मित्रों!
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कल रविवार को हमारे किसी चर्चाकार द्वारा
चर्चा मंच का4500वाँ अंक प्रकाशित होगा।
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आत्मस्थित जो महादेव हैं
वही अघोर हैं वही अभेद हैं
वही पवित्र हैं वही हैं पावन
वही संहारक वही हैं जीवन
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पुस्तक समीक्षा "खिलते प्रसून काव्य संग्रह" (समीक्षक-डॉ..रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
साहित्य की दुनिया में भारती दास अब तक ऐसा नाम था जो केवल कविताओं तथा ब्लॉग लेखन के लिए ही जाना जाता था। किन्तु हाल ही में इनका काव्य संग्रह “खिलता प्रसून” प्रकाशित हुआ तो लगा कि ये न केवल एक गृहणी है अपितु एक सफल कवयित्री भी हैं।
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गूँगी गुड़िया : कैसी हवा बुन रहे हो साहेब?
एक गीतिका - महामाहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के लिए
धुंध में जलते दिए की सूर्य बनने की कहानी
द्रौपदी मुर्मू तुम्हारे स्वागतम में राजधानी
भारतीय इतिहास स्त्री मान की यह स्वर्ण बेला
फिर शिलालेखों में लिखना लोक की यह सत्यबानी
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ज्यों घुमड़ते मेघ नभ में, तृषित धरणी रो रही
मन विचारों का बवंडर
लेखनी चुप सो रही
ज्यों घुमड़ते मेघ नभ में
तृषित धरणी रो रही
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दहेज - इकलौती पुत्री की आग की सेज
एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .
'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''
बचपन से लेकर बड़े होने तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है भारतीय नारी
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काँवडिया गाता चले,शिव महिमा के गीत।
आनंदित तन-मन लगे,मन में बसती प्रीत।।
काँवडिया चलता चले,लेकर पावन नीर।
काँटे चुभते पाँव में,होता नहीं अधीर।।
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‘साफे’ के स्वाभिमान, सम्मान, सहयोग, संरक्षण के लिए ‘जूती’ का उपयोग
राजेन्द्र जोशी
(दादा, साहित्य को ‘सर का साफा’ और राजनीति को ‘पाँव की जूती’ कहा करते थे। कहा करते कि जब साफे का सम्मान संकट में हो तो रक्षा के लिए वे जूती हाथ में ले लेते हैं। राजेन्द्र भाई का यह आलेख, दादा की इन्हीं बातों को प्रखरता से उजागर करता है कि साहित्यकारों के सम्मान की रक्षा करने के लिए और उन्हें सहयोग करने के लिए उन्होंने किस तरह राजनीति को औजार बनाया। - विष्णु बैरागी)
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स्व रचना जीएसटी शाण्डिल्य
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कभी कभी ख्यालों में आना
फिर कहीं गुम हो जाना
रात के अन्धकार में
मन को भाता तुम्हारे
मैं क्या करती |
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इतने दिनों से रोज आते जाते ऐसा लगने लगा है कि न जाने कितने दिनों से मैं उन्हें जानता हूँ. वो भूरे बाल वाली का नाम स्टेफनी है और दूसरी वाली सेन्ड्रा. वो मेरा नाम नहीं जानती. मैं जानता हूँ क्योंकि मैने उन्हें एक दूसरे से बात करते सुना है. मैं चुप रहता हूँ, किसी से ट्रेन में ज्यादा बात नहीं करता.
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मैं वृक्ष हूँ जड़ें मेरी ज़मीन में हैं गढ़ी आँखें मेरी आसमान से लड़ीं स्वाभिमान से लहलहाता हूँ मैं दानदाता कहाता हूँ मैं मैं वृक्ष हूँ मेरा रोम-रोम समर्पित है मानवता के लिए, जो भी अर्जित है दिन-रात लुटाता हूँ मैं
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अपने मुंह मियाँ मिठ्ठू कई लोग अपने आपको आईएएस अपीयर्ड कहते हैं। खुद को भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में बैठने वाला बतलाकर इतराते हैं । आत्म विमुग्धता ,आत्मरति ,आत्मश्लाघा का अतिरेक अपने मुंह मियाँ मिठ्ठू बनना इसी को कहते हैं। अंग्रेजी में नार्सिसिटिक परसनलिटी डिसॉर्डर यही कहलाता है हिंदी में नार्सिसिस्म ,नारसीवाद। अब अपने सिन्हा साहब यशवंत जी को ही लीजिये इतिहास में अपना नाम दर्ज़ करवा लिया -राष्ट्रपति का चुनाव लड़कर हालाकि वह भाजपा द्वारा ठुकराए गए थे नकार दिए गए थे। विपक्ष उम्मीदवारी में भी तू नहीं ,तू भी नहीं ,तू ही सही वाली गत बनी थी ज़नाब की। अगला इसी में खुश क्या बहुत खुश था। राष्ट्रपति चुनाव में बढ़िया पटखनी खाने के बाद भी आत्ममोह ,आत्मप्रशंशा में डूबे हुए हैं अपने होनहार सिन्हा साहब। कबीरा खडा़ बाज़ार में
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तेरी ख़ामोशियों के पीछे कौन है मुगालते में था।
इल्मो हुनर शराफत,वफ़ादारी मुगालते में था।
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क्यों 'साम्राज्यवादी/सांप्रदायिक' ताकतों के हवाले जनता को कर रखा है? विजय राजबली माथुर तुलसी दास का प्रादुर्भाव जब हुआ तब देश में पहले 'सलीम' का अकबर के विरुद्ध विद्रोह हो चुका था फिर जहांगीर के विरुद्ध 'खुर्रम' का विद्रोह भी हुआ था। 'साहित्य समाज का दर्पण होता है' अर्थात अपने ग्रंथ 'रामचरित मानस' के माध्यम से तुलसी दास ने राम और भरत के राजसत्ता के प्रति त्याग भावना पर बल देकर जनता का आव्हान किया है कि ऐसे विलासी शासन को उखाड़ फेंके। तुलसी दास ने रावण के विस्तार वादी -साम्राज्यवादी शासन तंत्र को जन-नायक राम द्वारा परास्त कर लोक शासन की स्थापना का चित्रण किया है। यही वजह थी कि 'काशी' के पंडों ने उनकी 'संस्कृत' में लिखी पाण्डुलिपियों को जला डाला तब उनको भाग कर अयोध्या में 'मस्जिद' में शरण लेनी पड़ी और फिर उनको ग्रंथ भी लोकभाषा 'अवधी' में लिखना पड़ा । ( कैसे रहे ? खुद तुलसी के शब्दों में ‘ माँग के खईबो , मसीद में सोईबो ‘ । मसीद यानी मस्जिद । कहा जाता है)-- साम्यवाद (Communism)
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आगरा - संदली मस्जिद और कांधारी बेगम का मकबरा
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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ
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दैनिक प्रयोग के लिए अक्सर बोले जाने वाले इंग्लिश वाक्य
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अब दिल तो दिल है भई ! दूसरा दिन स्त्रियाँ मूरत रूप में ढल तो जाती है पर ह्रदय से पत्थर नहीं बन पाती। पत्थर की मूरतों में भी नन्हा सा दिल धड़कता है। अगर यह अपनी हद में रह कर धड़कता रहे तो ठीक है , नहीं तो बागी , कुलटा और भी न जाने क्या क्या सुनना पड़ेगा। मतलब खुद को मार दो। इसको अगर धड़कना है ,तो सिर्फ स्पन्दित होने के लिए , एक मिनिट में सिर्फ ७२ बार ही स्पंदन की ही मंजूरी है। नयी दुनिया+
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कल रविवार को हमारे किसी चर्चाकार द्वारा
चर्चा मंच का 4500वाँ अंक प्रकाशित होगा।
आज के लिए बस इतना ही...!
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शुभ प्रभात।।।।
जवाब देंहटाएंसुख का है क्या साधन जो अब पास नहीं,
जीवन में फिर भी पहले-सा हास नहीं।
- आदरणीय ओंकार सिंह विवेक जी की उक्त पंक्तियां असर कर गई।।।। बेहतरीन।।।।
वाह वाह!सार्थक विषयों पर चर्चा का सुंदर आयोजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुति, मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन और प्रस्तुति मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का श्रमसाध्य संकलन ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु हृदय से आभार सर।
सभी को बधाई।
सादर
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा,मेरा मार्गदर्शक बनकर रहेगा
धन्यवाद सर
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा मेरा मार्गदर्शक बनकर रहेगा
धन्यवाद सर
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा मेरा मार्गदर्शक बनकर रहेगा
उत्कृष्ट लिंको से सजी बृहद एवं रोचक चर्चा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका ।