शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "पेड़ कट
गये बाग के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकगीत दम तोड़ रहे हैं, भौंडे राग-तरानों में,
नई पौध आनन्द मनाती, आज निर्रथक गानों में,
द्वार बन्द हो गये आज तो, इस कलयुगी दिमाग के।
झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये बाग के।।
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सलाखों से घिरे हैं
तो क्या हुआ ?
हर हाल में, हर रंग में,
खिल रहे हैं तबीयत से ।
अपनी मर्ज़ी से
ना सही,
गमलों में ही
जी रहे हैं
ज़िन्दादिली से !
एक गीतिका
-महामाहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के लिए
भारतीय इतिहास स्त्री मान की यह स्वर्ण बेला
फिर शिलालेखों में लिखना लोक की यह सत्यबानी
एक वन की नदी कैसे बन गयी है महासागर
आदिवासी लाडली अब हो गयी दुर्गा भवानी
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हर माँ की तरह तुमने सदा चाहा कि मैं दुनिया के कदम से कदम
मिला के चलूँ
जो तुम्हारे लिये मुमकिन न हुआ वो भी मुझे हासिल हो
मेरी उपलब्धियों की नींव में तुम ही हो माँ
मेरे थोड़े-बहुत सब्र में , मेरी
व्यवहारिकता में तुम ही तो आ खड़ी होती हो माँ थोड़ा-थोड़ा
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।
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ज्यों घुमड़ते मेघ नभ में, तृषित धरणी रो रही
हद हुई मतान्धता की
शब्द लेते जान हैं
कड़क रही हैं बिजलियाँ
किसपे गिरे क्या भान है
कौन थामें निरंकुशता
धारना जब सो रही
प्रेम धरा का मेघ से, विधि ने दिया बनाय।
जब भी भू व्याकुल दिखे, घन गरजे हरसाय।।3।।
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अंतर में इक दीप जलाये
ध्वनियों का इक मधुरिम
आकर
निशदिन कोई तान सुनाये,
अम्बर में अनगिन सूरज हैं
अंतर में इक दीप जलाये !
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर ओर सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
हार्दिक आभार सर. बहुत सुन्दर पठनीय लिंक्स
जवाब देंहटाएंचर्चमंच में शामिल करने के लिए आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! वाकई पेड़ काटते जा रहे हैं, जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा विश्व आज विनाश के कगार पर है. पठनीय सूत्रों की तरफ ले जाती चर्चा में मुझे शामिल करने हेतु आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सारगर्भित सूत्रों से परिपूर्ण उत्कृष्ट चर्चा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को भी चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद ।
रवीन्द्र जी, इस चर्चा के प्यारे से अंक में स्थान देकर अनुग्रहित किया आपने । सामयिक सारगर्भित रचनाएँ । माँ आकर खङी होती हैं । पढ़ कर जी धक से रह गया । झिंझोड़ दिया माँ की उपस्थिति ने, जो जीवनपर्यन्त स्थायी है । माँ साथ हो न हो । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह लाजबाव चर्चा प्रस्तुति
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