स्नेहिल अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
(शीर्षक आदरणीया कुसुम कोठरी की रचना से )
हर कोई चाहता है, इक मुट्ठी आसमान
हर कोई ढूँढता है, इक मुट्ठी आसमान
जो सीने से लगा ले, हो ऐसा इक जहान
हर कोई चाहता है, इक मुट्ठी आसमान
(गीतकार इन्दीवर जी की चंद पंक्तियाँ )
हमको धरती की गोद मिली, ममता का एक संसार मिला
आशाओं को आधार मिला, और सपनों को आकार मिला
और पिता के आशीषों के, साये सा ये आसमान
जिसमें है सबके हिस्से का, एक मुट्ठी आसमान
(आदरणीय सुधीर कुमार शर्मा जी की रचना से )
मिल जाएँ सभी को अपने-अपने हिस्से का "एक मुठ्ठी आसमान"....
इसी कामना के साथ चलतें हैं....आज की कुछ रचनाओं की ओर .....
************
हर कोई चाहता है, इक मुट्ठी आसमान
हर कोई ढूँढता है, इक मुट्ठी आसमान
जो सीने से लगा ले, हो ऐसा इक जहान
हर कोई चाहता है, इक मुट्ठी आसमान
(गीतकार इन्दीवर जी की चंद पंक्तियाँ )
हमको धरती की गोद मिली, ममता का एक संसार मिला
आशाओं को आधार मिला, और सपनों को आकार मिला
और पिता के आशीषों के, साये सा ये आसमान
जिसमें है सबके हिस्से का, एक मुट्ठी आसमान
(आदरणीय सुधीर कुमार शर्मा जी की रचना से )
मिल जाएँ सभी को अपने-अपने हिस्से का "एक मुठ्ठी आसमान"....
इसी कामना के साथ चलतें हैं....आज की कुछ रचनाओं की ओर .....
************
हिन्दी व्याकरण "हिन्दी वर्ण-माला और पञ्चमाक्षर"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
![मयंक की डायरी](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6E9q96HhvtdLbjVbpwT4r4evCAKZ_0815dNhcqaicGkmLC1l3zRupPdL2bKEwFxXeaomobagVTdU_Y-KaZNCl3_JvR5KWjCooB6CzaWq7_S1yUmHok7Y0_Xd25wwuynNT0pt_fobSlXOb/s400/mayank00+copy.jpg)
बहुत समय से हिन्दी व्याकरण पर कुछ लिखने का
मन बना रहा था। परन्तु सोच रहा था कि लेख
प्रारम्भ कहाँ से करूँ। लेख का शुभारम्भ हिन्दी
वर्ण-माला से ही करता हूँ।
मुझे खटीमा (उत्तराखण्ड) में छोटे बच्चों का विद्यालय
चलाते हुए 28 वर्षों से अधिक का समय हो गया है।
शिशु कक्षा से ही हिन्दी वर्णमाला पढ़ाई जाती है।
हिन्दी स्वर हैं-
*******
मन बना रहा था। परन्तु सोच रहा था कि लेख
प्रारम्भ कहाँ से करूँ। लेख का शुभारम्भ हिन्दी
वर्ण-माला से ही करता हूँ।
मुझे खटीमा (उत्तराखण्ड) में छोटे बच्चों का विद्यालय
चलाते हुए 28 वर्षों से अधिक का समय हो गया है।
शिशु कक्षा से ही हिन्दी वर्णमाला पढ़ाई जाती है।
हिन्दी स्वर हैं-
*******
बस एक मुठ्ठी आसमां
आकर हाथों की हद में सितारे छूट जाते हैं
हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं।
मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर,
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
*******
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnSYGg_sly2gb6PqIeWP8GR3j0hw6FYbY4qkBRjWGLKlu8WMtYgIscFzZ8keOM05Mq30ueV4QqjSjDugdAmOaoIRHZRd73qqBIdCTU7OaD2LFz_9N4Tt5Zr8vld9PDvi_lrNjVZLezX1Y/s400/IMG-20190711-WA0010.jpg)
हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं।
मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर,
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
*******
ज्यों अर्जुन को रथ हांक्यो
प्रभु मेरी भी गाड़ी हांकिए
गोपिन को माखन चाख्यो
मेरी रूखी सूखी चाखिए।
******
एक बुग्नी फूल सूखा डायरी ...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6Ism2iGtPlMeMdDg_gjB34orf1Xv3wjvaq7C1chnv9ZxHvSloFu0oo5hqR5ZHlAp6iClLdTGYKKFfmv5L4rL-6b_gIMBdQHk175_An8mXpoSbbYEQicRXzt2NMVm2Ojt87rM4k8hOPCw/s200/photo.png)
धूप कहती है निकल के दें … न दें
रौशनी हर घर को चल के दें … न दें
साहूकारों की निगाहें कह रहीं
दाम पूरे इस फसल के दें … न दें
******
दशरथ जी के संतान योग पर भारी, रावण की अभिसंधि
पर ऐसा क्यूँ हुआ कि अयोध्यापति संतान का मुख देखने को
तरस गए ! जबकि विष्णु जी ने उनका पुत्र बनने का वचन दिया था !
तीन-तीन रानियां थीं ! पूरा परिवार यौवनावस्था में था !
पहले एक संतान हो भी चुकी थी !
हर सुख-सुविधा मुहैय्या थी !
******
क़ुदरत का कहर, कुछ अपनों की
मेहरबानी, सीने में है इक
आतिशफिशां और
आँखों में मंज़िल
अनजानी।
******
न कदापि खंडित:
![](https://3.bp.blogspot.com/-3xYXP3NzogI/XsP9NZWkvfI/AAAAAAAAXdE/pGRUwCLIpbMzG05_K1d-fmFPdGnIDUgiQCK4BGAYYCw/s200/IMG_20200518_092316.jpg)
न कदापि खंडित
ऐसा नहीं है कि , मैं
कभी टूटती नहीं
इंसान हूँ फौलाद नहीं
खंड खंड बिखरती हूँ
लेकिन फिर
******
![My photo](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1_NuUacq1wQz1hJcJrhqzLTaSRmxQke3GbnOe_yo4N8NQDHCUV6NdIAoO_BmLK8N_eDNRo98d5XX7AnCJwzjKTQe3J1voP_8hvhTuHk8lbP0XfpSXC-TXuHR7coV436z0SixwzlnZxks/s79/IMG_1130mr1.jpg)
जीवन प्रतिपल बदल रहा है. यहाँ जो स्थित है वह पर्वत भी
रेत बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा है आज नहीं कल वह भी
बिखरेगा और आज जहाँ पहाड़ों की हरी-भरी घाटियाँ हैं
लाखों वर्ष बाद ही सही, वहाँ मरुथल नजर आ सकते हैं.
******
देखे कई उतार चढ़ाव
इस छोटी सी जिन्दगी में
बड़ी विषमता देखी
बचपन और जवानी में |
युवावस्था आते ही
*******
चेतन चौहान का क्रिकेट कैरियर बचपन के धुंधलके तस्वीरों में बैठा हुआ है।
जब क्रिकेट की दुनिया रेडियो के इर्द-गिर्द घूमती थी।हमे याद है कि
उस समय टेस्ट मैच की रंनिंग कॉमेंट्री को सुनने वाले साथ में कॉपी और
पेन रखते थे और टेबल उनका मैदान होता था।
******
चलते-चलते, आदरणीय विश्वमोहन जी की
एक शोधपरक और ज्ञानवर्धक आलेख
वैदिक साहित्य और इतिहास बोध ----- (३)एक शोधपरक और ज्ञानवर्धक आलेख
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7t29w2pBT_zsfFA9bgkAHY4SJpzmorRctJJmqeXfa-NkDPZ1H8xLfRdm6Bw_4U0t04eEt0dNTErg8rKzaxHjjNks0UsEm4LJaLY-v6HrxEyJof3qL6H8k6HPbqINM-PzHNPI9KxpN1oE/s200/blogfoto.jpg)
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ है पूर्वाग्रहों से मुक्त, प्रामणिकता,
सार्थक तर्क और वस्तुनिष्ठता।
हमें दोनों ध्रुवों पर खड़े कट्टरपंथियों से परहेज
करना पड़ेगा जो मात्र समर्थन के लिए
समर्थन या विरोध के लिए विरोध करते हैं।
**********
आज का सफर यही तक
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
आभार सहित धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए कामिनी जी |
जवाब देंहटाएं|
सहृदय धन्यवाद आशा दी,सादर नमस्कार
हटाएंपठनीय लिंकों के साथ सन्तुलित चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
सहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंमुझे सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंबोहोत अद्भुत लेख, हमारे ब्लॉग पर भी जरूर आएं प्रेरणादायक सुविचार
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद नीलेश जी,सादर नमस्कार
हटाएंवाकई यदि हरेक को अपने हिस्से का आसमान मिल जाये तो उड़ने को पंख भी मिल ही जायेंगे। सार्थक रचनाओं के सूत्रों का सुंदर संकलन, आभार !
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी,सादर नमस्कार
हटाएंसुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंसुंदर भूमिका से सजा बहुरंगी संकलन। आभार।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय धन्यवाद अनीता जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति कामिनी जी !सार्थक रचनाओं के सूत्रों का सुंदर संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। प्रिय कामिनी, देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ। मेरी रचना को संकलन में लेने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंब्लॉगर मित्रों की रंग -बिरंगी रचनाओं के लिंक्स के साथ उनका बहुत बढ़िया प्रस्तुतिकरण । हार्दिक आभार। यह देखकर बहुत खुशी होती है कि चर्चा मंच के माध्यम से आदरणीय रूपचंद शास्त्री 'मयंक' हिन्दी ब्लॉगिंग में लगे रचनाकारों को एक -दूसरे से जोड़ने के सराहनीय कार्य में अनवरत लगे हुए हैं। इन दिनों जबकि कई पुराने ब्लॉगर मित्रों ने फेसबुक की राह पकड़ ली है ,वहीं आज भी बड़ी संख्या में मित्रगण ब्लॉगिंग में पूरी कर्मठता से लगे हुए हैं। आप सबको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंजी सही कहा आपने एक कर्मठ सार्थक योगदान।
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति कामिनी जी देर से, नहीं बहुत देर से आई क्षमा प्रार्थी हूं।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की पंक्ति को शीर्ष में स्थान देकर जो मान दिया है उसके लिए मैं अभिभूत हूं और हृदय तल से आभारी ।
पुरा संकलन बहुत बहुत आकर्षक सुंदर।
सार्थक भूमिका।
बहुत बहुत आभार पुनः।
सस्नेह।