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मंगलवार, जुलाई 19, 2022

"सैनिकों की बेटियाँ"(चर्चा अंक 4495)

सादर अभिवादन आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है (शीर्षक और भुमिका आदरणीया अनीता सैनी जी की रचना से)

पिता शब्द में रंग भरतीं 

माँ को सँवारतीं 

स्वप्न के बेल-बूँटों को स्वतः सींचतीं 

टूटने और रूठने से परे वे 

न जाने कब सैनिक बन जाती हैं। 

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एक सैनिक की मां,बहन, पत्नी और बेटी   को सत-सत नमन

इन सभी विरांगनाओं के त्याग ने ही इन वीरों को बल प्रदान किया है 

भारत माता के वीर सपूतों को सत-सत नमन करते हुए चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....

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दोहे "गीला हुआ रुमाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

बादल फटे पहाड़ परप्रलय भरे हुंकार।

प्राण बचाने के लिएमचती चीख-पुकार।।

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होती है बरसात कीधूप बहुत विकराल।

स्वेद पोंछते-पोंछतेगीला हुआ रुमाल


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सैनिकों की बेटियाँ

सैनिकों की बेटियाँ

पिता के स्नेह की परिभाषा 

माँ के शब्दों में पढ़ती हैं।

भावों से पिता शब्द तराशतीं 

 पलक झपकते ही बड़ी हो जाती हैं। 

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“मैं”

माया के बंधन में उलझा

घनघोर तमस में दीपक सा 

नश्वरता बीच अमरता सा

सुखद सलोना क्षणभंगुर 


 कुछ अनचीन्हा चुन लेती हूँ 

अनमोल भाव गुन लेती हूँ 


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जब याद कमल सर खिलता है

तू हर उस पल में मिलता है 

जब याद कमल सर खिलता है, 

नहीं अतीत न भावी में ही 

दर्पण दर्शन का मिलता है !


मन जो नित भागा ही रहता 

कही हुई को फिर-फिर कहता, 

व्यर्थ कल्पना महल बनाए 

इस पल में ना कभी झाँकता



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270. ओलमोचा
ओल" के बारे में तो सभी जानते होंगे- इसे "सूरन" और "जिमिकन्द" कहते हैं, लेकिन ओल के पौधे के बारे में सब नहीं जानते होंगे। इसके पौधों को हमारे इलाके में "ओलमोचा" कहते हैं। बरसात शुरू होते ही ये पौधे घरों के पिछवाड़े में, परती जगहों में और 'घूरे' (जहाँ घरों का कचरा फेंका जाता है) पर उगने लगते हैं। आम तौर पर साफ-सफाई के समय इन्हें उखाड़ कर फेंक ही दिया जाता है, लेकिन पहाड़ियों (हमारे यहाँ की 'राजमहल की पहाड़ियाँ') पर जो ओलमोचे उगते हैं, उन्हें बाकायदे काटकर आदिवासी महिलाएं बाजार********प्रश्न कैसे कैसे

किसी का उत्तर मिल पाता 

किसी को बहुत खोजना पड़ता 

तब जा कर मिल पाता |

कुछ सवाल ऐसे होते 

उत्तर बहुत दिनों के बाद मिलते 

जब तक आशा छोड़ चुके होते 

सोचते अब न मिलेंगे

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स्त्रियां रिटायर नही होती

दो दिन  पहले  रिटायर्मेंट ले चुकी अपनी फैमिली  डॉक्टर के पास  उनके घर गयी । सुबह  सुबह  घर पहुंची तो वो रसोई  मे सब्जी बना रही थी । देखकर  लगा रिटायर्मेंट शब्द  स्त्रियों के लिए  नही बना है । 

अपने प्रोफेशन से तो रिटायर्मेंट  ले लिया लेकिन  ये अवैतनिक  काम घर गृहस्थी से कभी उनको छुट्टी नही मिलती । सत्तर  साल से ज्यादा की आयु  हो चुकी  है लेकिन गृहस्थी रसोई  अब भी उनकी जिम्मेदारी और कर्तव्यों मे है । 

*********तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त- राजेन्द्र नाथ रहबर

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‘मारुति’ पर देव नागरी में ‘मारुति’ उन्हीं ने अंकित करवाया
नौ वर्ष की उम्र में यानी 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से दो वर्ष पहले 1940 से ही बैरागीजी कविता लिख रहे हैं। उन्होंने मूलतः मालवी में अपना काव्य लेखन किया। सन् 1951 में मनासा की एक विशाल जनसभा में नन्दराम नामक बालक ने जब अपने ओजस्वी स्वर और आत्मविश्वास के साथ 

********    ॐ नमः शिवाय

मुण्डमाल,बाघम्बर सोहे.
विषधर संग छटा निराली
मस्तक गंगाधर,शशिधर सोहे
हस्त कपाल श्मशान बिहारी।।


*********महादेव की चरण वंदना के साथ  इस चर्चा को समाप्त करती हूं ।अब आज्ञा देआपका दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा 




10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्‍दर चयन। चयन हेतु किया गया परिश्रम पहली ही नजर में अनुभव हो जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर सराहनीय सूत्रों से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन सूत्रों से सजी सजी अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात, महादेव को समर्पित, सराहनीय रचनाओं के लिंक्स देता मंच, आभार मुझे भी आज की चर्चा में शामिल करने हेतु!

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  6. बहुत सुन्दर पस्तुति, हार्दिक धन्यवाद हमारी रचना को भी शामिल करने के लिये।

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  7. 'सैनिकों की बेटियाँ' को शीर्षक व भूमिका में स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आपका।
    सराहनीय संकलन।
    सादर

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  8. बहुत खूबसूरत चर्चा संकलन

    जवाब देंहटाएं
  9. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं

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