मित्रों! बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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गुरु पूर्णिमा पूजन विधि एवं महत्व
MAN SE- Nitu Thakur--
गीत "अंजाना ये गाँव है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अंजाना है साथी अपना, अंजाना ये गाँव है।
अपने इस छोटे से घर में, सिसक रही अब छाँव है।।
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साजन मुझको मिला सलोना,
फिर भी सूना सा मन है,
याद आ रहा रह-रह करके,
वही पुराना आँगन है,
अम्मा-बाबुल के दुलार के, सूख गया पनियाँव है।
अपने इस छोटे से घर में, सिसक रही अब छाँव है।।
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स्वर की शहनाई से निकले पद्मश्री शरद जोशी के जीवन-स्वर
पद्मश्री शरद जोशी व्यंग्यकार से पहले एक सहज-सरल, स्नेह-संवलित, आत्मीय व्यक्तित्व की पराकाष्ठा थे। अस्सी के दशक में उन्हे पहली बार मुंबई; तब के बम्बई के पेडर रोड स्थित सोफिया महाविद्यालय के सभागार के काव्य-मंच पर देखा और सुना। मंच कवियों का था- भवानीप्रसाद मिश्र, धर्मवीर भारती जैसे दिग्गज कवियों के मंच पर एक मात्र गद्यकार थे - शरद जोशी। शरद जी के गद्य श्रवण का यह पहला मौका था जहॉं मैने साक्षात देखा, सुना और महसूस किया कि कवियों के मंच पर गद्यकार छा गया था। हंसते-हॅंसते लोगो के गाल दुखने लगे और तालियॉ पीटते पीटते हाथ। इसी से शरद जी के संदर्भ मे एक कहावत ये भी बनी कि ‘मंच कवियों का बाजी-गद्यकार की।‘ अभिप्राय डॉ. शशि मिश्रा
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खतरनाक रूप लेता अतिवाद (आतंकवाद ) संजय गुप्त दैनिक जागरण १० जुलाई २०२२ वृहत्तर भारतधर्मी समाज की संवेदनाओं को स्वर देता है
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१-भरे दो नैन
तेरा उत्साह देख
बह निकले
२- मन ने सोचा
नृत्य तेरा देख के
है तू गुणी
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उन्हें कमरे में बन्द कर गीत लिख लिखवाया
हजारों युवक-युवतियों के लिए श्री बालकवि बैरागी ‘प्रातः स्मरणीय’ हो गए हैं। भारत में चलनेवाले कई शिविरों में जो नौजवान भाग लेते हैं, वे प्रतिदिन सुबह 4.30 बजे जागकर 4.55 बजे एकत्रित हो जाते हैं। गर्मी के दिनों में इससे जल्दी भी एकत्रित हो सकते हैं। इस समय उनका मात्र तीन मिनट का कार्यक्रम रहता है। सामूहिक स्वरों में गीत गाते हैं ‘नवजवान आओ रे, नवजवान गाओ रे’ इस गाने के साथ बिस्तर छूट जाता है, और जोशीला दिन शुरु हो जाता है। गीत बनाया श्री बालकवि बैरागी ने।
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चलो , कहीं निकल चलें चलो, कहीं निकल चलें ! जल-थल से अंबर से मन का संवाद चले तरुओँ की पाँत जहाँ नीले आकाश तले बँध कर रहें न इन कमरों-के घेरों में , दरवाज़े खोलें , चलें खुले आसमान तले! शाला के बाहर जीवन की कार्यशाला है , खुली सभी कक्षाएँ नहीं कहीं ताला है
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परेशानी का कारण बनता मोबाइल : 2200वीं पोस्ट
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(कविता ) राजपक्ष को समझ न आई जब 'राजधर्म' की बात
राजपक्ष के पक्षपात से पब्लिक हुई नाराज ,
जिसने उसको माना था कभी देश का सरताज़ ।
जिस जनता ने कभी बिठाया था उसे पलकों पर ,
आज उसी से क्रुद्ध होकर वह उतरी सड़कों पर ।
अनसुनी की सदा ही उसने जनता की आवाज़
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रात भर बरसा है
मूसलाधार पानी ।
बादलों के मन की
किसी ने न जानी ।
और इधर धरा पर
देखो दूर एक पंछी
जल प्रपात समझ
सबसे ऊंची जगह
ढूंढ ध्यानावस्थित
बैठा है अविचल । नमस्ते namaste
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देश का अगला राष्ट्रपति, कौन? हमारा बुद्धिजीवी मीडिया यहीं पर नही रुकता। विष्लेशण की स्वतंत्रता का सदुपयोग करते हुये, हमारा मीडिया अभी तक के राष्ट्रपतियों को उनके जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भी वर्गीकृत करते हुये जनता के सामने हमारे पूर्व राष्ट्रपतियों की एक नयी तस्वीर पेश करता है
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सराहनीय सृजन बहुत-बहुत आभार जिज्ञासा जी :)
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नागाओं का रहस्य- अमीश त्रिपाठी मूल रूप में अंग्रेजी में लिखा और उसका हिंदी में अनुवाद होने के कारण कई जगह आपको कुछ नए शब्दों का सामना करना पड़ सकता है। कुछ जगहों पर आपको भाषा थोड़ी सी असहज लग सकती है जिसे खैर..अनुवाद होने के कारण आसानी से नज़रंदाज़ कर उपन्यास का पूरा आनंद लिया जा सकता है। कम शब्दों में अगर कहें तो...आपके कीमती समय और पैसे की पूरी-पूरी वसूली। हँसते रहो
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हांगकांग में चीन की बढ़ती दमन-नीति
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आज के लिए बस इतना ही...!
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नमस्कार, शास्त्री जी । गुरु पूर्णिमा पर सादर अभिवादन ।। आज की चर्चा में विविधता का बोलबाला है । समाचार और साहित्य का रोचक मेल । बरसते पानी को चर्चा का हिस्सा बनाने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय और पठनीय अंक। हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी। नमन और वंदन।
जवाब देंहटाएंमेरी कहानी 'मुझे दहेज चाहिए' को इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी! स्वास्थ्य में कुछ प्रतिकूलता के चलते विलम्ब से उपस्थित हो सका हूँ, तदर्थ क्षमा चाहता हूँ। अन्य साथी रचनाकारों की रचनाएँ भी अभी नहीं पढ़ सका हूँ। पढ़ कर प्रतिक्रिया दे सकूँगा। सभी को सादर नमस्कार!
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