सहित धन्यवाद |
सुन्दर और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआनीता सैनी जी आपका आभार।
सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन प्रिय अनीता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक से सजी चर्चा...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सारगर्भित भूमिका सहित बहुत ही सुंदर लिंकों से सजी बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने के लिए आभार,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
सुन्दर लिंक्स से सजी सारगर्भित प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।
जवाब देंहटाएं