स्नेहिल अभिवादन !
चर्चा मंच पर आप सभी विद्वजन का हार्दिक
स्वागत है। कल हमारा परम प्रिय राष्ट्रीय
पर्व स्वतंत्रता दिवस है । हम सभी भारतीयों को हमारे स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम बधाई एवं
हार्दिक शुभेच्छाएं ।
ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कांतिमय हो
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो
- रामप्रसाद बिस्मिल
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मातृभूमि का गौरवगान करती "बिस्मिल जी" की इन पंक्तियों के साथ प्रस्तुत हैं मेरे द्वारा चयनित आज की चर्चा के लिंक्स --
लाठी-गोली खाकर कारावास, जिन्होंने झेला था,
वो पुख़्ता बुनियाद, हमारी आजादी की थाती है।
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खोल पुरानी पोथी-पत्री, भारत का इतिहास पढ़ो,
यातनाओं के मंजर पढ़कर, छाती फटती जाती है।
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आओ अमर शहीदों का, हम प्रतिदिन वन्दन-नमन करें,
आजादी की वर्षगाँठ तो, एक साल में आती है।
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बादल का मुसाफ़िर होना गुज़र जाना
समय के काग़ज़ पर लिखा यथार्थ था।
मरुस्थल के आरोह-अवरोह से जूझना
नागफनी की रग-रग में बसा परमार्थ था।
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उसने देखा भारत माता खुदीराम बोस की प्रतिमा से कुछ कह रही थीं। हाँ ,याद हो आया..इसी अमर क्रांति दूत की शहादत से जुड़े गीत उसने ऐसे राष्ट्रीय पर्वों पर कोलकाता में अपने विद्यालय में सुना था । मात्र 19 वर्ष की अवस्था में खुदीराम आजादी के दस्तावेज़ पर सुनहरे अक्षरों में अपना हस्ताक्षर बना बढ़ गये थे , उस मंजिल की ओर जिसके समक्ष यदि अमृत कलश भी बेमानी है।
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ऐ कबूतर
कौओं के बीच घिरा रहता है
काँव काँव
फिर भी नहीं सीखता है
बस अपनी
गुटुर गूँ करने में लगे रहता है
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पीला पात डाल से बिछड़ा
संग पवन के डोले इत उत,
हम भी बिछुड़े अपने घर से
पता खोजते गली-गली में !
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प्रेम की सारी मान्यतायें
भक्ति काल में ही
जीवित थी
आधुनिक काल में तो प्रेम
सूती कपड़ों की तरह
पहली बार धुला
औऱ सिकुड़ गया
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15 अगस्त " स्वतंत्रता दिवस " यानि हमारी आज़ादी का दिन- लगभग 200 वर्षो तक गुलामी का दंस झेलने के बाद ,लाखों लोगो के कुर्बानियों के फ़लस्वरुप, हमें ये दिन देखने का सौभाग्य मिला। "15 अगस्त" वो दिन, जिस दिन पहली बार हमारे देश का तिरंगा ध्वज लहराया और हमें भी उन्मुक्त होकर उड़ने की आजादी मिली।हम हिन्दुस्तानियों के लिए हर त्यौहार से बड़ा, सबसे पावन त्यौहार है ये।
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शांता देवी का उल्लेख अपने यहां तो जगह-जगह मिलता ही है, लाओस और मलेशिया की कथाओं में भी उसका विवरण मिलता है। पर आश्चर्य इस बात का है कि रामायण या अन्य राम कथाओं में उसका उल्लेख नहीं
है ? पता नहीं क्यूं, असमान उम्र तथा जाति में ब्याह दी गयी कन्या का अपने समाज तथा देश के लिये चुपचाप किए गए त्याग का कहीं विस्तृत उल्लेख किया गया ?
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उन्हीं बीजों से निकलेंगी
खेतों की कविताएँ,
जिनमें महकेगी मिट्टी,
झूमेंगी बालियाँ,
जिनको खोलो,
तो दिखेंगे
धान और गेहूँ के दाने.
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कंटक पथ पे वीर चले थे
मन भारत की शान लिए।
कड़ी चुनौती से टकराए
कभी नहीं भयभीत जिए।
अपनी धरती का मान बढ़े
यही राह है दिखलाना।
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साँसों की सीढ़ियों से उतर आई ज़िन्दगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम
उम्रों की धूप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफ़ताब, मगर ढल रहे हैं हम
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ये शेर हैं शायर राहत इंदौरी के, जो अब हमारे बीच नहीं रहे। कोरोना ने उन्हें 11 अगस्त 2020 को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया। लेकिन वे भले ही इस दुनिया से कूच कर गए, उनकी शायरी हमेशा ज़िंदा रहेगी।
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इजाजत दें...फिर मिलेंगे..
आपका दिन मंगलमय हो..
🙏 🙏
"मीना भारद्वाज"
आज की सुंदर प्रस्तुति के मध्य मंच पर मेरे सृजन 'माँ का रुदन 'को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार मीना दीदी जी।
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस पर्व की सभी को बहुत सारी शुभकामनाएँ।
हम सभी के हृदय में राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र गौरव की भावना हो, हम अपने नागरिक कर्तव्य को समझें, हम राष्ट्र पर बोझ बन कर नहीं,उसका बोझ अपने कंधों पर लेकर जीवित रहें, ऐसी कामना करता हूँ।
बहुत सुंदर और हृदयस्पर्शी रचना हेतु बधाई व्याकुल पथिक जी 💐
हटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुमकामनाएं आपको भी 💐
जी प्रणाम, आभार।🙏
हटाएंआभार मीना जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बहुत अच्छी....
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार 🙏
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं चर्चा मंच की पूरी टीम और सुधी पाठकों को 💐
बढ़िया चर्चा आज की
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत साधुवाद
सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंसराहनीय भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति। मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय मीना दी।
जवाब देंहटाएंसादर
स्वतन्त्रता दिवस के लिए शुभकामनायें ! पठनीय रचनाओं की खबर देते सूत्र, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार मीना जी !
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा. मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।
जवाब देंहटाएं"ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो" रामप्रसाद बिस्मिल जी की ये पंक्तियाँ सदा अमर रहेंगी, विविधताओं से भरी सराहनीय प्रस्तुति मीना जी,मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रासहनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
आपको साधुवाद