मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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आख़िरी मौक़ा
कभी कुछ नहीं बोला,
जहाँ बोलना चाहिए था,
वहाँ भी वह चुप रहा.
कई बार उसे लगा
कि वह बोलने से ख़ुद को
रोक नहीं पाएगा,
पर उसने अपनी हथेली
अपने मुँह पर रख ली.
कविताएँ
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सावन के गीतों ने माहौल सजाया
हरियाला सावन आया ,
फिज़ा में हरितमा साथ लाया
बाग -बगीचे हरे हुए ,
चहुं ओर हरा रंग बिखरा पाया
काले घने मेघ छाए ,
धरती ने शीतल जल है पाया
पीपल की डार पर पड़े झूले ,
सावन के गीतों ने माहौल सजाया
Roshi
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समय बना अंजान
समय बना अंजान तमाशा देखेगा ।
बन कर के नादान तमाशा देखेगा ॥
चुंधियाएगी आँख ज़माने की चकमक से ।
लगना न कुछ हाथ किसी भी बकझक से ॥
चुपके चुपके चलके पीछे खड़ा हुआ,
खोले दोनों कान तमाशा देखेगा ॥
जिज्ञासा की जिज्ञासा
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प्रकृति का गीत
मधुर धुन पक्षियों की
जब भी कानों में पड़ती
मन में मिठास घुलती मधुर स्वरों की
मन नर्तन करता मयूर सा |
जैसे ही भोर होती
कलरव उनका सुनाई देता अम्बर में
Akanksha -asha.blog spot.com
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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ.मक्खन मुरादाबादी के आठ दोहे
अब सत्ता को कोसते,स्वयं भटककर लीक।।
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सत्ता जब-जब पास थी,जिनके भी थे ठाठ।
खिसकी तो भाए उन्हें, मन्दिर पूजा पाठ।।
साहित्यिक मुरादाबाद
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लघुकथा- ब्लैकमेल
''क्या हुआ सुमन, तू इतनी परेशान क्यों दिख रही है?" हरदम मुस्कुराती रहने वाली सुमन को परेशान देखकर उसकी सहेली शिल्पा ने पूछा।
''कुछ नहीं, ऐसे ही सिर भारी लग रहा था।" बात को टालने के लिए सुमन ने कहा।
''हम बचपन की सहेलियां है। मैं तेरे चेहरे से तेरे मन की बात जान जाती हूं। जरूर कोई गंभीर बात है। क्या तू मुझे अपना नहीं मानती जो अब मुझ से बातें छुपाने लगी है।''
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल
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सुनो जिंदगी
सुनो ज़िन्दगी !!
तेरी आवाज़ तो ......
यूँ ही, कम पड़ती थी कानों में
अब तेरे साए" भी दूर हो गए
इनकी तलाश में
बैठी हुई
एक बेनूर से
सपनों की किरचे
संभाले हुए ..
कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **
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इटली की वाईन संस्कृति
खैर, इस आलेख में भारत की बात कम है, बल्कि इटली तथा दक्षिण यूरोप की वाईन पीने की संस्कृति की बात है। जो न कह सके --
वो गंध अनछुई सी
ये कुछ
अपना सा है
बहुत सा तुमसा
बेशक बिखरा सा है
कुछ रंगों सा
बेतरतीब
लेकिन अनछुआ।
तुम्हें देना चाहता हूँ
पुरवाई सन्दीप कुमार शर्मा
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पैशन फ़्रूट के पौधे
रात्रि भ्रमण के वक्त हवा के साथ हल्की फुहार बरस रही थी, चेहरे को उसका शीतल स्पर्श भला लग रहा था। आज एक बाल फ़िल्म देखी, “मैं कलाम हूँ" राजस्थान के एक गाँव में फ़िल्मायी गयी है। एक बालक के संघर्ष की कहानी, अब्दुल कलाम आज़ाद से प्रेरित होकर अपना नाम जिसने कलाम रख लिया था।
एक जीवन एक कहानी
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ग़ज़ल इस बनारस का हरेक रंग निराला है अभी
इस बनारस का हरेक रंग निराला है अभी
सुबहे काशी भी है, गंगा भी, शिवाला है अभी
जिन्दगी पाँव का घूँघरू है ये टूटे न कभी
कोई महफ़िल में तुझे चाहने वाला है अभी
छान्दसिक अनुगायन
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तन मन से अखण्ड भारत
मेरी कलम है घायल
जैसे वैश्या के पैरों में पायल
घुटन महसूस होती है
तड़प तड़प कर कट रहा जीवन
शांति की बात और शीतल पवन
बहुते शर्म आती है
भारत माता टुकड़े टुकड़ों में बट जाती है
राष्ट्रचिंतक
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शिव समर्पित तन हो मेरा (कविता )
पतवार तू चलाता चला चल।
उठती लहरों से डरो मत
बाजुओं में भरो हिम्मत।
उत्साह भर नाविक बढ़ो,
पास देखोगे किनारा।
बढ़ चलो...
marmagya.net
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काश वो दौर एक बार फिर लौट आए!
आज अतीत के पन्नों से!
मुट्ठी में रेत की मानिंद वक्त गुजर गया,
देखते ही देखते मौसम बदल गया!
एक हमीं वक्त के साथ न चल सके,
बाकी जमाना कितना आगे निगल गया!
(अपने लिए ये पंक्तियां मैंने तकरीबन 12 साल पहले 9 अप्रैल 2010 को ही लिख दीं थी।)
वोकल बाबा
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हरियाली अमावस्या और पौधरोपण आज सुबह-सुबह दरवाजे के घंटी बजी तो देखा कि हमारे पड़ोस की बिल्डिंग में रहने वाली एक महिला खड़ी थी। उसे देखकर मैंने उसे बैठने को कहा तो वे कहने लगी कि वह नहा-धोकर सीधे हमारे घर आयी है, फुर्सत में कभी बैठेगी, अभी उसे पूजा करनी है और हरियाली अमावस्या होने के कारण उसे घर में लगाने लिए एक तुलसी का पौधा चाहिए, जो वह मांगने आयी है। उसकी बातें सुनकर मुझे आश्चर्य के साथ में खुशी हुई कि चलिए इसी बहाने वह कम से कम पर्यावरण के प्रति जागरूक हुई हैं। क्योँकि मैंने उन्हें कभी कोई पेड़-पौधा लगाते कभी नहीं देखा, उसे तो हमेशा मैं हमारे लगाए पेड़-पौधों में लगे फूल-पत्ती तोड़ते जरूर देखते आयी हूँ।
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अमित खान का नवीन उपन्यास
अगस्त में होगा रिलीज
आधुनिक हिंदी अपराध साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर अमित खान (Amit Khan) की नवीन पुस्तक ‘नायिका’ (Nayika) जल्द ही रिलीज होगी। 'नायिका' एक थ्रिलर उपन्यास है जो कि हिन्द पॉकेट बुक्स (Hind Pocket Books) द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है और यह उपन्यास अगस्त 20, 2022 से पाठकों के लिए उपलब्ध रहेगा।
एक बुक जर्नल
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गीतिका
जब भाव शुद्ध मति भरे ।
चिर बुद्धि शुभ्र ही धरे।।
मन में सदा उजास हो।
परिणाम हो सभी खरे।।
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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जाग कर देखें जरा
कैद पाखी क्यों रहे
जब आसमां उड़ने को है,
सर्द आहें क्यों भरे
नव गीत जब रचने को है !
मन पाए विश्राम जहाँ
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Ghazal: जहाँ के दर्द में डूबी है शायरी अपनी वो जिसकी याद में कटती है ज़िन्दगी अपनी
उसी के साथ में शामिल है हर खुशी अपनी
वो लिखना चाहें तो लिक्खे तेरी अदाओं पे
जहाँ के दर्द में डूबी है शायरी अपनी
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दिल तो दर्पण है टूट जाएगा
ग़ज़ल -- ओंकार सिंह विवेक
संग नफ़रत के सह न पाएगा,
दिल तो दर्पण है टूट जाएगा।
टूटकर मिलना आपका हमसे,
वक़्त-ए-रुख़्सत बहुत रुलाएगा।
मेरा सृजन
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश केंद्रीय संघर्ष समिति की कमजोरी उजागर
डॉ समसित पत्र (सांसद) ने निम्नलिखित प्रश्न पूछे:
क्या कानून और न्याय मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि:
(क) पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत में न्यायालयों के लिए स्थापित नई न्यायपीठों का विवरण;
(बी) वर्तमान में सरकार के पास लंबित नई पीठों की स्थापना के प्रस्ताव: और
(ग) भारत में एक न्यायालय के लिए एक नई पीठ स्थापित करने की प्रक्रिया?
कानूनी ज्ञान
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गीत "फैशन हुआ पुराना"
तुकबन्दी औ’ गेय पदों का,
कुछ कहते हैं गया जमाना।
गीत-छन्द लिखने का फैशन,
कुछ कहते हैं हुआ पुराना।
जिसमें लय-गति-यति होती है,
परिभाषा ये बतलाती है।
याद शीघ्र जो हो जाती है,
वो ही कविता कहलाती है।
अपनी कमजोरी की खातिर,
कब तक तर्क-कुतर्क करोगे?
सूर-कबीर और तुलसी को
किस श्रेणी में आप धरोगे?
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आलेख "छन्द परिचय" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
यदि गद्य का नियम व्याकरण है तो निश्चितरूप से काव्य का आधारभूत नियम छन्द ही है।
शब्दों को गेयता के अनुसार सही स्थान पर रखने से कविता बनती है। अर्थात् जिसे स्वर भरकर गाया जा सके वो काव्य कहलाता है। इसीलिए काव्य गद्य की अपेक्षा जल्दी कण्ठस्थ हो जाता है।
गद्य में जिस बात को बड़ा सा आलेख लिखकर कहा जाता है, पद्य में उसी बात को कुछ पंक्तियों में सरलता के साथ कह दिया जाता है। यही तो पद्य की विशेषता होती है।
काव्य में गीत, ग़ज़ल, आदि ऐसी विधाएँ हैं। जिनमें गति-यति, तुक और लय का ध्यान रखना जरूरी होता है। लेकिन दोहा-चौपाई, रोला आदि मात्रिक छन्द हैं। जिनमें मात्राओं के साथ-साथ गणों का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है। तभी इन छन्दों में गेयता आती है।
उच्चारण
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आज के लिए बस इतना ही...!
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जी सुप्रभात शास्त्री जी..। आभार आपका....। मेरी रचना का स्थान देने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह!बहुत ही सुंदर और सार्थक चर्चा।मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए ह्रदय से आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात सर। सुंदर, सार्थक और ज्ञानवर्धक चर्चा। चर्चा में मुझे भी शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार। आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। आपका बहुत आभार मेरे ब्लॉग इस प्रतिष्ठित चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए🙏❤️🌻
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात शास्त्री जी, सुंदर चर्चा, वेस्ट यू पी हाई कोर्ट खंडपीठ मुद्दे की मेरी पोस्ट को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंरूपचन्द्र जी, इटली की वाईन संस्कृति के बारे में मेरे आलेख को चर्चामंच में जगह देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! विविध विषयों पर सराहनीय रचनाओं के सूत्रों का सुंदर संयोजन, आभार!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर,सराहनीय श्रमसाध्य संकलन ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं।
आज की इस चर्चा में सभी रचनायें विशिष्ट हैं. आदरणीय शास्त्री जी को हार्दिक आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंशानदार , साहित्यिक मुरादाबाद में प्रस्तुत मक्खन मुरादाबादी के दोहों का लिंक यहां साझा करने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंSahityikmoradabad.blogspot.com
वृहद चर्चा, विभिन्नता समेटे शानदार लिंक।
जवाब देंहटाएंसभी सामग्री बहुत आकर्षक और पठनीय।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर।