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शुक्रवार, सितंबर 04, 2020

"पहले खुद सागर बन जाओ!" (चर्चा अंक-3814)

स्नेहिल अभिवादन !
चर्चा मंच पर आप सभी विद्वजन का हार्दिक 
स्वागत एवं अभिनंदन । आज की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष  बालकवि बैरागी की रचना "खुद सागर बन जाओ" से -
नदियाँ होतीं मीठी-मीठी
सागर होता खारा,
मैंने पूछ लिया सागर से
यह कैसा व्यवहार तुम्हारा?
सागर बोला, सिर मत खाओ
पहले खुद सागर बन जाओ!
***
आइए अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के चयनित
 सूत्रों की ओर  -
--
झूठी माया, है झूठा जग,
छिपकर बैठे हैं भोले ठग,
बाहर हैं दाँत दिखाने के,
खाने के मुँह में छिपे अलग,
कमजोर समझकर शाखा को,
दीमक ने पाँव जमाया है।
मृदु मोम बावरे मन को अब,
मैंने पाषाण बनाया है।।
***
एनिमल फार्म (Animal Farm) अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल की कालजयी रचना है। बीसवीं सदी के महान अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने अपनी इस कालजयी कृति में सुअरों को केन्‍द्रीय चरित्र बनाकर बोलशेविक क्रांति की विफलता पर करारा व्‍यंग्‍य किया था।अपने आकार के लिहाज से लघु उपन्‍यास की श्रेणी में आनेवाली यह रचना पाठकों के लिए आज भी उतनी ही असरदार है।
***
डाल से, टूटकर गिरता हुआ
फूल कातर हो उठा।
क्यूँ भला, साथ इतना ही मिला ?
कह रहा बगिया को अपनी अलविदा,
पूछता है शाख से वह अनमना -
"क्या कभी हम फिर मिलेंगे ?"
***
  एक दिन परांठेवाली दादी ने उसकी माँ से कहा -"बहू, मैं तो गँवार हूँ। हो सके तो मेरे पोते को अपने घर बुला लिया कर।तेरे बेटे के साथ कुछ पढ़ने-लिख लेगा ।" अपने पोते को गिनती-पहाड़ा रटते देख काकी दीनू को ढेरों आशीर्वाद देती। मानो उसके अरमान को पर लग गये हों। दो परिवार एक-दूसरे के करीब आ गये थे। एक के पास धन था,दूसरे के पास विद्या।
****
गुजरात राज्य के भावनगर जिले के पालिताणा नगर में रहने वाला सोमपुरा परिवार एक ऐसा अनोखा परिवार है, जो पिछली सोलह पीढ़ियों से मंदिर निर्माण कार्य में जुटा हुआ है। नागर शैली में मंदिरों की रचना में  इस परिवार को महारथ हासिल है। इसी शैली में अयोध्या में राममंदिर का निर्माण भी होना है।
***
भरेंगी खाली ताल -तलैया 
सूखे खेत हरे कर  देंगी 
अंबर से  झरती  टप- टप  बूँदें 
हरेक दिशा शीतल कर  देंगी 
धुल -धुल  होगा गाँव  सुहाना 
चलो घूम के आयें बारिश में 
चलो  नहायें बारिश में 
***
यात्रा करने के साधन तो बहुत से है पर मुझे सबसे आरामदायक और मनोरंजक  सफर ट्रेन का ही लगता था और हैं भी। पहले तो वैसे भी हवाई यात्रा सबके बस की बात नहीं थी और बस या कार से सफर करना मुझे बिलकुल अच्छा नही लगता। अगर लम्बी यात्रा हो तो ट्रेन के क्या कहने,  12 -15 घंटे के लम्बे सफर में ट्रेन  का वो कम्पार्टमेंट घर जैसा एहसास देने लगता है।
***
दिखते हैं सब अपने
लेकिन पराए ही हैं
बेमतलब के रिश्तों में
फँसता ही क्यूँ हूँ
बस मन का एक कोना है
और मैं हूँ
***
पंत को बचपन से ही ईश्वर में अटूट आस्था थी। वे घंटों-घंटों तक ईश्वर के ध्यान में मग्न रहते थे। अपने काव्य सृजन को भी ईश्वर पर आश्रित मानकर कहते थे - 'क्या कोई सोचकर लिख सकता है भला, उसे जब लिखवाना होगा, वो लिखवाएगा।' 
‘’खिल उठा हृदय,
पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय !
***
न न.. उधर मत जाइए
मेरे अंतरमहल के उस कोने में 
आप जैसे सम्मानित लोगों के लिए जाना
पूर्णत: निषिद्ध है !
दरअसल वहाँ आपके मनोरंजन के लिए
कोई साधन उपलब्ध नहीं है !
***
 लोग कोरोना के डर के साये में जी रहे है। दूसरी बीमारियों के लिए डॉक्टर के पास जाओ, तो भी वो बीमार को कोरोना के नजरिये से ही देख रहे है। मैं ने खुद ने जब अपने डॉक्टर से कहा कि मैं दवाई बराबर ले रही हूं, व्यायाम कर रही हूं, खाने-पीने का भी बराबर ध्यान रख रहीं हूं, तो भी इन दिनों मेरी तकलीफ़ क्यो बढ़ रही है? 
***
हमारे पूर्वज तर्पण करने से प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद देते है।यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है।हम अपने पूर्वजों एवं बड़ों को जैसा आदर सम्मान करते हैं ,हमारी अगली पीढ़ी के मन में भी हमारे प्रति वैसे ही भाव उत्पन्न होते हैं।
इसलिए हमें पितरों को तर्पण - नमन अवश्य करने चाहिए।
***
आपका दिन मंगलमय हो..
फिर मिलेंगे...
🙏 🙏
"मीना भारद्वाज"
--

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भूमिका मीना दीदी जी ।आलोचकों को बिल्कुल खरा-खरा।

    सभी लिंक्स सुंदर हैं। मेरी रचना 'मोक्ष' को मंच स्थान देने के लिए आपका हृदय से पुनः आभार।🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमन।बेहतरीन प्रस्तुति।नेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. पठनीय लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. "सागर बोला, सिर मत खाओ
    पहले खुद सागर बन जाओ!"
    बहुत खूब,सही कहा है सवाल करना आसान है,उसके जैसा बनना बेहद मुश्किल।
    चुनिंन्दा लिंकों से सजी बेहतरीन प्रस्तुति,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  6. सारगर्भित भूमिका और विविध विषयों पर रचनाकारों की कलम से निकली सराहनीय रचनाओं की खबर देते सूत्रों से सजी चर्चा ! आभार मीना जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह ! अत्यंत सार्थक, सुन्दर, सारगर्भित सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को इसमें सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

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  8. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. विविधताओं से सुसज्जित सुंदर अंक आदरणीय मीना भारद्वाज जी के विस्तृत व गहन पठन वाचन का संकेत देता है। रचनाओं का चुनाव सुरुचिपूर्ण है । मेरी रचना को चर्चामंच की इस प्रस्तुति का एक भाग बनाया, इसके लिए हृदय से आभार आपका मीना जी।

    जवाब देंहटाएं

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