स्नेहिल अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति प्रेम और उसका संरक्षण हमेशा से ही महत्वपूर्ण माना गया है। अथर्ववेद के मन्त्र १२.१.१२ के अनुसार, “माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: पर्जन्य: पिता स उ न: पिपर्तु” अर्थात् मैं तो तुम्हारे (पृथ्वी) पुत्र के जैसा हूं, तुम मेरी माँ हो और मेघों का हम पर पिता के जैसा साया बना रहे।”
मगर अफ़सोस आज बच्चों की लापरवाहियों से माँ इतनी क्रोधित हो चुकी है कि -
चारो तरफ मौत का तांडव कर रही है। कही जल-प्रलय हो रहा है
तो कही अग्नि-वर्षा तो कही हवाओ ने हाहाकार मचा रखा है। समूचा विश्व त्राहि-माम् कर रहा है....
क्या अब भी हम नहीं जागेंगे ?
क्या अब भी हम माँ का अनादर करते ही रहेगें ?
"माँ" करुणामयी होती है,अगर अब भी हम उनसे क्षमा मांग,खुद को सुधारने का प्रयत्न करें
तो वो अब भी हमें क्षमादान दे सकती हैं.
"हम अब प्रकृति को यथा संभव बचाने की कोशिश करेंगे"
इसी संकल्प के साथ चलते हैं, आज की रचनाओं की ओर.....
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आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति प्रेम और उसका संरक्षण हमेशा से ही महत्वपूर्ण माना गया है। अथर्ववेद के मन्त्र १२.१.१२ के अनुसार, “माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: पर्जन्य: पिता स उ न: पिपर्तु” अर्थात् मैं तो तुम्हारे (पृथ्वी) पुत्र के जैसा हूं, तुम मेरी माँ हो और मेघों का हम पर पिता के जैसा साया बना रहे।”
क्या अब भी हम माँ का अनादर करते ही रहेगें ?
मगर अफ़सोस आज बच्चों की लापरवाहियों से माँ इतनी क्रोधित हो चुकी है कि -
चारो तरफ मौत का तांडव कर रही है। कही जल-प्रलय हो रहा है
तो कही अग्नि-वर्षा तो कही हवाओ ने हाहाकार मचा रखा है। समूचा विश्व त्राहि-माम् कर रहा है....
क्या अब भी हम नहीं जागेंगे ?क्या अब भी हम माँ का अनादर करते ही रहेगें ?
"माँ" करुणामयी होती है,अगर अब भी हम उनसे क्षमा मांग,खुद को सुधारने का प्रयत्न करें
तो वो अब भी हमें क्षमादान दे सकती हैं.
"हम अब प्रकृति को यथा संभव बचाने की कोशिश करेंगे"
इसी संकल्प के साथ चलते हैं, आज की रचनाओं की ओर.....
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj71z8onT6oLsFRx4mfOTcAFsvJxOeNh2-O_G4dx9zidj3Jiqix7w4qzomaomnwTWX-OWkHsKFGq2CW64uSuYcboiKmlE5QCTXB1MAshq_3UWwv5g91qvp1Z-sLqtkZQC_gHi40W7CAQJT9/s400/_0000+copy.jpg)
बरगद बौने हो गये, उगने लगे बबूल।
पीपल जामुन-आम को, लोग रहे हैं भूल।।
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थोड़े से ही रह गये, धरती पर तालाब।
नदी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSh-97kv0_c49Mx4I6dFC1vDJcJmwwovGrsBb96tPm5ijwDMNzxmxzL2UNdaLLj0UZElHD8v9lWYVwV7WFTtIAwWziu4zWM4WraSOtX74KurArswOfSR9kOCU7FgFI28Ng5KJSPu-jHe0b/s320/1598171555332869-0.png)
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वक्त आजमा रहा है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAtiWwmvYbIgNh-sxnEMii7gAej1VKW5OYEsUe-_nQGyyuSzQQCWQBDzAHoYiKx80LNwg1z6dAulwquTKuPVwO0ju-NWRk9RLHYveXCef5cjVZq68ziN2Lx3g7cWHBkwwN6_4st_2Q0BKo/s320/IMG_20200823_194514.jpg)
और इस समय कैलिफोर्निया में आग फैली हुई है..
कई लाख एकड़ जल कर खत्म हो गए...
पूरे शहर में धुएँ से सफेद और स्याह दिख रहा है।
वातावरण में धुँआ , राख और जलने का गंध फैला हुआ है..
विभा रानी श्रीवास्तव - "सोच का सृजन"
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वैदिक वांगमय और इतिहास बोध-------(४)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7t29w2pBT_zsfFA9bgkAHY4SJpzmorRctJJmqeXfa-NkDPZ1H8xLfRdm6Bw_4U0t04eEt0dNTErg8rKzaxHjjNks0UsEm4LJaLY-v6HrxEyJof3qL6H8k6HPbqINM-PzHNPI9KxpN1oE/s200/blogfoto.jpg)
सच कहें, तो भारत ही नहीं, वरन समस्त
भारोपीय (भारत-यूरोपीय) भूभाग का प्राचीनतम ग्रन्थ है -
अपना 'ऋग्वेद'। भारोपीय और भारतीय सभ्यताओं के
पुरातन इतिहास का सुराग पाने में
इस ग्रन्थ की महत्ता का कोई सानी नहीं है। भारतीय इतिहास लेखन की सभी
शैक्षणिक धाराओं में यह तथ्य सर्वमान्य है।
विश्वमोहन - विश्वमोहन उवाच
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ये भी नहीं
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUO6pYgf3HdGxIN3jtHEZZM-mnGGeGJMtqL5JwsF8sZu_V19HZXQbUaMz2QsGAvusK7dv4MunIBeiFvIgcFMdjuvP1yksxxLruB412ysvnHlqNnGmgLN-lNi-skE7cvBa6O9iqKORa78Q/w320-h240/1598203933370537-0.png)
फूल नहीं,
फूल की खुशबू नहीं ।
आकाश का छलकता
गहरा नीला रंग नहीं ।
बादलों के पंख नहीं ।
चंद्र और सूर्य नहीं ।
बारिश में भीगी
मिट्टी की सुगंध नहीं...
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Bhai Chara / भाईचारा /
Brother Hood
![Bhai-Chara-Brother-Hood](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjaBNPl79DKr9OSGrs3YyFvct3hoH5f8EHQ1wsVeaPT3aj-w5jsWtF0RfVzkDle45dummZ6WTyBJE6cHOJdkjC4bg2a1xnbbPCeWRGz9HjZzyX3ZKOk5bRzPIcS8vrlAKmd4pLeIQtmG5c/w400-h209/Bhai-Chara-Brother-Hood.jpg)
क्या गजब है देशप्रेम,
क्या स्वर्णिम इतिहास हमारा है|
अजब-गजब कि मिलती मिशाले,
क्या अद्भुत भाईचारा है||
सृजन मंच ऑनलाइन - Rishabh Shukla
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प्राचीन विदेशी यात्री 1/3
भारतीय इतिहास को क्रोनोलॉजी याने कालक्रम के अनुसार
मोटे तौर पर चार भागों में बांटा गया है -
प्राचीन काल, मध्य काल, आधुनिक काल और
1947 के बाद स्वतंत्र भारत का इतिहास.
प्राचीन इतिहास लगभग सात हज़ार ईसापूर्व से
सात सौ ईसवी तक माना जाता है.
Harsh Wardhan Jog - Sketches from life
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मुंडेर
![My photo](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitxhjdTwO_T5fPepljeGq-Apf72whyphenhyphenz_BSeGfSiDMwhP8KtX9qqXldwZLR0pVfOwPFz1ty3XFxrfCWLI9zIcFSXczqQuaiFJroPPWlXN_bajvta4xWP4243OyZAkfqDjYcMwfwWw3LPKo/s200/FB_IMG_1531397228253.jpg)
यादों की मुंडेर पर बैठा ,
मन पंछी ........
सुना रहा तराने ,
नए -पुराने
कुछ ही पलों में
करवा दिया ,
बीते सालों का सफर ।
शुभा - अभिव्यक्ति
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तरंगे मोबाइल की....
![मेरी फ़ोटो](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJVqcNdhmW7s-zzguh_W1iYHp1OpNCxMVQvfTnUHIgP24Nrlmc83WgXTLdUUmUqfj00IfPhHDF9yl7kwu_y_fjQJbtMDj98JV5OOU-9CThDaVM3_GqXI4vm-fwcj5ZqFSCUzezYhkDKjo/s200/FB_IMG_1582475598801.jpg)
मुझे तो सभी मोबाइल से निकलती बातें पतंगों की
डोर की तरह ऊपर हवा में लहराती दिखाई पड़ रही हैं।
मोबाइल से निकलती सारी तरंगे, बातों की ,
एक दूसरे को काटती हुई, तर ऊपर चढ़ती हुई,
आपस मे उलझती हुई आंखों के सामने से गुजर रही हैं।
amit kumar srivastava -"बस यूँ ही "
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अन्नदाता नूरी कंवर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJLXgPLs0x9UmVWg-naif6sdeKFHKNLvFGiSzuzAnLPBM-Cn0j9Al_fWmHaapuGuN2EkSAvxRUOHAwiA5ePcl1v8Z0cnEOtj0e26SrvptHLbsu55yWlaeIaFrtsmPT5uPpAyhy_fu9C3c/s320/IMG_20200703_171342.jpg)
Anuradha chauhan - मेरे मन के भाव
नूरी कंवर ने निस्वार्थ भाव से गरीब परिवारों तक भोजन
पहुँचाकर समाज में मानवता की अद्भुत मिसाल कायम की,
साथ ही साथ समाज को
भी यह संदेश भी दिया, कुछ करने के लिए
पैसा नहीं दिल बड़ा होना चाहिए।
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भारत की मौजूदा स्थिति
![2017-11-26-22-48-24-573](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzsk8QELGCbLh0g_jvwHTFF-mp6tU63K7-X9J9Avfhrs8CHaJixUQJx-BqwbWM_LJi8hAj-wtI9uP-51G7shbCpBLqBT3JL84i8SQzYzqvNmvzu6iu2EgIWNsOmlF3JIl68BSnUrsv_3M/s220/2017-11-26-22-48-24-573.jpg)
यह विषय अत्यंत वृहद् और विचारणीय है।
यदि अतीत में भारत की स्थिति देखें तो यह बेहद संपन्न,
प्रतिभाशाली और प्रभावशाली रहा है।
शैक्षिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अग्रणी भूमिका
का निर्वहन किया, किन्तु सदियों से धार्मिक, आर्थिक,
शैक्षणिक और वैचारिक चौतरफा प्रहार ने
इसकी प्रचीन गरिमा को भारी क्षति पहुँचाई।
Malti Mishra - ANTARDHWANI
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आज का सफर यही तक
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
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Malti Mishra - ANTARDHWANI
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आज का सफर यही तकआप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
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हार्दिक आभार असीम शुभकामनाओं के संग
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति
सुंदर चर्चा,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार|
वाह!सुंदर भूमिका सखी । माँ को तो हमें ही बचाना होगा ,सजाना होगा चलो सब मिलकर संकल्प लें ।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स खूबसूरत ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से धन्यवाद सखी ।
सार्थक भूमिका के आह्वान-उद्घोष से आंदोलित संकलन! आभार एवं बधाई!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।
बहुत सुंदर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की प्रस्तुति ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति कामिनी जी, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु आप सभी स्नेहीजनों का तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएं'प्राचीन विदेशी यात्री 'शामिल करने के लिए धन्यवाद. सादर
जवाब देंहटाएंविविध सारगर्भित रचनाओं के साथ मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार, कामिनीजी.
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक लेख और सहज कविताओं का मेल रहा, चर्चा का यह अंक.
सभी को बधाई और धन्यवाद.