सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
--
स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आज हमारी स्वाधीनता की 73 वीं वर्षगाँठ और 74 वां स्वतंत्रता दिवस है।
यहाँ हम अक्सर भ्रम में पड़ जाते हैं। इसे समझने के लिए सीधा गणित है कि पहला स्वतंत्रता दिवस हमने 15 अगस्त 1947 को मनाया। स्वाधीनता की पहली वर्षगाँठ 15 अगस्त 1948 को हमने दूसरा स्वतंत्रता दिवस मनाया।
देश के समक्ष अनेक चुनौतियों को पार करते हुए हमारी स्वतंत्रता का सफ़र 74वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है।आज देश के समक्ष एकता, अखंडता, भाईचारा, सैन्य क्षमता, विकास, अर्थ-व्यवस्था, रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पड़ोसियों से संबंध आदि अनेक चुनौतियाँ समाधान के लिए मुँह बाए खड़ीं हैं।
सांप्रदायिक उन्माद, दंगे, नफ़रत का माहौल, सामाजिक विभाजन इस हद तक कि देश में लेखक और कलाकार तक बँट गए। यह कोई उपलब्धि नहीं बल्कि किसी भी देश के लिए गंभीर चिंतन का विषय है क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों को खोखला बनाने की एक अनचाही दशा है।
आइए हम प्रण करें कि अपने मन, वचन, कर्म से देश को मज़बूत करेंगे और समर्पित होकर अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे।
जय हिंद !
-अनीता सैनी
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आज हमारी स्वाधीनता की 73 वीं वर्षगाँठ और 74 वां स्वतंत्रता दिवस है।
यहाँ हम अक्सर भ्रम में पड़ जाते हैं। इसे समझने के लिए सीधा गणित है कि पहला स्वतंत्रता दिवस हमने 15 अगस्त 1947 को मनाया। स्वाधीनता की पहली वर्षगाँठ 15 अगस्त 1948 को हमने दूसरा स्वतंत्रता दिवस मनाया।
देश के समक्ष अनेक चुनौतियों को पार करते हुए हमारी स्वतंत्रता का सफ़र 74वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है।आज देश के समक्ष एकता, अखंडता, भाईचारा, सैन्य क्षमता, विकास, अर्थ-व्यवस्था, रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पड़ोसियों से संबंध आदि अनेक चुनौतियाँ समाधान के लिए मुँह बाए खड़ीं हैं।
सांप्रदायिक उन्माद, दंगे, नफ़रत का माहौल, सामाजिक विभाजन इस हद तक कि देश में लेखक और कलाकार तक बँट गए। यह कोई उपलब्धि नहीं बल्कि किसी भी देश के लिए गंभीर चिंतन का विषय है क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों को खोखला बनाने की एक अनचाही दशा है।
आइए हम प्रण करें कि अपने मन, वचन, कर्म से देश को मज़बूत करेंगे और समर्पित होकर अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे।
जय हिंद !
-अनीता सैनी
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjG1Tn0La8ABn6JtA8ELdB068DVehP9UmQHLGyQibhlPsaH1ofDhHz9vIlzadUeYzsT3tgY5uJ1vNa0GzobavwtwGH9DeY1PtQdGP77LvY2LvnL3T6dYzIjSxo2ltb7ygDcJpTUDSTMUMGy/s400/1+MYPhoto.jpg)
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बुंदेली लोकगीतों में स्वाधीनता का स्वर |
स्वतंत्रता दिवस |डॉ. वर्षा सिंह
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3blaBCgCFAhRBMZz6eGdOeAGrGGUNJhYGU4D32OVCqHq2-vT-pUutHFVIj64ffp8S3lz7gIiepSftwj4EhUzdae9jwQZdvoz3sxkCuyz1SFUnM6H7DO7oT-s3bps5Yfe1IFYayaDtpcAS/s200/1597313545378833-0.png)
बुंदेली लोकगीतों में स्वाधीनता का स्वर |
स्वतंत्रता दिवस |डॉ. वर्षा सिंह
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3blaBCgCFAhRBMZz6eGdOeAGrGGUNJhYGU4D32OVCqHq2-vT-pUutHFVIj64ffp8S3lz7gIiepSftwj4EhUzdae9jwQZdvoz3sxkCuyz1SFUnM6H7DO7oT-s3bps5Yfe1IFYayaDtpcAS/s200/1597313545378833-0.png)
अन्य कई लोक- गाथाओं की तरह आल्ह- रुदल भी समय के साथ अपने मूल रुप में नहीं रह गया है। इसने अपने आँचल में नौं सौ वर्ष समेटे हैं। विस्तार की दृष्टि से यह राजस्थान के सुदूर पूर्व से लेकर आसाम के गाँवों तक गाया जाता है। इसे गानेवाले "अल्हैत' कहलाते हैं। साहित्यिक दृष्टि से यह "आल्हा' छंद में गाया जाता है। हमीरपुर (बुंदेलखंड) में यह गाथा "सैरा' या "आल्हा' कहलाती है। इसके अंश "पँवाड़ा', "समय' या "मार' कहे जाते हैं। सागर, दमोह में भी आल्हा गायकों की कमी नहीं। वीरता के लोकमूल्य को उजागर करती ' आल्हा' की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-
मानसु देही जा दुरलभ हैस आहै समै न बारंबार ।
पात टूट कें ज्यों तरवर को कभऊँ लौट न लागै डार ।।
मरद बनाये मर जैबे कों खटिया पर कें मरै बलाय ।
जे मर जैहैं रनखेतन मा, साकौ चलो अँगारुँ जाय ।।
--![जो मेरा मन कहे](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzqCA4H9ShH0Qicw9sUpbAbjh5RwK7IpQ9fPoKSMc6oYfb2vR1W3mkKNQcxT0yMbIV2yFtflEVxc57GIGH9ZqlyHeK5yIqS2xWJMTtQQwRoHBm5UHZOvqbn5LUxgWvto-1g7nCy45UOQk/s200/JMK0104111111.jpg)
एक अजीब सी दुविधा
एक अजीब सी आशंका
हर कदम पर
हाथ पकड़ कर
खींच ले रही है
अपनी ओर
जाने नहीं देना चाहती
उस ओर
जहाँ
मन की देहरी के उस पार
मुक्ति
कर रही है
बेसब्री से
मेरा इंतजार।
--
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXOFjZ2zx6Sx1TTILGZ-Wu0LsSgErD9KToB9amsIDe6TB8mYnTIVzU0lh6SbnjihoS9iT_fMheEyFFPlUjnR6uuHf_ogx3E8GVGP3vriQ3PXzubFE0y3DL4QWVSNcd8MQKQoIA3IIVl9GG/s320/51Xc5S3UKmL._SX330_BO1%252C204%252C203%252C200_.jpg)
आँधी आने के बाद
बिखरे सामानों को व्यवस्थित करने के क्रम में
सब ठीक होने लगता है
सुना है
देखा है
आदमी भूल जाता है सब कुछ
आँधी के समय
याद अपनों की आने लगती है
ओ ,बाँके-बिहारी !
![My Photo](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBKEFH6JUZ3f-g-VeUdXNgP_ER19QQZoKZfcfG1Cr8jOkx3y7qk8vUV9doRVQVJ9EjOJYjyuwPjrc6JpnlsKl5EAcGe7fef_3NNmcZivFV_ZAmzpsmAo3zQxli9S87Wogee3N2_1jtYml_/s200/DONE.jpg)
![My Photo](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBKEFH6JUZ3f-g-VeUdXNgP_ER19QQZoKZfcfG1Cr8jOkx3y7qk8vUV9doRVQVJ9EjOJYjyuwPjrc6JpnlsKl5EAcGe7fef_3NNmcZivFV_ZAmzpsmAo3zQxli9S87Wogee3N2_1jtYml_/s200/DONE.jpg)
तुम्हरे ही प्रेरे, निरमाये तिहारे ही ,
हम तो पकरि लीन्हों तुम छूटि कितै जाओगे !
लागत हो भोरे ,तोरी माया को जवाब नहीं,
नेकु मुस्काय चुटकी में बेच खाओगे !
--
तलाश
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjND7mIrpbIbKUkqMqHYPB25JKCTIAlGeUPO6awyMxipuGdsx6HUuNOf8vZwF456CYBqNL2A7FLHhrtHY0j66ibSj9ZiY7iNAdmd8Yx5UUi6uCkBLQ1h-uZUmmtuBuqAolIPiBHyw4X5m5R/s320/b.jpg)
नदी मुस्कुराई थोड़ी शरमाई
माना कि जरूरी है
पाना लक्ष्य
किन्तु मर्यादा का भी होता है
अपना महत्व
किनारे लौट गए
दूसरी नदी की तलाश में ।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjND7mIrpbIbKUkqMqHYPB25JKCTIAlGeUPO6awyMxipuGdsx6HUuNOf8vZwF456CYBqNL2A7FLHhrtHY0j66ibSj9ZiY7iNAdmd8Yx5UUi6uCkBLQ1h-uZUmmtuBuqAolIPiBHyw4X5m5R/s320/b.jpg)
नदी मुस्कुराई थोड़ी शरमाई
माना कि जरूरी है
पाना लक्ष्य
किन्तु मर्यादा का भी होता है
अपना महत्व
किनारे लौट गए
दूसरी नदी की तलाश में ।
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किसी की याद में डूबी आँखे
किसी की याद में डूबी आँखे
हैं आँसुओं से डबडबाई आँखे
वादा किया था लौट आएगा
ये उसी की राह तकती आँखे
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQu_Kg81LtTuPivNp2PrmmvfmxP2asIU_5ZaX6pdTTr266nvZTYQZksSf86I0WB-m0cAhoag-IqYyZ7AuBLClz0NbF9RcCFmlMWj8CCwY2ruwPp_phKCDbCMHSNJyoOxKjKSrWmKrTcIRd/s320/15+august.jpg)
हाँ जी साहब! फिर आ गया। हर साल ही आता है। कम से कम एक छुट्टी तो मिलती है। इस साल तो इतनी छुट्टियाँ मिल चुकी हैं कि अब उसकी भी प्रतीक्षा नहीं रही। कुछ सिर फिरे लोग फिर भी देश-प्रेम के गीत, जोश से भरने वाले गानों को ज़ोर से बजाएँगे। मुहल्ले के कुछ लोग कार्यक्रम करने के नाम पर चंदा जमा कर गुलछर्रे उड़ायेंगे। बच्चे जोश भरे गीत गुनगुनाएँगे। टीवी पर वैसी ही फिल्में देखनी पड़ेगी, वैसे ही गाने सुनने पड़ेंगे। खबरों में भी यही छाया रहेगा। कौन से राज्य में पंद्रह अगस्त कैसे मनाया गया, प्रधान मंत्री ने लाल किले से क्या बोला, वगैरह वगैरह। कोविद-19 के चलते हो सकता है शायद ऐसा कुछ न हो या कुछ कम हो। लेकिन यह दिन बस एक, केवल एक दिन के लिए, न उसके पहले न उसके बाद। सब भूल कर यथावत हो जाएगा। देश गया...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKtr9aZfTsunvMDMz9MPSyLcfiZoA1h6SQCTmjMb4iTR87smIa8Ybj7C3zRHGepCD8R6jEb4MFpQLDQ5xEW_DBb7xcpZWBGzYBBLsKcwl-Pf5e712eMGTDVDqVUdvws9mE3GiGTvEUOo13/s320/1920px-Physical_Differences_Between_African_and_Asian_Elephants.svg.png)
विश्व के दो महाद्वीपों के कुछ हिस्सों में हाथियों का साम्राज्य है। एशिया महाद्वीप में ऍलिफ़स और उसके संतान मैक्सिमस, इन्डिकस और सुमात्रेनस का साम्राज्य है और अफ्रीका में लॉक्सोडॉण्टा और उसके संतान अफ़्रीकाना और साइक्लोटिस का।
गर्मियों के दिन शुरू होने वाले थे। मैक्सिमस, इन्डिकस और सुमात्रेनस ने अपने पिता से कहा, “आपने एक बार कहा था कि हमलोगों को आप अपने बड़े भाई के देश घुमाने ले चलेंगे। तो क्यों न इन गर्मियों की छुट्टियों में हम सभी अफ्रीका चलें?”
ऍलिफ़स ने कहा, “तो चलो! अगले महीने की एक तारीख को हमलोग अफ्रीका यात्रा पर चलेंगे, परन्तु अभी तुमलोगों की स्कूल में परीक्षा चल रही है, इसलिए तुमलोग पढ़ाई पर ध्यान दो।” और हिदायत देते हुए कहा कि परीक्षा के बाद ही यात्रा की तैयारी करनी है।
--
![My Photo](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihtmZdsVeS44VznTtG-h2VK2Si6IwCK6i1rUDtbI3Cp0joHDLq2aSQVqRA0x_cb8ojH3fbMq0ZklTTr-DKZcQIjAkzAKyGE53bubzyfHRKrgxuxGAP7akWrd1aySR-rGjF2t9JR4p4D9s/s320/WhatsApp+Image+2020-07-07+at+22.36.02.jpeg)
तुम्ही विरह संयोग हो तुम
तुम्ही मिलन आमोद हो तुम
तुम गलत पते पे आ गए हो
यहाँ न तो तुम्हारा कोई अपना है
और न तुम्हे कोई जानता है
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लीजिये! फिर आ गया पंद्रह अगस्त![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQu_Kg81LtTuPivNp2PrmmvfmxP2asIU_5ZaX6pdTTr266nvZTYQZksSf86I0WB-m0cAhoag-IqYyZ7AuBLClz0NbF9RcCFmlMWj8CCwY2ruwPp_phKCDbCMHSNJyoOxKjKSrWmKrTcIRd/s320/15+august.jpg)
हाँ जी साहब! फिर आ गया। हर साल ही आता है। कम से कम एक छुट्टी तो मिलती है। इस साल तो इतनी छुट्टियाँ मिल चुकी हैं कि अब उसकी भी प्रतीक्षा नहीं रही। कुछ सिर फिरे लोग फिर भी देश-प्रेम के गीत, जोश से भरने वाले गानों को ज़ोर से बजाएँगे। मुहल्ले के कुछ लोग कार्यक्रम करने के नाम पर चंदा जमा कर गुलछर्रे उड़ायेंगे। बच्चे जोश भरे गीत गुनगुनाएँगे। टीवी पर वैसी ही फिल्में देखनी पड़ेगी, वैसे ही गाने सुनने पड़ेंगे। खबरों में भी यही छाया रहेगा। कौन से राज्य में पंद्रह अगस्त कैसे मनाया गया, प्रधान मंत्री ने लाल किले से क्या बोला, वगैरह वगैरह। कोविद-19 के चलते हो सकता है शायद ऐसा कुछ न हो या कुछ कम हो। लेकिन यह दिन बस एक, केवल एक दिन के लिए, न उसके पहले न उसके बाद। सब भूल कर यथावत हो जाएगा। देश गया...
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ये सोशल मीडिया है… बुरी ज़हनियत को नंगा भी कर देता है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjChaH2kp5uNbXzhGz1iBYv4yGdR8CPsAK-8-NQnicZTRnmYaxcAM2zWlAdEveYRpRjvgxgpU76QNGpYi0vTA39Nfx4OGl0lYVBYpiexSPjRex7YFeqe-wawXMI31nPH-wMsp5bmkEpmZMl/s320/social-media-exposed-them.jpg)
हाल ही में घटित हुए तीन उदाहरणों से मैं एक बात पर पहुंची हूं कि दंगाई हों, सफेदपोश नेता हों, कवि हों या शायर हों, इस सोशल मीडिया के समय में किसी की कारस्तानी छुपी नहीं रह सकती। कल तक हम जिन्हें सिर आंखों पर बैठाते थे और अचानक उनकी कोई ऐसी करतूत हमारे सामने आ जाए जो न केवल समाज विरोधी हों बल्कि देश विरोधी भी हो तो इसके लिए हम सोशल मीडिया को ही धन्यवाद देते हैं। फिर मुंह से निकल ही जाता है कि अच्छा हुआ पता चल गया …
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjChaH2kp5uNbXzhGz1iBYv4yGdR8CPsAK-8-NQnicZTRnmYaxcAM2zWlAdEveYRpRjvgxgpU76QNGpYi0vTA39Nfx4OGl0lYVBYpiexSPjRex7YFeqe-wawXMI31nPH-wMsp5bmkEpmZMl/s320/social-media-exposed-them.jpg)
हाल ही में घटित हुए तीन उदाहरणों से मैं एक बात पर पहुंची हूं कि दंगाई हों, सफेदपोश नेता हों, कवि हों या शायर हों, इस सोशल मीडिया के समय में किसी की कारस्तानी छुपी नहीं रह सकती। कल तक हम जिन्हें सिर आंखों पर बैठाते थे और अचानक उनकी कोई ऐसी करतूत हमारे सामने आ जाए जो न केवल समाज विरोधी हों बल्कि देश विरोधी भी हो तो इसके लिए हम सोशल मीडिया को ही धन्यवाद देते हैं। फिर मुंह से निकल ही जाता है कि अच्छा हुआ पता चल गया …
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"स्वतंत्रता दिवस की स्मृतियाँ" 【संस्मरण】
![](https://lh4.googleusercontent.com/xJx6jnsNy2XDOvj5HwBv0Fg7FVI6Hg7Unp-2J--PAORuukiCCmXxizeDq-tuGtMbr86UrJWynEPjukL5eJStdoiKHt4P8HQTotyF8b9V6Go37e3Yec95ylGTHjkoquVu8tzHPsKa)
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का एक अनूठा आकर्षण
रहा है मेरे मन में । बचपन में स्कूली मार्चपास्ट में भाग लेना
और बैंड के साथ कदम से कदम मिलाते राष्ट्रीय ध्वज को
सलामी देते हुए मंच के सामने से गुजरना रोम रोम में पुलकन
भर देता था । मगर नहीं भूल पाती शिक्षिका बनने के बाद का
बैंड की इंचार्ज के रूप में अपना पहला पन्द्रह अगस्त जब
स्कूल की प्रिन्सिपल ने यह दायित्व मुझे सौंपा । दरअसल
हमारे यहाँ स्कूलों की परम्परा थी कि हर शिक्षक को शिक्षण
कार्य के अतिरिक्त एक सहायक गतिविधि का दायित्व भी
वहन करना है ।
--
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में 🙏
--
#अनीता सैनी 'दीप्ति'
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस का एक अनूठा आकर्षण
रहा है मेरे मन में । बचपन में स्कूली मार्चपास्ट में भाग लेना
और बैंड के साथ कदम से कदम मिलाते राष्ट्रीय ध्वज को
सलामी देते हुए मंच के सामने से गुजरना रोम रोम में पुलकन
भर देता था । मगर नहीं भूल पाती शिक्षिका बनने के बाद का
बैंड की इंचार्ज के रूप में अपना पहला पन्द्रह अगस्त जब
स्कूल की प्रिन्सिपल ने यह दायित्व मुझे सौंपा । दरअसल
हमारे यहाँ स्कूलों की परम्परा थी कि हर शिक्षक को शिक्षण
कार्य के अतिरिक्त एक सहायक गतिविधि का दायित्व भी
वहन करना है ।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में 🙏
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#अनीता सैनी 'दीप्ति'
आप सभी चर्चामंच सदस्यों और सभी पाठकों को स्वतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ... सुन्दर रचनाओं से सुशोभित चर्चा....आभार...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के सभी रचनाकारों, पाठकों और चर्चकारों का स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं .सुन्दर चर्चा प्रस्तुति .मेरे सृजन को प्रस्तुति में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार .
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
प्रिय अनीता सैनी जी,
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🇮🇳💐🇮🇳
बहुत अच्छा संयोजन.... मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
कृपया मेरे ब्लॉग Varsha Singh की इस लिंक का भी अवलोकन करने का कष्ट करें, मेरे इस लेख में आपके गीत का भी उल्लेख है।
http://varshasingh1.blogspot.com/2020/07/blog-post_28.html?m=1
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम्।
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
सभी पाठकों को एवं ब्लॉगर मित्रों को
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अनीता सैनी जी आपका आभार।
बहुत ही सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति,चर्चामंच के सभी सदस्यों एवं पाठकगणों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव पूर्ण भूमिका के साथ शानदार अंक सभी रचनाकारों को बधाई।
विविधता और रचनात्मकता का सुंदर संगम है आज का अंक !!! सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता कुसुम या कामिनी हो या फिर छंदबद्ध गीत या अकविता
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना शास्त्री जी की।
बेहतरीन चयन सेतुओं का बधाई।
--
2010 में प्रकाशित
"सुख का सूरज"
मेरी प्रथम काव्य कृति से एक रचना!
--
माता की कृपा बरसती जब,
तब शब्द निकलकर आते हैं।
हो लगन अगर सच्ची मन में,
तब गीत-ग़ज़ल बन जाते हैं।।
--
तुम शब्दयुक्त हो छन्दमुक्त,
बहती हो निर्मल धारा सी।
तुम सरल-तरल अनुप्रासयुक्त,
हो रजत कणों की तारा सी।।
--
आलेख पंक्तियाँ जोड़-तोड़कर
बन जाते है कुछ गद्यगीत।
संयोग-वियोग, भक्ति रस से,
छलकाती माँ तुम प्रीत-रीत।।
--
उपवन में गन्ध तुम्हारी है,
कानन में है मृदुगान भरा।
लगती रजनी उजियारी सी,
सुख के सूरज से सजी धरा।।
--
मेरे कोमल मन के नभ पर,
बदली बनकर छा जाती हो।
इतनी हो सुघड़-सलोनी सी,
सपनों में निशि-दिन आती हो।।
--
तुम छन्द-काव्य से ओत-प्रोत,
कोमल भावों की रचना हो।
जिसमें अनुराग निहित मेरा,
वो सुरसवती सी रसना हो।।
veeruji05.blogspot.com
veerujan.blogspot.com
शानदार चर्चा प्रस्तुति उम्दा लिंको के साथ..
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
हार ना मानी छत्ता तैंने
जवाब देंहटाएंमुगलन को दई धूर चटाय।
कभऊं ना हिम्मत हारी तनकऊ
महाबली राजा कहलाय।
उल्लेख न किया जाए डॉ. वर्षा सिंह (सागर )का चर्चा अधूरी रहेगी।
मानसु देही जा दुरलभ हैस आहै समै न बारंबार ।
पात टूट कें ज्यों तरवर को कभऊँ लौट न लागै डार ।।
मरद बनाये मर जैबे कों खटिया पर कें मरै बलाय ।
जे मर जैहैं रनखेतन मा, साकौ चलो अँगारुँ जाय ।।
साम्य देखियेगा :
बड़े भाग मानुस तनु पावा ,
सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा ,
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा ,
पाइ न जेहिं परलोक सिधारा।
इसी तरह शरीर को पेड़ के पत्ते की तरह नश्वर मानना भी शाश्वत लोकमूल्य है, जो आज भी लोकप्रचलित है।यहां भी एक और साम्य देखिये :
तरुवर बोला पात से सुनो पात एक बात ,
या घर याही रीति है ,एक आवत एक ज़ात।
लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। बुंदेलखंड के ये लोकगीत भी बुंदेलखंड ही नहीं वरन् पूरे देश की धरोहर हैं।
एक कलम कार के बतौर डॉ वर्षा सिंह भी हमारी राष्ट्रीय धरोहर हैं।संभाल के रखना है इन्हें हम सबको।
वीरू भाई
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blog.scientificworld.in
'सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता कुसुम या कामिनी हो या फिर छंदबद्ध गीत या अकविता '-रामाधारी सिंह दिनकर (उर्वशी )
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना शास्त्री जी की।
बेहतरीन चयन सेतुओं का बधाई।
हार ना मानी छत्ता तैंने
मुगलन को दई धूर चटाय।
कभऊं ना हिम्मत हारी तनकऊ
महाबली राजा कहलाय।
उल्लेख न किया जाए डॉ. वर्षा सिंह (सागर )का चर्चा अधूरी रहेगी।
मानसु देही जा दुरलभ हैस आहै समै न बारंबार ।
पात टूट कें ज्यों तरवर को कभऊँ लौट न लागै डार ।।
मरद बनाये मर जैबे कों खटिया पर कें मरै बलाय ।
जे मर जैहैं रनखेतन मा, साकौ चलो अँगारुँ जाय ।।
साम्य देखियेगा :
बड़े भाग मानुस तनु पावा ,
सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा ,
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा ,
पाइ न जेहिं परलोक सिधारा।
इसी तरह शरीर को पेड़ के पत्ते की तरह नश्वर मानना भी शाश्वत लोकमूल्य है, जो आज भी लोकप्रचलित है।यहां भी एक और साम्य देखिये :
तरुवर बोला पात से सुनो पात एक बात ,
या घर याही रीति है ,एक आवत एक ज़ात।
लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। बुंदेलखंड के ये लोकगीत भी बुंदेलखंड ही नहीं वरन् पूरे देश की धरोहर हैं।
एक कलम कार के बतौर डॉ वर्षा सिंह भी हमारी राष्ट्रीय धरोहर हैं।संभाल के रखना है इन्हें हम सबको।
वीरू भाई
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ये है उल्लेखित रचना शास्त्री जी की :
2010 में प्रकाशित
"सुख का सूरज"
मेरी प्रथम काव्य कृति से एक रचना!
--
माता की कृपा बरसती जब,
तब शब्द निकलकर आते हैं।
हो लगन अगर सच्ची मन में,
तब गीत-ग़ज़ल बन जाते हैं।।
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सार्थक चर्चा के लिए अनीता बहन को बधाई। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
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