सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीय गगन शर्मा जी की रचना से)
*आम अवाम की लापरवाही, धैर्यहीनता, अज्ञानता, अधकचरी जानकारी का लाभ उठा अपना उल्लू सीधा करना आज का चलन बन गया है !"
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आपने बिल्कुल सही कहा गगन जी, सोशल मीडिया पर हमें बहुत ही ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
सोशल मीडिया जहां एक ओर हमें देश दुनिया से जोड़ रहा है, हमारे ज्ञान को बढ़ावा दे रहा है,हमें जागरूक कर रहा है वहीं दूसरी ओर ये हमें भटका भी रहा है, हमें भ्रमित भी कर रहा है और यकीनन ये हमारी युवा पीढ़ी को दिशाहीन भी कर रहा है।
हर चीज का एक उज्जवल पक्ष होता है और एक अन्धकार पक्ष, ये हम पर निर्भर करता है कि हम किसका चयन करते हैं।
ये तो सर्वदा सच ही है कि -"अति सर्वत्र वर्जयेत्"
इस सत्य को आत्मसात करते हुए
चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर.....
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कहीं बारिश से उमड़े है ताल-तलाब और कहीं गर्मी ने जीना किया दुसवार
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सोशल मीडिया की रेशमी अंधियारे पक्ष वाली सुरंगतमाम हिदायतों, निर्देशों, चेतावनियों, समझाईशों के बावजूद हम सोशल मीडिया की रेशमी अंधियारे पक्ष वाली सुरंग की अंतहीन गहराइयों में बिना अपने विवेक का सहारा लिए धंसते चले जा रहे हैं ! सम्मोहित अवस्था में हमें अच्छे-बुरे, सही-गलत का भान ही नहीं रह गया है ! उस पर मिली किसी भी उल-जलूल, चकित करने वाली खबर या बात को हम बिना जांचे-परखे आगे धकेलने को आतुर******हल्की सी आहट तो आ रही है कहीं से...शायद आपके गीत ही भिगो रहें हैं हमें
दस्तक दे रहा दहलीज पर कोई
चलूँ उठ के देखूँ कौन है
कोई नहीं द्वार पर
फिर ये धीमी-धीमी मधुर थाप कैसी?
चहुँ ओर एक भीना सौरभ
दरख्त भी कुछ मदमाये से
पत्तों की सरसराहट
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विश्वास ही तो जीवन आधार है,,,
बालों को सहलाते हुए सावित्री बुआ की उँगलियाँ सर पर कथा लिखने लगीं। अर्द्ध-विराम तो कहीं पूर्ण-विराम और कहीं प्प्रश्न-चिह्न पर ठहर जातीं। विश्वास सेतु टूटने पर शब्द सांसों के भँवर में डूबते परंतु उनमें संवेदना हिलकोरे मारती दिखी।
बाल और न उलझें इस पर राधिका ने एक नज़र सावित्री बुआ पर डालते हुए कहा-
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चाहत का एक कंकर भी स्वप्न बुनने के लिए काफी है...
टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ा मन
बुत इक अद्भुत बना लिया,
कभी सोया जागा कभी
कुछ स्वप्नों से सजा लिया !
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श्रम का उचित प्रबंधन हो जब
यौवन मूल्य-संस्कृति से जुड़े
हो उत्थान सभी ग्रामों का
ये हवा गाँव की ओर मुड़े
किंचित मात्र क्लेश दे विचलन
रोक ग्राम से आज पलायन
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मोह भी तो एक भ्रमजाल ही तो है जिसमें से निकलना बहुत मुश्किल,,,,,,
फ़िक्र के पंछियों को उड़ाया बहुत,
उसने अपने सुख़न को सजाया बहुत।
हौसले में न आई ज़रा भी कमी,
मुश्किलों ने हमें आज़माया बहुत।
उसने रिश्तों का रक्खा नहीं कुछ भरम,
हमने अपनी तरफ़ से निभाया बहुत।
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कहना मुश्किल है... प्रश्न गम्भीर है...
******चलते चलते ज्योति जी के लाजवाब रेसिपी का स्वाद लेते चलें...कम तेल में बनाएं चटपटे पोहा रिंग्स
दोस्तों, पोहे की कई रेसिपी आपने खाई होगी लेकिन क्या पोहा रिंग्स कभी खाई है? पोहा रिंग्स (poha rings) बिल्कुल कम तेल में बनने के कारण ये हेल्दी होती है...दिखने में सुंदर है और स्वादिष्ट तो है ही! तो आइए, बनाते है चटपटे पोहा रिंग्स...
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आज का सफर यहीं तक, अब आज्ञा दे
आपका दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर और सामयिक चर्चा प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी!
बहुत ही सारगर्भित विषय चुने गए हैं आज की चर्चा के लिए, हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🌹🌹🙏🙏
जवाब देंहटाएंखूबसूरत संकलन...डिजिटल इण्डिया को स्थान देने के लिये हृदय से धन्यवाद...🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! विभिन्न समसामयिक विषयों को संजोया है आपने कामिनी जी आज की चर्चा में, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति, हर पोस्ट के साथ आपकी सरस टिप्पणियों ने उसे और भी सरस बना दिया कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सभी सामग्री बहुत आकर्षक व पठनीय।
मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हृदय से आभार ।
सादर सस्नेह।
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओ से सज्जित चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार स्थान देने हेतु।
सादर
आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया आभार एवं नमन🙏
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