सादर अभिवादन
रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीया उर्मिला सिंह जी की रचना से)
शादियों में हल्दी चन्दन सिंदूर तो है
पर रिश्तों के बन्धन का पता नही
सही कहा आपने उर्मिला जी
दिन-ब-दिन रिश्तों के कमजोर बन्धन को देख मन सोचने पर मजबुर हो जाता है कि -ये बिखराव हमें कहां लेकर जाएंगे।
खैर, परमात्मा हमें सद्बुद्धि दे
इसी प्रार्थना के साथ चलते हैं
आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...
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दोहे "बादल करते शोर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हाथ जोड़कर कीजिए, ईश्वर से फरियाद।
कुछ ऐसा रच दीजिए, दुनिया रक्खे याद।१।
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अपने दोहों में भरो, उपयोगी सन्देश।
दोहों से ही कीजिए, कुछ पावन परिवेश।२।
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बदलते समय.....कच्चे रिश्ते..
उम्मीदों की लालटेन हाथों में तो है
ख्वाबों की रोशनी का कुछ पता नही
खुशियों की चाभी औरों के हाथों में...
किस्मत की मंजिल का कोई पता नही।।
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"सुहाग" शब्द का यदि सही अर्थ समझना है तो जरूर पढ़िए आदरणीया प्रतिभा सक्सेना जी का ये अत्यन्त महत्वपूर्ण लेख
सुहाग' एक शब्द -मात्र नहीं, यह व्यापक अर्थ से परिपूर्ण एक व्यंजक पद है. एक सांस्कृतिक अवधारणा है जिसमें नारी के सर्वांगसम्पूर्ण जीवन की परिकल्र्पना -समाई है . सफल-संपन्न नारी-जीवन का बोधक है यह छोटा-सा शब्द - श्री-सुख-माधुर्य से परिपूर्ण जीवन का सूचक
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फलसफा मन का
थम जाए जिस घड़ी
इक पुर सुकून पवन
आहिस्ता से छू जाती
कोई कशिश, तलाश कोई
अनजान राहों पर लिए जाती
वह जो अपना सा लगे
याद जिसकी बरबस सताती
*********लेबर कानून और प्राइवेट नौकरीएक जुलाई से कोई लेबर कानून लागू हुआ है जिसमे काम के घंटे आठ से बढ़ा कर बारह तक किया जा सकता है कंपनियों द्वारा। हमे आश्चर्य इस बात पर है कि प्राइवेट कंपनियों मे काम के घंटे आठ थे ही कब । ********
मन की उथलपुथलसही गलत का आकलन करना चाहा
पर किसी निराकरण पर न पहुंची
मन में असंतोष लिए घूमती रही |
कितनी बार तुमसे कहना चाहा
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मां कभी खत्म नहीं होती
दीवाली के रोशन दीयों की तरह
मैंने तुम्हारी हर याद को
अपने ह्रदय के हर कोने में
संजों रखा है
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भगवान इंद्रदेव का भी बने आधार कार्ड
मॉनसून शुरू होते ही कयास लगने लगते हैं कि आज बारिश होगी कि नहीं। रिकॉर्डतोड़ उमस वाली गर्मी इंसान को इतना बैचेन कर देती है कि वो इतनी बार सांस नहीं लेता जितनी बार इंटरनेट पर चैक करता है कि आज बारिश की संभावना कितने फीसदी है? खुद तमाम वेबसाइटों पर चैक करने के
********सहज मुस्कान , मुक्त हंसी, ही जीवन हैं -सतीश सक्सेनाअक्सर लोगों की विपरीत परिस्थितियां उनके चेहरे पर आयी उदासी का कारण होती हैं जबकि उन्हें यह तथ्य आत्मसात कर लेना चाहिए कि खुशियां उत्पन्न करने की क्षमता उनके अपने शरीर में हमेशा होती है केवल उस वक्त की सोच हंसती हुई होनी चाहिए कष्ट खुद ब खुद भाग जाएंगे क्योंकि वह एक अस्थायी मानसिक अवस्था है !******************"तुम्हें गीतों में ढालूँगा सावन को आने दो....."
उपकार फिल्म का ये गाना सुनते ही प्रकृति का वो मनोरम दृश्य आपको खुली आँखों से दिखाई देने लगता है। उदास मन भी झूम उठता है गुनगुनाने लगता है सारे गीले-शिकवे भूल किसी को गले लगाने को मन मचल उठता है। दरअसल ये सिर्फ गीत के बोल नहीं है ये तो हमारे मन के भाव है जो प्रकृति की सुंदरता को देखते ही खुद-ब-खुद उमड़ने लगते हैं। अक्सर हमने महसूस किया है कि -हम कितने भी उदास हो कितनी भी
*******आज का सफर यहीं तक, अब आज्ञा देआपका दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा
साहित्य के विविध रूपों को समेटे यह चर्चा अंक भी पहले के चर्चा अंकों की तरह ही प्रशंसनीय है। पठनीय है। प्रेरणादायी है। सभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएँ। कामिनी सिन्हा जी को उनके अद्भुत प्रयास के लिए विशेष आभार। इस चर्चा-अंक में मुझे भी शामिल करने के लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुतिष
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
Thanks for the post here
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! समय बदल रहा है पर संस्कारों की पौध अब भी जीवित है, परिवार से कितना भी दूर जाएँ बच्चे एक न एक दिन लौट ही आते हैं। पठनीय लिंक्स के सजी सुंदर चर्चा,बहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंचर्चा में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंसादर
मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति विभिन्न कलात्मक रचनाओं का पिटारा।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं आकर्षक पठनीय।
सादर सस्नेह।