फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, सितंबर 26, 2020

'पिछले पन्ने की औरतें '(चर्चा अंक-3836)

शीर्षक पंक्ति : आदरणीया डॉ शरद सिंह 

सादर अभिवादन। 
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

किसी पुस्तक की चर्चा में मुखपृष्ठ ही दर्शनीय होता है और चर्चा में रहता है लेकिन अंतिम पृष्ठ कवर के बिना पुस्तक का अस्तित्त्व ख़तरे में पड़ सकता है।इसी प्रकार समाज में कुछ महिलाएँ अपनी भूमिका का महिमामंडन किए बग़ैर नींव का पत्थर बन जातीं हैं और समाज के आधारभूत ढाँचे को मज़बूती प्रदान करतीं हैं जिन्हें साहित्य संकेत रूप में पिछले पन्ने की औरतें कहता है जो परंपराओं, रूढ़ियों को गति देतीं रहतीं हैं।

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-

दोहे
 "होना नहीं निराश"
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

जीवनभर रहते सभी, इस दुनिया में शिष्य।
जो त्रुटियों से सीख ले, उसका बने भविष्य।।
--
होती केवल सादगी, जीवन का आधार।
दर्प भला किस बात का, जीवन के पल चार।।

--
हिन्दी साहित्य में ’’पिछले पन्ने की औरतें‘‘ ऐसा प्रथम उपन्यास है जिसका कथानक बेड़नियों के जीवन को आाधार बना कर प्रस्तुत किया गया है। इस उपन्यास की शैली भी हिन्दी साहित्य के लिए नई है। यह उपन्यास अतीत और वर्तमान की कड़ियों को बड़ी ही कलात्मकता से जोड़ते हुए इसे पढ़ने वाले को वहां पहुंचा देता है जहां बेड़नियों के रूप में औरतें आज भी अपने पैरों में घंघरू बांधने के लिए विवश हैं।
--
वर से मेरे द्वारा पूछने पर कि,–"आपसे शादी हेतु सर्वांगीण रमणी मिल जाती जो आपके संवृद्धि में सहायक होती। फिर इनसे...?""
आप तन की जोड़ी लगाना चाह रही हैं। मुझे मन से जुड़ी की चाहत थी। जो हमारे घर की धुरी हो सके।" मेरी सहेली के भाग्य के जंग लगने वाले ताला में वक्त ने बड़ी चतुराई से सही बड़ी वाली ही चाभी लगा दिया था।
--
बिटिया जन्मी
सुरभित आँगन
खिली कलियाँ
 हुआ उजाला
घटा जीवन तम
छाई खुशियाँ !
--
तिश्नगी में डूबे रहे राहत को बेक़रार हैं
उजड़े घरौंदें जिनके वे ही तो परेशान हैं ।
रात के क़ाफ़िले चले कौल करके कल का
आफ़ताब छुपा बादलों में क्यों पशेमान है ।
--
शाम होते ही अगरबत्ती जला देती है माँ.
घर के हर कोने को मन्दिर सा बना देती है माँ.
मुश्किलों को ज़िन्दगी में हँस के सहने का हुनर,
डट के डर का सामना करना सिखा देती है माँ .
--
कैसे कह दूँ कि अब तुम बदल सी गई
वरना क्या  मैं समझता नहीं  बात क्या !
एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन
रंग भरने का  करने  लगा  था जतन
कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया
लकड़ियाँ कुछ हैं गीली बची कुछ अगन
--

चले जब हाथ थामे फिर संग छोड़ना क्यों है ।

मिले कैसी भी दुश्वारी अब मुँह मोड़ना क्यों हैं ।।

बने जन्मों के साथी हैं  सब सुख-दुख में साझी ।

इरादे नेक  हैं अपने तो  बंधन तोड़ना क्यों है ।।

--

उड़ान ...श्वेता सिन्हा

चलो बाँध स्वप्नों की गठरी
रात का हम अवसान करें
नन्हें पंख पसार के नभ में

फिर से एक नई उड़ान भरें
--
कभी कभी फ़ुर्सत के क्षणों में 
एक सोच काबिज़ हो जाती है
 आखिर मैं चाहती क्या हूँ खुद से 
या औरों से 
तो कोई जवाब ही नहीं आता
 क्या वक्त सारी चाहतों को लील गया है
 या चाहत की फ़सलों पर 
कोई तेज़ाबी पाला पड गया है 
जो खुद की चाहतों से 
भी महरूम हो गयी हूँ 
जो खुद से ही आज अन्जान हो गयी हूँ
--
सुदूर
ओढ़े हुए सदियों पुरानी गहरी -
काली शाल, न जाने कौन
है खड़ा दिगंत पार
हाथों में लिए
उजालों
का
हार, या वो भी मेरी तरह है मृग
तृषा की शिकार, मैं अपलक
उसे देखता हूँ कौतुहल
--
अँधेरों में एक काली छाया उभरी. विरह ने आगे बढ़कर उसे होठों से लगाना चाहा. कोने में पड़ी सिगरेट सुलग उठी और देखते ही देखते विरह के होठों से जा लगी. एक अरसे से निस्तेज पड़ी राखदानी को आज स्पर्श मिला.
--
आज सफ़र यहीं तक
फ़िर मिलेंगे आगामी अंक में
--
@अनीता सैनी 'दीप्ति'

11 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक आभार आपका
    बेमिसाल प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  2. अद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक सार्थक भूमिका के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    सुंदर लिंक पठनीय, सराहनीय।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सशक्त भूमिका से सजी प्रस्तुति में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता!
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर लिंक्स आज की चर्चा में ! मेरी रचना को आपने सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर प्रस्तुति एवं अर्थपूर्ण संकलन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य धन्यवाद - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  7. " जिन्हें साहित्य संकेत रूप में पिछले पन्ने की औरतें कहता है जो परंपराओं, रूढ़ियों को गति देतीं रहतीं हैं।"
    बहुत ही सुंदर विचारणीय भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति अनीता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर लिंक्स
    सराहनीय भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. अत्यंत आभार अनीता सैनी जी , मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल देख कर हृदय भावविभोर हो गया।

    पुनः हार्दिक आभार 💐🙏💐

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय अनिता सैनी जी,
    यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि मेरे उपन्यास "पिछले पन्ने की औरतें" पर डॉ वर्षा सिंह जी द्वारा लिखे गए पुनर्पाठ लेख की मेरी पोस्ट को आपने चर्चा मंच में शामिल किया।
    हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  11. मंच पर प्रस्तुत सभी सामग्री बारम्बार पठनीय है। आपके चयन-श्रम को नमन 🙏

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।