Followers



Search This Blog

Monday, August 24, 2020

'उत्सव हैं उल्लास जगाते' (चर्चा अंक-3803)

सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

न्याय व्यवस्था में 
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 
गंभीर बहस में तब्दील हो गई है,
लगता है करोना महामारी से त्रस्त 
पीड़ित मानवता अब हील हो गई है। 
-रवीन्द्र सिंह यादव 
 
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

उच्चारण 

--

हम लोगों की छवि बनाते हैं 

 लोगों के बारे मेंं  

लोगों को घर घर जा जा कर  समझाते है 


हजूर
आप करते क्या हैं
हम करते तो हैं कुछ
लेकिन उस करने का बस वेतन खाते हैं 
बाकि काम बहुत हैं
धन्धों के अंदर के
कुछ धन्धों की बात बताते हैं

--
नीरवता के दौरान…
काम-काज की खटपट के साथ
किसी पेड़ से 
पक्षी की टहकार
एकांत का ...
वाद्ययन्त्र लगता है
क्योंकि इससे जीवन राग  
 जो गूंजता है…
--
अपने जीते जी ये दवा कर ले 
My Photo
अपने जीते जी ये दवा कर ले,
मौत से पहले ही दिया कर ले ।
हम तो हैं वक़्त के सुनो पाबंद,
मेरे संग मिल के ये दुआ कर ले ।
--
पापा मैं आपको सोचती,
और फिर आपकी हथेली
में होती मेरी उँगली,
जिया हुआ,बेहद सुखद क्षण
सजीव हो उठता,
या फिर …
जब मेरे दोनों बाजू थाम
मुझे आप, हवा में उछालते
मैं चहक कर कहती
और ऊपर …
लगता था वक़्त बस यहीं थम जाये!
--
" नदी के तट सी मुझसे बना दूरियां " 
ख़ामोशी का इक कवच ओढ़ कर
मौन के यज्ञ ग़म का हवन बस किये
तान वितान नजदीक तुमने तन्हाई का 
मेरे कौतूहल का हँसकर शमन बस किये ।
नदी के तट सी मुझसे बना दूरियां 
गीला मन क्यों पाषाण सा कर लिया
मन का मकरंद मैं तुम पर लुटाती रही
मुझे भी तुमने भींगे सामान सा कर लिया ।
--

इबादत कर के देखेंगे 

आज फिर तेरी इबादत कर के देखेंगे,
अब इल्ज़ामों से हमें ख़ौफ़ नहीं
होता, कि कौन है बुत और
कौन निराकार देवता,
तेरी निगाह में
है अगर
दो
बूंद ज़िन्दगी की, सारी  दुनिया से - -
हम अदावत कर के देखेंगे,
लोग कहते हैं कि दोनों

--
दईयो दईयो अखंड सुहाग माईं तीजा
निरजल व्रत मैय्या मैंने राखो
मों में अन्न तनक नईं डारो
दईयो दईयो अखंड सुहाग माईं तीजा
अपनो साज सिंगार करो है
तुम्हरो साज सिंगार करो है
दईयो दईयो अखंड सुहाग माईं तीजा
--
पत्नियाँ महान हैं, पत्नियाँ महान हैं।
पत्नियाँ घर की आन - बान औ' शान हैं।
पतियों तुम बदलो न चाल हर घड़ी,
तुमपे जिम्मेदारियाँ आन है पड़ीं।
परिवार को समृद्ध और यशस्वी बनाना,
पतियों को साधना रत और तपस्वी बनाना।
--
My Photo
बूँद और मोती
बहुत दिनों बाद उसको देख कर वह किलक पड़ी : अरे !तुम ... 
कितने दिनों बाद मुलाकात हुई है और ये क्या ... तुम मुझसे इतने अलग कैसे लगने लगे 
 मोती : मतलब ?
बूँद : आसमान से तो हम दोनों ने साथ ही यात्रा शुरू की थी ।
मोती : हाँ ! की तो थी ...
बूँद : फिर तुम में इतनी चमक भर गई  
और मैं ...
--
ऐसी निष्ठुर रीत से उनकी
ये प्रथम मुलाकात हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई
शब्द चुभे हिय में नश्तर से
नयनों से लहू टपकता था
पतझड़े पेड़ सा खालीपन
मन सूनेपन से उचटता था
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कण्टक की बरसात हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई
--
आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 
रवीन्द्र सिंह यादव
--

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर-सार्थक और सन्तुलित चर्चा।
    आपका आभार आदरणीर रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    ReplyDelete
  2. सार्थक चर्चा ।
    बहुत बहुत आभार रवीन्द्र यादव जी ।

    ReplyDelete
  3. सुन्दर और सार्थक चर्चा । सादर आभार आदरणीय रविंद्र जी चर्चा में सृजन सम्मिलित करने हेतु ।

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन चर्चा अंक ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन सर

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  8. उम्दा पठनीय रचनाओं के साथ शानदार चर्चा प्रस्तुति
    मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद रविन्द्र जी!
    सादर आभार।

    ReplyDelete
  9. ह्रदय से आभार, सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति - - नमन सह।

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।