सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
स्त्री-विमर्श का फ़लक बहुत विस्तृत है।रीति-रिवाजों, रूढ़ियों-परंपराओं, वर्जना की साँकलों में जकड़ी स्त्री आज नया इतिहास लिख रही है। कभी कैक्टस तो कभी गुलाब की तरह स्वयं को ढालने में माहिर स्त्री का जीवन संघर्षमय परिस्थितियों से भरा हुआ रहता है। हालात के तूफ़ानों से जूझना स्त्री से बेहतरभला कौन जानता है?
-अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंदीदा रचनाएँ-
--
गीत
"डरा रहा देश को है करोना"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
धधक उठा उठा है आपदा से,
हमारे उपवन का कोना-कोना।
बहक उठी क्यारियाँ चमन में,
दहक रहा है चमकता सोना।।
--
एक ग़ज़ल
बेज़ार हुए तुम क्यों , ऐसी भी शिकायत क्या ?
मै अक्स तुम्हारा हूँ ,इतनी भी हिक़ारत क्या !
मै अक्स तुम्हारा हूँ ,इतनी भी हिक़ारत क्या !
हर बार पढ़ा मैने , हर बार सुना तुमसे ,
पारीन वही किस्से ,नौ हर्फ़-ए-हिक़ायत क्या ?
जन्नत की वही बातें ,हूरों से मुलाक़ातें ,
याँ हुस्न पे परदा है ,वाँ होगी इज़ाजत क्या ?
पारीन वही किस्से ,नौ हर्फ़-ए-हिक़ायत क्या ?
जन्नत की वही बातें ,हूरों से मुलाक़ातें ,
याँ हुस्न पे परदा है ,वाँ होगी इज़ाजत क्या ?
--
यह मोड...
फासला-ए-मोहब्बत,
शब्दों की मोहताज रही हो,
प्रेम सदा ही प्रबल रहा,
बात वो कल की हो,
या फिर आज रही हो।
--
मन नदिया बन प्यास बुझाता
मन नदिया बन प्यास बुझाता
जुड़ी रहे यदि नदी स्रोत से
निर्मल अविरल गतिमय रहती,
दर्पण सी उसकी काया में
छवि जग की प्रतिबिम्बित होती !
--
विवाद करके कहीं के न रहे
साइकॉलॉजिकल डिसऑर्डर के मारे ये
बुद्धिजीवी
साइकॉलॉजिकल डिसऑर्डर के मारे ये
बुद्धिजीवी
कुछ साइकॉलॉजिकल डिसऑर्डर ऐसे होते हैं जो व्यक्ति, विषय, देश और ''समाज के अहित में ही अपना हित'' समझते हैं , इस तरह के डिसऑर्डर्स में सुपरमेसी की लालसा इतनी हावी होती है...कि दूसरे को ध्वस्त करना ही मकसद हो जाता है, चाहे इसमें खुद ही क्यों ना फना हो जायें।
--
बहुत हैं....
प्रश्न भी बहुत हैं
प्रश्न भी बहुत हैं
उत्तर भी बहुत हैं
फिर भी
उलझनों की राह पर
वक़्त चलता जा रहा है
जाने क्या होता जा रहा है?
--
लघुकथा : #पहला_प्यार
चल न बेटा ,इतना भी क्या गुस्सा । सब तेरा भला ही तो सोच कर कह रहे हैं ।
इसमें क्या भला सोच रहे हैं ?
अरे लाडो पहले पढ़ाई कर ले ,फिर जो तू कहेगी सब मानेंगे । परन्तु अभी नहीं ।
माँ ! तुम नहीं समझ रही हो । पहला प्यार है मेरा ...
हाँ लाडो तुम्हारी बात समझ रही हूँ ।
नहीं समझ रही हो । पहला प्यार भूलना आसान नहीं होता ( सिसकता प्रतिरोध )
गलत्त बोल रही है तू । कोई भी हो वह पहला प्यार खुद से करता है ।
--
राधा
मैं कृष्ण की आराधिका थी
या उनकी बाँसुरी
यमुना का किनारा
या कदम्ब की डाली
गोकुल की पूरी धरती
या माखन
उनके मुख में चमकता ब्रह्माण्ड
या उनको बाँधी गई रस्सी
या !!! ...
जो भी मान लो
मैं थी - तो कृष्ण थे
कृष्ण थे - तो मैं !
--
कवि - नेमीचंद मावरी
" निमय " की कविता - " निर्मूल "
" निमय " की कविता - " निर्मूल "
बादलों ने दस्तक दे दी है,
मासूम से दिखने वाले मौसमी कीड़े,
बाहर निकल धूप का आनंद लेने लगे ,
शाखें नई कोपलों से हरित हुई,
बारिश से धुल हर पेड़ के पत्ते जवां हो गए,
चहक- चहक घरों में दुबके पंछी,
कभी तालाब, कभी मंदिर परिसर,
तो कभी पहाड़ पर उगे ऊँचे पेडों की डालियों पर,
अपने खुश होने का प्रमाण देने में लगे ।
--
क्षणिका
४७४. औरतें
क्षणिका
१-मनमोहन के संग किये दो दो हाथ
हाथों में टिपरी का जोड़ा लिए साथ
डांडिया खेलने का आनंद ही है कुछ और
रंग आ गया पांडाल में जोश छा रहा चहु ओर |
--४७४. औरतें
कैक्टस जैसी होती हैं औरतें,
तपते रेगिस्तान में
बिना खाद-पानी के
जीवित रहती हैं.
उनके नसीब में नहीं होते
फूल-पत्ते,
--
"बरफी" 【प्रथम किश्त】
पिछले कुछ दिनों से रह-रह कर मेरी स्मृति में ‘बरफी भुआ” का चेहरा कौंध रहा है। एक दिन अचानक घर की महरी ने काम करते-करते कहा -तुम्हारा सुबह जल्दी काम पर जाने का समय और शाम को सर्दियों में देर हो जाने से काम का हिसाब नही बैठ रहा, मेरे घर में छोटा बच्चा भी है तुम्हारे यहाँ बरफी काम कर दे क्या?
--
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में🙏
अनीता सैनी
पिछले कुछ दिनों से रह-रह कर मेरी स्मृति में ‘बरफी भुआ” का चेहरा कौंध रहा है। एक दिन अचानक घर की महरी ने काम करते-करते कहा -तुम्हारा सुबह जल्दी काम पर जाने का समय और शाम को सर्दियों में देर हो जाने से काम का हिसाब नही बैठ रहा, मेरे घर में छोटा बच्चा भी है तुम्हारे यहाँ बरफी काम कर दे क्या?
--
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में🙏
अनीता सैनी
--
प्रभावी भूमिका के साथ विविधताओं से परिपूर्ण चर्चा प्रस्तुति । आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदयतल से आभार अनीता !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंआभार, आपका अनीता जी, इस चर्चा हेतु
जवाब देंहटाएंसुन्दर और व्यवस्थित चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
अनीताजी, ताज़गी भरा संकलन. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ पठनीय सूत्रों का संकलन, आभार !
जवाब देंहटाएंसारगर्भित भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति ...सभी लिंक्स बेहद उम्दा।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
सार्थक भूमिका सहित बेहतरीन लिंकों का चयन अनीता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति... पर मेरा एक सुझाव है कि जिस रचना से प्रेरित होकर चर्चा का शीर्षक रखें, वही रचना सबसे ऊपर हो बाद में क्रमशः मेल खाती अन्य रचनाएँ... ये मेरी निजी राय है इस मंच की गरिमा एवं महत्ता में वृद्धि हेतु... यदि व्यवस्थापक गण सहमत न हों तो कोई बात नहीं...
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम सर ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सुझाव है आपका आदरणीय सर और मैं भविष्य में ध्यान रखूँगी। अक़्सर पढ़ते-पढ़ते एक लाइन मन को छू जाती है और वही मैं शीर्षिक रख देती थी परंतु आपका सुझाव सराहनीय है।तहे दिल से आभार आपका इस तरह के सुझाव देते रहे ताकि हम और बेहतर कर सके।
सादर प्रणाम सर