सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
यूपीएससी 2019
परीक्षा परिणाम आया
अपनी-अपनी ज़ात के
सफल अभ्यर्थियों का
सोशल मीडिया पर
जातिवादियों ने
जमकर जश्न मनाया।
-रवीन्द्र सिंह यादव
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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"मात्रिक छन्दों के बारे में कुछ जानकारियाँ"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
(क) ह्रस्व (लघु)-वर्ण मात्रा-गणना की प्रमुख इकाई है। लघु वर्ण एक मात्रिक होता है; यथा-अ, इ, उ, क, कि, कु। लघु का चिह्न।’ है। दो लघु वर्ण मिलाकर एक गुरु के बराबर माने जाते हैं। इसके नियम इस प्रकार हैं-संयुक्ताक्षर स्वयं लघु होते हैं।चन्द्रबिन्दुवाले वर्ण लघु या एक मात्रावाले माने जाते हैं; यथा-हँसना, फँसना आदि में हँ, फँ।ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु ही होते हैं; जैसे–कि, कु आदि।हलन्त-व्यंजन भी लघु मान लिए जाते हैं; जैसे-अहम्, स्वयम् में ‘म्’।(ख) दीर्घ (गुरु)-दीर्घ वर्ण ह्रस्व या लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखता है। दीर्घ वर्ण के लिए ” चिह्न प्रयुक्त होता है। मात्रिक छन्दों में मात्रा की गणना से सम्बन्धित दीर्घ वर्ण सम्बन्धी नियम इस प्रकार हैं संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण दीर्घ होते हैं, यदि उन पर भार पड़ता है। जैसे–दुष्ट, अक्षर में ‘दु’ और ‘अ’। यदि संयुक्ताक्षर से नया शब्द प्रारम्भ हो तो कुछ अपवादों को छोड़कर उसका प्रभाव अपने पूर्व शब्द के लघु वर्ण पर नहीं पड़ता; जैसे–’वह भ्रष्ट’ में ‘ह’ लघु ही है।
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रेत की आँधी–
दर्जी हट्टी में खड़े
नंगे पुतले।
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'मोह'
यहीं तो है
उनकी टोपी, उनका लोटा
चश्मा-घड़ी, हैंगर में टंगे शर्टऔर हिसाब वालाबरसों पुराना टीन का संदूक भी....
हर जगह बाक़ी हैउनकी ऊँगलियों का स्पर्शछत, सीढ़ियाँ और कमरे सेआती है आवाज़...उनकी गंध फैली है समूचे घर मेंवो कहीं नहीं गएपापा यहीं हैं, हमारे पास ।
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दोस्त कुछ अपने से, कुछ पराए से
जो साथ हैं उनके साथ दोस्ती अपने उच्चतम स्तर के साथ और भी गहराती जा रही है. जो छोड़कर चले गए, जिनके लिए हम दोस्त नहीं हैं उनके लिए बुरा सोच भी नहीं सकते क्योंकि वे कल तक तो हमारे मित्र रहे हैं. हमारे लिए तो वे आज भी मित्र हैं. ऐसे भटके हुए मित्रों के लिए हमारी कामना फिर भी यही है वे जहाँ रहें, खुश रहें भले हमसे दूर रहें. बस भटकें नहीं, गलत कदम न उठाएँ.
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कुछ अशआर यूँही.....
कर दिए जबसे जज़्बात मिरे,मैंने दफ़न
ज़िक्र मेरा भी सयानों की तरह होता है ...
इल्ज़ाम ए मोहब्बत से बरी है मुजरिम
इश्क़ उसका तो बयानों की तरह होता है ....
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करम का लेखा
दीप पुंज ले बढ़ते जाए
आओ करें प्रकाशित जग को, दीप पुंज ले बढ़ते जाएं शांत पवन या भले आंधियां टूटे ना लौ जल जल जाए कितना भी शातिर वो तम हो लौ से तेरी बच ना पाए अंधियारे को चीर नित्य ज्यों सूरज सब को राह दिखाए कितनी रातें काल सरीखी ग्रसें उसे और सुनहरी किरण लिए जगमग हो आए हों
यूपीएससी 2019
परीक्षा परिणाम आया
अपनी-अपनी ज़ात के
सफल अभ्यर्थियों का
सोशल मीडिया पर
जातिवादियों ने
जमकर जश्न मनाया।
-रवीन्द्र सिंह यादव
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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"मात्रिक छन्दों के बारे में कुछ जानकारियाँ"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
(क) ह्रस्व (लघु)-वर्ण मात्रा-गणना की प्रमुख इकाई है। लघु वर्ण एक मात्रिक होता है; यथा-अ, इ, उ, क, कि, कु। लघु का चिह्न।’ है। दो लघु वर्ण मिलाकर एक गुरु के बराबर माने जाते हैं। इसके नियम इस प्रकार हैं-संयुक्ताक्षर स्वयं लघु होते हैं।चन्द्रबिन्दुवाले वर्ण लघु या एक मात्रावाले माने जाते हैं; यथा-हँसना, फँसना आदि में हँ, फँ।ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु ही होते हैं; जैसे–कि, कु आदि।हलन्त-व्यंजन भी लघु मान लिए जाते हैं; जैसे-अहम्, स्वयम् में ‘म्’।(ख) दीर्घ (गुरु)-दीर्घ वर्ण ह्रस्व या लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखता है। दीर्घ वर्ण के लिए ” चिह्न प्रयुक्त होता है। मात्रिक छन्दों में मात्रा की गणना से सम्बन्धित दीर्घ वर्ण सम्बन्धी नियम इस प्रकार हैं संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण दीर्घ होते हैं, यदि उन पर भार पड़ता है। जैसे–दुष्ट, अक्षर में ‘दु’ और ‘अ’। यदि संयुक्ताक्षर से नया शब्द प्रारम्भ हो तो कुछ अपवादों को छोड़कर उसका प्रभाव अपने पूर्व शब्द के लघु वर्ण पर नहीं पड़ता; जैसे–’वह भ्रष्ट’ में ‘ह’ लघु ही है।
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युग-युग के दुष्पाप शमित हो, रहे शुभम्
सुकृति-सुमति से पूरित हो तन-मन जीवन
कुलांगार कर क्षार ,भाल चंदन धर दो
राष्ट्र-पुरुष का माथ तिलक से मंडित हो ,
मनुज लोक में पुण्य-श्लोक संचारो!
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दर्जी हट्टी में खड़े
नंगे पुतले।
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'मोह'
इस सम्प्रभुता का परित्याग कर स्वयं का अस्तित्व खो जाता है कहीं । 'मैं' हम में बदल कर विशद बने तो बेहतर है लेकिन कई बार अत्यधिक मोह का भाव सुकून की जगह पराश्रय का भाव भी पैदा कर देता है..,जरा इस विषय पर भी गौर करना ।"
मोह को सीमाओं में बाँध कर सहजता और निर्लिप्तता के साथ बात का समापन कर वह एक सन्यासी की तरह आगे
बढ़ गई ।
शायद सांसारिक व्यवहारिकता से थक कर ।
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न जाने क्यों कई सरहद से घर नहीं लौटते
कई बाढ़ के बहाव में बह जाते हैं दूसरी दुनिया में
कई प्लेन क्रेश में दम तोड़ देते हैं
कई बम विस्फोट में राख का ढ़ेर बन जाते हैं
कई नौकरी न मिलने पर फंदे से लटक जाते हैं
क़लम उनके पंख लिखना चाहती है उड़ाना चाहती है
कई बाढ़ के बहाव में बह जाते हैं दूसरी दुनिया में
कई प्लेन क्रेश में दम तोड़ देते हैं
कई बम विस्फोट में राख का ढ़ेर बन जाते हैं
कई नौकरी न मिलने पर फंदे से लटक जाते हैं
क़लम उनके पंख लिखना चाहती है उड़ाना चाहती है
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उम्मीदों से भरा...
कहीं नहीं गए पिता.... उम्मीदों से भरा...
महीना अगस्त का मानों उम्मीदों से भरा
शिकस्त चाहे उस या फिर इस पार ज़रा
वैसे भी कलियों के आने से खुश है गुलदान
फूल खिले न न खिले उम्मीद रहती है बनी
हादसे कई हो जाते हैं फिर भी आँधिंयों से
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यहीं तो है
उनकी टोपी, उनका लोटा
चश्मा-घड़ी, हैंगर में टंगे शर्टऔर हिसाब वालाबरसों पुराना टीन का संदूक भी....
हर जगह बाक़ी हैउनकी ऊँगलियों का स्पर्शछत, सीढ़ियाँ और कमरे सेआती है आवाज़...उनकी गंध फैली है समूचे घर मेंवो कहीं नहीं गएपापा यहीं हैं, हमारे पास ।
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दोस्त कुछ अपने से, कुछ पराए से
जो साथ हैं उनके साथ दोस्ती अपने उच्चतम स्तर के साथ और भी गहराती जा रही है. जो छोड़कर चले गए, जिनके लिए हम दोस्त नहीं हैं उनके लिए बुरा सोच भी नहीं सकते क्योंकि वे कल तक तो हमारे मित्र रहे हैं. हमारे लिए तो वे आज भी मित्र हैं. ऐसे भटके हुए मित्रों के लिए हमारी कामना फिर भी यही है वे जहाँ रहें, खुश रहें भले हमसे दूर रहें. बस भटकें नहीं, गलत कदम न उठाएँ.
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कुछ अशआर यूँही.....
कर दिए जबसे जज़्बात मिरे,मैंने दफ़न
ज़िक्र मेरा भी सयानों की तरह होता है ...
इल्ज़ाम ए मोहब्बत से बरी है मुजरिम
इश्क़ उसका तो बयानों की तरह होता है ....
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करम का लेखा
चढ़ी सुनहरी ऐनक आँखों
कर्म धूप का तेज न देखा।
हाथ पसारे आज खड़ा जब
रोया देख करम का लेखा।
टूटी किश्ती लिए भँवर में
जीवन अपना आज डुबोया।
छप्पर....…........ खोया।
--दीप पुंज ले बढ़ते जाए
आओ करें प्रकाशित जग को, दीप पुंज ले बढ़ते जाएं शांत पवन या भले आंधियां टूटे ना लौ जल जल जाए कितना भी शातिर वो तम हो लौ से तेरी बच ना पाए अंधियारे को चीर नित्य ज्यों सूरज सब को राह दिखाए कितनी रातें काल सरीखी ग्रसें उसे और सुनहरी किरण लिए जगमग हो आए हों
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घोसला ..डॉ. अनुपमा गुप्ता
वह ढेर, सारे तिनकों का
बहुत सारी मेहनत
और अखंडित लगन से
बनाती है एक घोसला
जिसमें पालती है
अपने दुधमुहों को
अपने दुधमुहों को
और मांगती है दुआ
कि उनके अपने बच्चे
न भूलें, यह घोसला
--
कैसे निजात पाऊँ
मन भाता कोई नहीं है
नहीं किसी से प्रीत
है दुनिया की रीत यही
हुई बात जब धन की |
सर्वोपरी जाना इसे
जब देखा भाला इसे
भूले से गला यदि फंसा
बचा नहीं पाया उसे |
--
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
कि उनके अपने बच्चे
न भूलें, यह घोसला
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कैसे निजात पाऊँ
मन भाता कोई नहीं है
नहीं किसी से प्रीत
है दुनिया की रीत यही
हुई बात जब धन की |
सर्वोपरी जाना इसे
जब देखा भाला इसे
भूले से गला यदि फंसा
बचा नहीं पाया उसे |
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत ही सुन्दर संकलन है और मेरी रचना को यहाँ स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार !
सुन्दर लिंक से सजी चर्चा...
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन आज के अंक का |मेरी रचना को शामिल करने के लिये आभार सहित धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंसुन्दर और पठनीय लिंक।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुन्दर लिंक से सजी चर्चा
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन सर ! संकलन में मेरे सृजन को स्थान देने के लिए तहेदिल से आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर ।मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएं–असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंअपनी-अपनी ज़ात के
सफल अभ्यर्थियों का
सोशल मीडिया पर
जातिवादियों ने
जमकर जश्न मनाया।
–ना जाने यह कोढ़ कब खत्म होगा
–उम्दा प्रस्तुति
बहुत ही मेहनत भरा और सार्थक संकलन है और मेरी रचना को भी यहाँ स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..