स्नेहिल अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
जिस दिन एक बेटी अपने घर से, अपने परिवार से, अपने भाई,मां तथा पिता से जुदा होकर अपनी
ससुराल को जाने के लिए अपने घर से विदाई लेती है, उस समय उस किशोरमन की त्रासदी, वर्णन करने के लिए कवि को भी शब्द नही मिलते !जिस पिता की ऊँगली पकड़ कर वह बड़ी हुई,
उन्हें छोड़ने का कष्ट, जिस भाई के साथ सुख और दुःख भरी यादें और प्यार बांटा,
और वह अपना घर जिसमे बचपन की सब यादें बसी थी.....
इस तकलीफ का वर्णन किसी के लिए भी असंभव जैसा ही है !
और उसके बाद रह जातीं हैं सिर्फ़ बचपन
पूरे जीवन वह अपने भाई और पिता की ओर देखती रहती है !
राखी और सावन में तीज, ये दो त्यौहार, पुत्रियों को समर्पित हैं, इन दिनों का इंतज़ार रहता है
बेटियों को कि मुझे बाबुल का या भइया का बुलावा आएगा !
अपने ही घर को वह अपना नहीं कह पाती वह मायके में बदल जाता है ! !
नारी के इस दर्द का वर्णन बेहद दुखद है .........
(आदरणीय सतीश सक्सेना जी की रचना से )
सच कहा है आपने ,नारी की इस पीड़ा का वर्णन करना बेहद मुश्किल है ,बहुत हद तक
आपने हमारी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है ,मगर इस दर्द को सिर्फ हम नारी ही समझ सकती है....
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"रक्षाबंधन " गुज़र गया ....और फिर से छोड़ गया ढेर सारी यादें और अनुभूतियाँ
कितनी ही आँखें भाई से मिलन पर ख़ुशी से बरसी होंगी और....
कितनी ही आँखे चौखट पर नज़र टिकाये बैठी होंगी एक आस ,एक उम्मीद लिए ....
कि -आज तो भईया जरूर आएंगे
क्या हुआ , गर वो थोड़े से मुझसे ख़फ़ा थे....
क्या हुआ पापा नहीं है तो ,भाई तो मायके का आस होता है न
आज वो भाई जरूर आएगा ,वो खुद नहीं भी आ पाया तो... मुझे आने का न्यौता तो ज़रूर देगा ..
मगर, निग़ाहें दूर तलक जाकर रुआंसी हो वापस चली आई होंगी ...
कुछ आँखें ,भाई के जुदाई में इसलिए बरसी होंगी कि-
चाहकर भी इस बिषम परिस्थिति में उसका भाई उस तक नहीं पहुँच सका होगा ....
और कितनी बहनें तो ऐसी भी होंगी कि -जिन्हे भाई के लौटने की आस भी नहीं होगी .....
कुछ भाई नामुराद कोरोना के भेट चढ़ गए होंगे और कुछ जंग में शहीद हो गए होंगे...
मायके की याद में सराबोर आज की प्रस्तुति हम सभी सखियों के नाम....
माँ-बाबुल और भईया के नाम....
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भैया तुम हो अनमोल !
लेकर राखी के दो तार -
आऊँ स्नेह का पर्व मनाने ,
बचपन की गलियों में घूमूं -
पीहर देखूँ तेरे बहाने ;
बहना माँगे प्यार तेरा बस -
ना मांगे राखी का मोल !!
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है बैठा सुबह से मेरी छत पे कागा
खड़ी द्वार पर हूँ
हैं पथ पर निगाहें
चले आओ भैया
मैं तकती हूँ राहें !
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अक्षत रोली
सजा थाली में राखी
बहना लाई !
...
चूड़ी खनके
मेंहदी वाले हाँथ
बाँधे जो राखी !
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बाँधू मैं तुझको
रेशम के धागे
मांगू मैं मन्नत
रब के आगे
खुशियों भरा
हो संसार तेरा
आँचल के अपने
छोर से
मैने बाँध रखा
नेह तेरा
******
“रेशमी धागे”
रेशमी धागों की माया बड़ी अपरम्पार है
तुम्हारे आने की चाह में
ये कभी कुम्हला जाते हैं
तो कभी उलझ जाते हैं
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रक्षा की शर्त
सदा सभी को केशव बनकर।
रक्षा करना तुम चीर बढ़ाकर।
नारियों का सम्मान तू करना।
विनती करती है तुझसे बहना।
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श्रावण की पूनम
सदा सभी को केशव बनकर।
रक्षा करना तुम चीर बढ़ाकर।
नारियों का सम्मान तू करना।
विनती करती है तुझसे बहना।
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श्रावण की पूनम
इस उत्सव की उजास
दिलों में बसा नेह का प्रकाश
बहन का प्रेम और विश्वास
भाई द्वारा दिए रक्षा के आश्वास
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भाई के वियोग में निकले अनुराधा जी के मन के भाव
जो अंतरात्मा तक को पीड़ा से भर दे रही है..
भाई के वियोग में निकले अनुराधा जी के मन के भाव
जो अंतरात्मा तक को पीड़ा से भर दे रही है..
बिखर गए धागे राखी के
छूट गई वो कलाई
सारे रंग सारी खुशियां
दे गया सिर्फ
एक खालीपन
कभी न खत्म होने वाली
मेरे मन की पीड़ा
बहुत दर्द भरी है
तुम बिन पहली राखी
******
राखी
पावन रेशम डोर,बाँधे बंधन नेह के ।
भीगे मन का कोर,खुशियों के त्यौहार में।।(३)
सजती राखी हाथ,तिलक सजा के शीश पर।
उन्नत तेरा माथ,बहना दे आशीष ये ।।(४)
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बिखर गए धागे राखी के
छूट गई वो कलाई
सारे रंग सारी खुशियां
दे गया सिर्फ
एक खालीपन
कभी न खत्म होने वाली
मेरे मन की पीड़ा
बहुत दर्द भरी है
तुम बिन पहली राखी
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राखी
पावन रेशम डोर,बाँधे बंधन नेह के ।
भीगे मन का कोर,खुशियों के त्यौहार में।।(३)
सजती राखी हाथ,तिलक सजा के शीश पर।
उन्नत तेरा माथ,बहना दे आशीष ये ।।(४)
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राखी: बहन की रक्षा
राखी के पहले दिन शिल्पा अपने दोनों बच्चों दीपाली
(उम्र 10 साल) और दीपक (उम्र 15 साल) के साथ उसके
मायके वर्धा जाने के लिए ट्रेन से निकली।
उसके छोटे भाई की शादी के बाद आज पहली बार
वो मायके जा रही थी।
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रक्षाबंधन
बांधी राखी और दीं दुआएं भर पूर
रोली चावल से लगाया टीका
करवाया मुंह मीठा फेनी घेवर से |
भाई ने झुक कर
छुए पैर चाहा आशीष जीजी से
बहन नें की कामना
भाई की दीर्घ आयु की |
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अगर ये उपहारों का लेन-देन परम्परा ना हो कर "खुशी" होती तो राखी
हमेशा अपने बचपन वाले स्वरूप में, भाई बहन का प्यार
दिन-ब-दिन बढ़ता कभी कम नहीं होने देता।
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अगर ये उपहारों का लेन-देन परम्परा ना हो कर "खुशी" होती तो राखी
हमेशा अपने बचपन वाले स्वरूप में, भाई बहन का प्यार
दिन-ब-दिन बढ़ता कभी कम नहीं होने देता।
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"माँ"
माँ इतनी आशीष दें !
कर सके कोई अर्पण तुम्हें...
प्रेम से तुमने सींचा हमें
बढ सकें यूँ कि छाँव दें तुम्हें...
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जग सरवर स्नेह की बूँदें
भर अंजुरी कैसे पी पाती
बिन " पापा " पीयूष घट आप
सरित लहर में खोती जाती
प्लावित तट पर बिना पात्र के
मैं प्यासी रह जाती!
भर अंजुरी कैसे पी पाती
बिन " पापा " पीयूष घट आप
सरित लहर में खोती जाती
प्लावित तट पर बिना पात्र के
मैं प्यासी रह जाती!
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सावन के बहाने, बुला भेजो बाबुल,
बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।
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चलते-चलते सतीश सक्सेना जी की एक भावपूर्ण रचना(फेसबुक से)
नारी के अंतर्मन के भावों को बेहद खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है आपने
कुछ भाभी ने हंसकर बोला, कुछ कह दिया इशारों ने -सतीश सक्सेना
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कैसे प्यार छिना,पापा की
गुड़िया , का दरवाजे से ,
कैसे जुदा हुई थी लाड़ो
भारी गाजे बाजे से !
जब से विदा हुई है घर से ,
क्या कुछ बहा,हवाओं में !
कुछ तो दुनियां ने समझाया , कुछ अम्मा की बांहों ने !
किसने सीमाएं समझायी
किसने गुड़िया छीनी थी !
किसने उसकी उम्र बतायी
किसने तकिया छीनी थी !
कहाँ गए अधिकार पुराने,
क्या सुन लिया दिशाओं में !
कुछ तो बहिनों ने बतलाया,कुछ कह दिया बुआओं ने !
कहाँ गया भाई से लड़ना
अपने उन , सम्मानों को !
कहाँ गया अम्मा से भिड़ना
अपने उन अधिकारों को !
कुछ तो डर ने समझाया था
कुछ पढ़ लिया रिवाजों में !
कुछ भाभी ने हंसकर बोला, कुछ कह दिया इशारों ने !
पापा की जेबें, न जाने
कब से राह , देखती हैं !
कौन तलाशी लेगा आके
किसकी चाह देखती हैं !
कुछ दूरी पर रहे लाड़ली,
सुखद गांव की छावों में !
कुछ गुलमोहर ने समझाया, कुछ घर के सन्नाटों ने !
कैसे बड़ी हो गयी मैना
कैसे उड़ना सीख लिया !
कैसे ढूंढें, तिनके घर के ,
कैसे जीना सीख लिया !
खेल, खिलौने खोये अपने,
इन ससुराल की राहों में !
कुछ तो आंसू ने समझाया , कुछ बाबुल की बाँहों ने !
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आज "5 अगस्त" भारत के लिए एक अविस्मरणीय दिन बनने जा रहा है...
हम सौभाग्यशाली हैं जो इस समय के साक्षी बन रहें हैं...
आइये, घर-घर दीप जलाकर "प्रभु राम "के स्वागत की तैयारी करते हैं...
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आज का सफर यही तक
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
आज "5 अगस्त" भारत के लिए एक अविस्मरणीय दिन बनने जा रहा है...
हम सौभाग्यशाली हैं जो इस समय के साक्षी बन रहें हैं...
आइये, घर-घर दीप जलाकर "प्रभु राम "के स्वागत की तैयारी करते हैं...
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आज का सफर यही तक
आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
वाह! प्रिय कामिनी। कमाल की प्रस्तुति सखी ।युग बीत गए, नेट और जेट का जमाना आ गया, पर बाबुल बेटी का संबंध तो ज्यों का ज्यों रहा। इसमें व्याप्त भावनाओं की प्रगाढ़ता को समय हरगिज कम नहीं कर पाया है । भाई-बहन, माता -पिता और मायका एक लड़की के लिए सदैव हृदय की पीर रहे !मायका तो
जवाब देंहटाएंन ऐसी है मुंडेर कोई
ना सानी कोई इस छत का ___
के एहसास के साथ एक लड़की के मन का सबसे बड़ा अवलंबन रहा । आज के इस श्रमसाध्य अंक की क्या कहूँ? आँखें नम कर देने वाली चर्चा है आज की। मगर सतीश जी की रचनाओं का कोई जवाब नहीं। बाकी सभी रचनाएँ भी शानदार हैं। सभी को शुभकामनायें और बधाई। यही दुआ है अपनों का साथ सदैव बना रहे। आज का एतहासिक दिन और राम लला का अयोधया में अभिनंदन, सभी को बधाई। 🙏🙏
रामलला का सजा दरबार।
दीप जले द्वार द्वार!!
गाओ मंगल और बधाई
घर लौट आये हमारे सरकार🙏🙏
तुम्हें शुभकामनायें सखी। हार्दिक स्नेह के साथ🌹🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹
दिल से धन्यवाद सखी,हम सौभाग्यशाली हैं जो इस समय के साक्षी बने हैं,कितने संघर्षों के बाद ये दिन देखना नसीब हुआ,इस पावन दिन की हार्दिक बधाई
हटाएंबहुत सुंदर चर्चा, आभार
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ऋषभ जी ,सादर नमन
हटाएंसुंदर चर्चा। जय श्री राम।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमन
हटाएंबहुत ही हृदय स्पर्शी चर्चा अंक ,सच कहा सखी उस बेटी के मन की पीड़ा भला कोई क्या समझेगा,जिसका अपना घर ही अपना रहता हो,मायके और ससुराल के बीच बंटी
जवाब देंहटाएंन जाने कितनी वेदनाएं उसके अंतर्तम को छलनी करती है,काश ये परंपरा न होती तो कोई बेटी बाबुल से जुदा न होती।
बेहतरीन रचनाएं, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏 मेरी रचना को और मेरे भाई की याद को इस चर्चा अंक में स्थान देने के लिए सहृदय आभार। सबकुछ था मेरा भाई।अब बस यादें हैं , जिन्हें संजोए अपनी वेदना के घूँट प्रतिदिन पीती हूँ।
आपकी वेदना को मैं समझ सकती हूँ सखी,भाई के याद में लिखी आप दोनों बहनों की रचनाएँ ह्रदय को पीड़ा से भर देती है,मैं आप दोनों की और रचनाएँ लेना चाहती थी लेकिन लिंक बहुत ज्यादा हो रहा था। आपके भाई जहाँ भी हो भगवान उन्हें शुकुन दे। अब तो बस उनकी यादों को सहेजे रखना है ,दिल से आभार आपका सखी
हटाएंमेरी रचनाएं राखी पर्व विशेषांक में सम्मिलित करने हेतु
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कामिनी जी .श्रमसाध्य और संग्रहणीय है आज की चर्चा. ।। जय श्री राम ।।
सहृदय धन्यवाद मीना जी,जय श्री राम
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तावना के साथ और सुंदर लिंकों के सजा है आज का अंक।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने कब लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
दिल से शुक्रिया ज्योति जी,सादर नमस्कार
हटाएंहृदय को तरंगित करती हुई सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकामिनी सिन्हा जी आपका आभार।
सहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंवाह!सखी बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सखी,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया अनुराधा जी,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत-बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सुजाता जी,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया कविता जी,सादर नमस्कार
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण भूमिका के साथ शानदार चर्चा प्रस्तुति ....बेटी बाबुल मायका राखी पर सभी रचनाएं बहुत ही उत्कृष्ट एवं लाजवाब।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !
दिल से शुक्रिया सुधा जी,सादर नमस्कार
हटाएंबेहतरीन रचनाओं की सुन्दर प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को बधाई । बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए आपको साधुवाद ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंसुंदर रचना संकलन
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया भारती जी,सादर नमस्कार
हटाएंशानदार अंक आंखों को नम करती प्रस्तुति कामिनी जी आपने सुंदर लिंक चयन कर चर्चा को बहुत मनोरम सामायिक सुंदर बना दिया सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया कुसुम जी,सादर नमस्कार
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति उत्तम रचना संग्रह।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमस्कार
हटाएंभावुक कर देनेवाली बहुत सुंदर प्रस्तुति प्रिय कामिनी। मेरी रचना को लेने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी,सादर नमस्कार
हटाएंधन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए मीना जी |
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचनाएं वो भी एक साथ बहुत खुब संग्रह
जवाब देंहटाएं