फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

रविवार, अगस्त 30, 2020

"समय व्यतीत करने के लिए" (चर्चा अंक-3808)

मित्रों!
एक सितम्बर 2020 को अनन्त चतुर्दशी है, 
अर्थात् गणपति बप्पा के विसर्जन में अभी दो दिन शेष हैं।
आइए जानें कि इस दिवस के मूल में क्या है?

अनन्त चतुर्दशी की कथा

महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे। भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं। युधिष्ठिर की बात सुनकर श्री कृष्ण जी ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें। 
इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला।
--
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक...!
--

बालकविता  

"अमरूद गदराने लगे" 

आ गई बरसात तो
अमरूद गदराने लगे। 
स्वच्छ जल का पान कर
डण्ठल पे इतराने लगे।। 
--
स्वस्थ रहने के लिए
खाना इसे वरदान है। 

नाम का अमरूद है, 
लेकिन गुणों की खान है।।
--

अपना परिचय ढूँढ़ने चला हूँ  

(कविता) 

ढूँढने को कुछ - कुछ नया
मैं रहता सदा व्यग्र हूँ।
इस नभ मंडल में गतिमान
मैं ही एक तारा समग्र हूँ।

उल्कापिंडों के टकराव के बाद
निर्माण का एक सिलसिला हूँ।
अपना परिचय ढूढ़ने चला हूँ। 
marmagya.net पर Marmagya  
--

उसके हिस्से का आसमान 

उसे अपना जीवन खुद जीने दो
उसे अपने फैसले खुद लेने दो
उसे अपने सपने खुद
साकार करने दो !
फिर देखना कैसी
शीतलमंदसुखद समीर
तुम्हारे जीवन को सुरभित कर
आनंद से भर जायेगी ! 
Sudhinama पर Sadhana Vaid  
--

ओहदा 

 हाँ एक बात और कहना चाहती हूँ  
मुझसे जब भी मिलें  
अपने ओहदे की पैरहन उतार के मिले  
क्योंकि मैं मुलाकात  
इन्सान से करना पसंद करती हूँ  
ओहदे से नहीं  
प्यार पर Rewa Tibrewal 

--

मध्य में टिकना जो भी जाने 

भगवान बुद्ध का मध्यम मार्ग भी
यही सिखाता है कि हमें
मध्य में ठहरने की कला सीखनी है.
--
1
वो नज़र फिरी
तो क्या हुआ
दास्तान-ए-ग़म की
लज़्ज़त तो बरक़रार है,
मेरे क़िस्से में उनका
उनके में मेरा नाम
आज भी शुमार है। 
2....

हिन्दी-आभा*भारत पर 

Ravindra Singh Yadav  

--
क्षणिकायें 
कड़वे घूंट सा आवेश
 तो पी लिया
मगर...
गहरी सांसों में मौन भरे
 पलकों की चिलमन में
एक क़तरा...
अटका रह गया वह
अभी तक वहीं ठहरा है
खारे सागर सा..
🍁
मंथन पर मीना भारद्वाज 
--
--
बस यूँ ही 
चल यूं ही कुछ कर
समय व्यतीत करने के लिए
या फिर समय खराब करने के लिए
आखिर सब यही तो कर रहे हैं 
कोई प्रयोग के नाम पर
कोई विचारधारा के नाम पर... 
साहित्य सुरभि पर दिलबाग सिंह विर्क 
--

ज़िंदगी से 

मेरा सृजन पर Onkar Singh 'Vivek'  
--
--

बचपननामा - 1 

लड़की होने का दर्द –  
कस्बाई माहौल में इन्दरो जैसे ही कक्षा सात-आठ तक पहुंची, दुकान में थोड़ा कम बैठने लगी। बाज़ार से घर का सामान लेने दुकान से कोई ’स्टाफ’ जाने लगा। घर के अन्दर खेलने और ज्यादा कूद-फांद न करने की सलाहों से इन्दरो को लग गया कि वह एक चंचल, खिलंदड़ा और मौजमस्ती वाला बच्चा न होकर एक लड़की भी है पर उसके मन नें हार नहीं मानी और न आज मानी है। अपने बचपन को संजोये रखा है किसी कोने में आज भी उसने। घर की जिम्मेदारी निभाते हुए यदा-कदा बच्चों के साथ खेलती है। इतना ही नहीं टी.वी. में ‘सिंचैन’ और ‘डोरेमान’ भी देख लेती है। आज वह मानती है कि ‘मन बच्चा तो कठौती में गंगा। 
अभिप्राय पर Rahul Dev 
--

नकली फूल 

चुन्नी और प्लास्टिक के फूल ग्रीज़ से काले हो गए थे. जब तक मन्नू चेन में से फूल और काली हुई चुन्नी चिंदी चिंदी करके छुड़ाता तब तक संध्या ऑटो में बैठ कर घर चली गई.  
Harsh Wardhan Jog  
--

आँकड़े कागजों पर 

खूब फले फूले
--
बुधिया की आँखों में
टिमटिम आस जली
कोल्हू का बैल बना
निचुड़ा गात खली
कर्ज़े के दैत्य दिए
खूँटी पर झूले।।
आँकड़े.. 
काव्य कूची पर anita _sudhir 
--
--

असमाप्त यात्रा  

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल 
--
--
--

लघुकथा : वो कुर्सी 

'कारवाँ'  से गाना गूँज उठता है  
"ज़िंदगी कैसी है पहेली .... "
सच ये मन भी न कहाँ - कहाँ भटकता रहता है ! 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव  
--
आज के लिए बस इतना ही....!
--

18 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चर्चा.आदरणीय शास्त्री जी मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. आ0 बेहतरिन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के।लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार... पर मेरा एक सुझाव है कि जिस रचना से प्रेरित होकर चर्चा का शीर्षक रखें, वही रचना सबसे ऊपर हो बाद में क्रमशः मेल खाती अन्य रचनाएँ... ये मेरी निजी राय है इस मंच की गरिमा एवं महत्ता में वृद्धि हेतु... यदि व्यवस्थापक गण सहमत न हों तो कोई बात नहीं...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर प्रणाम सर ।
      बहुत ही सुंदर सुझाव है आपका आदरणीय सर और हम भविष्य में ध्यान रखेंगे। अक़्सर पढ़ते-पढ़ते एक लाइन मन को छू जाती है और वही हम शीर्षिक रख देते हैं परंतु आपका सुझाव सराहनीय है।तहे दिल से आभार आपका इस तरह के सुझाव देते रहे ताकि हम और बेहतर कर सके।
      सादर प्रणाम सर

      हटाएं
    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    3. अनीता जी आपका हृदय से आभार एवं क्षमाप्रार्थी हूँ कि मैंने राय इस चर्चा में जाहिर की, जबकि मेरी ये राय पिछली कुछ चर्चाओं के संदर्भ में है... ये बात काफी समय से मेरे मन में थी पर संकोच के कारण कह नहीं पा रहा था कि लोगों को बुरा लगेगा... लेकिन कल अचानक लगा कि इस मंच का सदस्य होने के नाते ये मेरा कर्तव्य है कि इस मुद्दे पर मैं इस पर सबका ध्यान आकर्षित करूँ... लेकिन यदि किसी को भी बुरा लगा हो तो करबद्ध क्षमाप्रार्थी हूँ... समयाभाव के कारण हमेशा उपस्थित नहीं हो पाता पर जब भी समय मिलता है यहाँ आता अवश्य हूँ।

      हटाएं
  4. मान्यवर ! शुक्रगुज़ार हूँ आपका आप अपना समय निकालकर हौसला बढ़ाते रहे मैं देख न सका ,अब गलती दुरुस्त करता हूँ।



    स्वस्थ रहने के लिए,
    खाना इसे वरदान है।
    नाम का अमरूद है,

    लेकिन गुणों की खान है।।
    जी हाँ एक वैज्ञानिक अध्ययन में १४ फलों का अध्ययन विश्लेष्ण करने पर अमरुद पहले पायदान पे बैठा मिला ,पाइनेपल आखिरली ,अनार दोयम ,...... एपिल चौथे पे।
    आपने सच ही अमरुद का मानवी -करण किया है ,एक साम्य देखिये :
    कुछ हैं छोटे. कुछ मझोले,
    कुछ बड़े आकार के।
    मौन आमन्त्रण सभी को,
    दे रहे हैं प्यार से।पहना दो इनको सभी को चोलियां ,खुश रहेंगी सदा ही हमझोलियाँ।
    blogpaksh.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर संकलन व प्रस्तुति - - मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार, नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  6. अनंत चतुर्दशी की सुन्दर पौराणिक कथा सुनाई आपने ! शेष सूत्र भी बहुत ही सुन्दर ! मेरी रचना को आज के संकलन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  7. अनंत चतुर्दशी पर सुंदर जानकारी, पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजा चर्चा मंच! आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर संकलन व प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. अनंत चतुर्दशी की सुन्दर कथा के साथ बेहतरीन रचनाओं का चयन, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  10. 'नकली फूल' शामिल करने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर रविवारीय प्रस्तुति। बेहतरीन रचनाओं का चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    इस लाजवाब प्रस्तुति में मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  12. नमस्कार, आपके द्वारा लगातार स्नेह मिलता रहता है. अपनी आदत को भी हम बराबर बदलने के प्रयास में लगे हैं. आशा करते हैं कि आपको शिकायत का मौका न मिलेगा.
    हमारी पोस्ट आपके स्नेह से सज-संवर पर यहाँ मौजूद है. आपका आभार.

    जवाब देंहटाएं
  13. पौराणिक कथा के साथ सुन्दर संकलन । ।संकलन में सृजन को मान देने के लिए सादर आभार सर!

    जवाब देंहटाएं
  14. ब्लॉग पोस्ट की चर्चामंच पर स्थान देने के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।