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मंगलवार, सितंबर 29, 2020

"सीख" (चर्चा अंक-3839)

 स्नेहिल अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

(शीर्षक आ.मीना भारद्धाज जी की रचना से)

"सीख"अर्थात सीखना , किसी कला या हुनर को सीखना, 
किसी विषय का ज्ञान प्राप्त करना अथवा शिक्षा प्राप्त करना।
 मनुष्य जन्म से मृत्यु तक सीखता ही तो रहता है...
 कोई भी व्यक्ति खुद को परिपूर्ण नहीं कह सकता ...
मगर सबसे बड़ी "सीख" वो होती है.... 
जो आप अपने अनुभव से प्राप्त करते हैं....
हर पल आपका अंतर्मन ही आपको सबसे अच्छी सीख देता रहता है...
 बशर्ते आप उसकी सुने तो....
आईये, आज कुछ रचनाकारों की रचनाओं को पढ़कर....
 हम अपनी ज्ञान गंगा को और बढ़ाते है...
चलते हैं,रचनाओं की ओर.... 
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दोहे "कठिनाई में पड़ गया, चिट्ठों का संसार"

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मुखपोथी ने दे दिया, जब से नूतन रूप।

बादल के आगोश में, छिपी सुहानी धूप।।
--
ब्लॉगर ने भी कर दिया, ऐसा वज्र प्रहार।

कठिनाई में पड़ गया, चिट्ठों का संसार।।
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कब तक चलना है एकाकी ?
Meena sharma, चिड़िया

मैंने सबकी राहों से,

हरदम बीना है काँटों को ।

मेरे पाँव हुए जब घायल

पीड़ा सहना है एकाकी !!!

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संस्कारों का कब्रिस्तान बॉलीवुड

Malti Mishra, ANTARDHWANI

हमारा देश अपनी गौरवमयी संस्कृति के लिए ही विश्व भर में 

गौरवान्वित रहा हैपरंतु हम पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में

 अपनी संस्कृति भुला बैठे और सुसंस्कृत कहलाने की बजाय सभ्य 

कहलाना अधिक पसंद करने लगे। जिस देश में धन से पहले

 संस्कारों को सम्मान दिया जाता था, वहीं आजकल 

अधिकतर लोगों के लिए धन ही सर्वेसर्वा है। 

धन-संपत्ति से ही आजकल व्यक्ति की पहचान होती 

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वैदिक वांगमय और इतिहास बोध-------(७)

विश्वमोहन- विश्वमोहन उवाच

सच में, ऐसा सोचने के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं  कि
 इन सभी रचनाओं के  काल का  आपस में कुछ लेना-देना नहीं है।
 हालाँकि, सभी रचनाओं का एक मान्य अनुवर्ती कालक्रम है, 
लेकिन तब भी इस बात को मानने का कोई कारण नहीं है कि
 सभी ग्रंथों की अपनी पूर्णता में रचे जाने का समय 
एक दूसरे से बिल्कुल  हटकर है।
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सर्वदा संभव नहीं - -
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भ्रम का भार
अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया
उसके रुँधे कपोल में पानी नहीं था 
शर्म स्वयं का खोजती अस्तित्व 
चित से भटक कोलाहल में लीन 
भावबोध से भटक शब्द बन चुकी थी।
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जीवन का जो मर्म जानता
 सृष्टि में प्रतिपल सबकुछ बदल रहा है. वैज्ञानिक कहते हैं
जहाँ आज रेगिस्तान हैं वहाँ कभी विशाल पर्वत थे. जहाँ महासागर हैं
वहाँ नगर बसते थे. लाखों वर्षों में कोयले हीरे बन जाते हैं.
यहाँ सभी कुछ परमाणुओं का पुंज ही तो है.
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ज्योति देहलीवाल-आपकी सहेली 
हम पूरे भारतवासी आज भी आपको अपने बीच जीवित पाते हैं!
 आप आज भी हमारे दिलों-दिमाग में अमर हैं!! 
कहा जाता हैं, बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया
 और इस सबसे बड़े रुपैये पर आप अंकित हो!! 
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आज का सफर यही तक आप सभी स्वस्थ रहें ,सुरक्षित रहें। कामिनी सिन्हा
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12 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सार्थक भूमिका के साथ बेहतरीन और लाज़वाब चर्चा प्रस्तुति । शीर्षक रुप में मेरी रचना चयन करने के हृदयतल से आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. अनुभव से बड़ी कोई सीख नहीं, सुंदर बोध देती भूमिका और पठनीय रचनाओं से सजी आज की चर्चा में मुझे भी शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. काम‍िनी जी नमस्कार, चर्चा-संकलन की एक एक रचना बेहद खूबसूरत है ... बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. अद्यतन लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर लेखों से सजे मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए चर्चामंच एवं कामिनी बहन का हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दी।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  10. कामिनी सिन्हा जी के सार्थक श्रम का प्रतिबिंब है आज की चर्चा...

    बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 🌺🙏🌺

    जवाब देंहटाएं

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