मित्रों!
आज की चर्चा शैड्यूल नहीं थी
इसलिए मैने सोचा कि
आज की चर्चा लगा दूँ।
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गीत "आया है त्यौहार तीज का" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मुरादाबाद मंडल के साहित्यकार डॉ अनिल कुमार शर्मा अनिल, डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ पूनम चौहान, कृष्ण कुमार पाठक, डॉ भूपेंद्र कुमार, दीपिका महेश्वरी सुमन, प्रो ममता सिंह, प्रीति चौधरी और अशोक विश्नोई की हरियाली तीज पर रचनाएं। ये सभी रचनाएं धामपुर (जनपद बिजनौर) से डॉ अनिल कुमार शर्मा अनिल के संपादन में प्रकाशित ई पत्रिका ’अनिल अभिव्यक्ति’ के हरियाली तीज विशेषांक (अंक 113) में प्रकाशित हुई है
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स्थान- 1978, ग़ाज़ियाबाद
एम.एम.एच. कॉलेज से ड्रॉइंग एन्ड पेन्टिंग में एम.ए. की पढ़ाई कर रही लड़की की शादी की बातें शुरु हो चुकी हैं। तो सबसे पहले तो एक फोटो की दरकार है लड़की की, वो भी स्टूडियो में मेकअप करके बनारसी साड़ी पहन कर और स्टैंड पर हाथ रख कर पोज बनाते हुए ।सही अनुपात में हंसते हुए। एकदम सही अनुपात से…मतलब न थोड़ा सा भी ज्यादा कि बेशर्म लगे और न ही इतना कम जो घुन्नी लगे। लेकिन अब सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ?
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चेतन अमर, अजर, अविनाशी
प्रेम, शांति व हर्ष का सागर,
अहंकार बिंधता स्वयं से
अहंकार सीमित सम कायर !
जीवन जैसा है, वैसा है
अहम उसे स्वीकार न पाए,
निज झूठी शान की ख़ातिर
लोकमत का शिकार हो जाए !
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हमारे प्रेम अनुबंध के दस्तावेज
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उसकी आहट से तो अब डर लगता है,
उसका इल्ज़ाम भी ग़ज़ल का बहर लगता है,
तन्हाई ने मोहब्बत की बस्ती यूँ उजाड़ दी,
वीरान जंगल भी मुझको मेरा घर लगता है।
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निद्रा - विहार जो सो चुके हों वे जग जाएं और जो जागने का ढोंग कर रहे हों कृपया ईमानदारी से सोए ही रहें उन्हें जागने की आवश्यकता भी नही। वैसे भी धर्म की गोलियाँ लेने के बाद नींद की गोली लेने की लंबे समय तक आवश्यकता नही पड़ती और जबतक आपको आवश्यकता पड़ेगी तबतक धर्म का फिर कोई नया मुद्दा या यूँ कहें नींद की नयी गोली तैयार रहेगी। आप चैन से सोइए। आप धर्मांध लोगों को यह बिलकुल जानने की आवश्यकता नही है कि आपके धर्मपरायण देश में आपकी बंद आँखों के सामने कितने घोटाले,कितना भ्रष्टाचार हो रहा है। विकास की झूठी रसीदें दिखाकर किस प्रकार आपको ठगा जा रहा है। आत्म रंजन आँचल पाण्डेय
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बेटियों का हक - भाभी का अधिकार
यूँ तो ये एक आम घटना है, हमारे समाज की यह घर घर की सच्चाई है. या तो ननदें भाभी को खा जाती हैं या भाभी नन्द का जीना, घर में रहना मुश्किल कर देती है और ये सब तब जब सभी बेटियां होती हैं. ये एक आम चलन की बात है कि बेटियों को बोझ समझा जाता है हमारे इस रूढ़िवादी समाज में और दूसरे घर की बेटी जब अपनी ससुराल में आती है तो कहीं तो उसे दबाया जाता है, उसका शोषण किया जाता है और कहीं इसके ठीक विपरीत वह ससुरालवालों की ही सांसे छीनकर अपनी दुनिया रोशन करती है.
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इमेज गूगल साभार |
#मासूम #अदाओं से, यूं ही दिल चुराने वाले , कभी करते बैचेन हो , तो कभी बनते #उम्मीदों के उजाले ।
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'चैन नाम की चिड़िया' के बहाने!
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आवास
झोपड़ि अच्छी महल से, जो आपनि कहलाय ।
जिमि बया बनाये नीड़, मन में अति हरसाय ।।1।।
माता
मां सम कोई देव नहि, अन्न समान न दान।
पीपल सम कोइ तरु नहि, जनु जीवन वरदान।।2।।
काव्य दर्पण अशर्फी लाल मिश्र
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यह मन उम्मीदों के गुब्बारे जैसा है, हर पल नई उम्मीद, बस खोजता ही रहता है। कई दफा मन की दुनिया हकीकत से उलट सोचती है। मन का आधार भाव और भावनाएं हैं वहीं दिमाग तर्क पर फैसले सुनाता है। सोचता हूँ निर्णय के लिए उस परम पिता ने यह दो तरीके क्यों रखे होंगे।
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हमें क्या चाहिए, मुफ्त की रेवड़ियाँ या सामाजिक-कल्याण?
जिज्ञासा--
पिछले दिनों अपनी निजी यात्रा से लौटे कथाकार और आलोचक दिनेश चंद जोशी के मुताबिक जुलाई 2022 के शुरुआती सप्ताह में आस्ट्रेलिया जोशो-खरोश से मनाये जाने वाले दृश्य व खबरों से रंगा रहा। 4 जुलाई से 11 जुलाई तक एबओरिजनल और टौरिस स्ट्रेट आइसलेंडर समुदाय की कमेटी ने सप्ताह भर के कार्यक्रमों से सराबोर एक उत्सव का आयोजन किया। लिखो यहां वहां--
तुकांत शब्द की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण : संजय कौशिक 'विज्ञात'
छंद अथवा कविता के अंत में समान वर्णों के या शब्दों के अंत पर उच्चारित होने वाले वर्णों या शब्दों की उपस्थिति को तुकांत कहा जाता है। ये तुकांत मुख्यतया 3 प्रकार के होते हैं उत्तम तुकांत मध्यम तुकांत निम्न तुकांत सूचना :- परंतु आजकल एक और तुकांत देखा जाता है जो अन्य भाषाओं में लिखा जाता परंतु हिंदी व्याकरण के अनुसार यह स्वीकार्य नहीं है। 4 अति निम्न तुकांत *उत्तम तुकांत- *अटकते, खटकते, चटकते, पटकते, गटकते, लटकते आदि विज्ञात की कलम--
तहकीकात प्रवेशांक: हत्यारा कौन - सफ़दर हयात खाँ | इश्तियाक खाँ
एक बुक जर्नल--
पूजास्थलों मे दौलत
का अंबार लगा
भिखारी बाहर
भूख और ठंड से
बेहाल नजर आए,
ऐ !प्रभु के बंदे
तू अब तक दौलत का
सही उपयोग न सीख पाये ।
काव्य कूची अनीता सुधीर
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वजूद अपना कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना
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तुम्हारे बिना भी
बेफ़िक्री में गुजर ही रही थी
जिन्दगी..,
अपने होने का अर्थ
तुम से ही तो सीखा है
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रजिस्ट्रार गुरु जी से मेरा आशय उन गुरुजन से नहीं है जो कि अध्यापक और रजिस्ट्रार का दायित्व एक साथ सम्हालते हैं बल्कि उन विभूतियों से है जो कि क्लास में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति दर्ज करने के लिए या तो अपना अटेंडेंस रजिस्टर खोलते हैं या फिर पढ़ाते समय अपने नोट्स वाले रजिस्टर से उनको इमला लिखाते रहते हैं.
ऐसे सभी गुरुजन के लिए रजिस्टर, जीवन-दायिनी ऑक्सीजन के समान होता है.
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आज के लिए बस इतना ही...!
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