सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
लीजिए पढ़िए कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
दोहे "भारतरत्न मिसाइल-मैन को शत-शत नमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
माथे पे गिरी एक आवारा बूँदजगाने लगे एक अनजानी प्याससमझ लेना तन्हाई के किसी लम्हे नेअंगड़ाई ली है कहीं
भीड़ बढ़ी मदिरालय में अब,काल आधुनिक आया है।
मातु पिता सँग बच्चे पीते,संस्कृति को बिसराया है।।
प्रेम रोग का बना बहाना,मन का दर्द मिटाया है।
अर्थ व्यवस्था टिकी इसी पर,शासन ने बिकवाया है ।।
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जीने की ललक, कोंपल-से फूटते स्वप्न; उम्र के अंतिम पड़ाव पर जीवन में रंग भरतीं सांसें ज्यों चेहरे की झूर्रियों से कह रही हों तुम इतनी जल्दी क्यों आईं ?
न चाहते हुए सुदर्शना से बुआ के पैर पर पैर रखा गया और कह बैठी-
" छोरियाँ तो देखती थीं न स्वप्न।”
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विदेशी बच्चे और स्वदेशी मात पिता की मज़बूरी --
बस मोतियाबिंद से धुंधलाई आँखों की
सूखी पलकों में ,
अश्क का एक कतरा अटक गया है।
कॉरिडोर और धुंधला नज़र आ रहा है ,
शायद कोई आ रहा है,
या फिर
कोई आने जाने वाला जा रहा है।
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सन्तुलित और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
बढियां संकलन धन्यवाद आदरणीय मेरी रचना को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशामिल करने के लिए आपका आभार। 👍🏻🌺🌺
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति। सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सादर
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति।❤️
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