सादर अभिवादन।
मंगलवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीया दीपिका रानी जी की रचना 'नदी 'से -
संवरती है नदी।
चांद को देखकर निखरती
तारों की छांव में बहती नदी,
खुद से बतिया लेती है।
जब उठती हैं दिल में हिलोरें
तो लाड़ से किनारों को चूम लेती है।
भले खामोश हो शहर
उफनती है नदी।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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"धरा के रंग": गीत "संसार सुहाना लगता है"
यदि अपने घर व्यंजन हैं, तो बाहर घी की थाली है,
भिक्षा भी मिलनी मुश्किल, यदि अपनी झोली खाली है,
गूढ़ वचन भी निर्धन का, जग को बचकाना लगता है।
बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।।
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मचलती है नदी
छुई मुई सी, सकुचाई सी
दुनिया के रंगों से भरमाई सी
छुओ तो चिहुंकती है
बेबात खिलखिलाती है
नया ख्वाब आंखों में लिए
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एक बात भूली बिसरी सी
एक स्वपन चिर काल पुराना,
एक तंतु जो जोड़े तुझ से
मधुरिम स्मृति की बहती धारा !
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आह! काले-भूरे बदरा नभ से
तुम कैसा अमृत बरसाते हो?
बूंद-बूंद, बरस-बरस धरा को
दर्प के सम चमकाते हो।।
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घूमता रहा
सूरज निशाचर
भोर में लौटा।
4.
हाल पूछता
खिड़की से झाँकता,
भोर में सूर्य।
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झाग हटा हल्दी डाल, तब ही दाल उबाल।
गठिया पथरी होय कम, दुपहर खाए दाल।।1।।
सुख
मोह सरिस कोइ शत्रु नहि, काम सरिस नहि रोग।
क्रोध सरिस पावक नहीं,ज्ञान सरिस सुख भोग।।2।।
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आपके फ़ोटों
आपको ना मिलें
दु:ख होता है
वैसे ही जैसे
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संघर्ष भरे जीवन में
आगे बढ़ने के लिए
किसी भी अहम पड़ाव पर
पहुँचने के लिए
कितनी मोड़ भरी राहें
पार करनी होती हैं |
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उमर जीतनी भी हो गर बच्चा बनने का मौका मिले तो कभी नहीं छोड़ना चाहिए और ऐसी खुराफातें करने से हम कब पीछे हटने वाले थे | जमाने से ट्रैम्पोलिन पर दुनियां जहान के लोगों को कूदते फांदते और करतब करते देख देख मन में वो सब तो बहुत बार कर चुकी थी असलियत में करने का मौका अब मिला |
वैसे तो करने के लिए बहुत कुछ सोचा था लेकिन टिकट खरीदते ही उसने पहले चेतावनी यही दी कि जो स्टंट नहीं आते तो मत कीजियेगा | बस इसी के चक्कर में थोड़ा लिहाज कर लिया वरना अरमान तो बहुत कुछ करने के थे | शुरुआत तो दो चार जंप के बाद गिर जाने से हुयी लेकिन एक बार रिदम बन गया तो फिर तो कहना ही क्या |
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गाय एक पालतू प्राणी है। गाय के चार पैर होते हैं। गाय भूरी, सफेद, चितकबरे रंगों में पाई जाती है। गाय का दूध शरीर के लिए लाभदायक होता है। गाय के दो कान और एक पूँछ होती है। पढ़ने लिखने में बहुत होशियार नही थे, इसलिए ढंग से याद नही लेकिन कुछ इस तरह का निबंध गाय के ऊपर पढ़ा और लिखा था।
जनसंख्या विस्फोट के साथ दूध की मांग बढ़ी तो लोगों ने गाय को छोड़कर भैंस पालना शुरु कर दिया। गाय कम दूध देती है लेकिन लात बहुत मारती है। हमारे गांव के तेवारी तो रात के दो बजे गाय के खूंटा तोड़ाकर भागने पर उसे ढूंढने निकल जाते थे लेकिन गाय मिलने पर भी उसे मारते नही थे क्योंकि गाय पूजनीय है।
जनसंख्या विस्फोट के साथ दूध की मांग बढ़ी तो लोगों ने गाय को छोड़कर भैंस पालना शुरु कर दिया। गाय कम दूध देती है लेकिन लात बहुत मारती है। हमारे गांव के तेवारी तो रात के दो बजे गाय के खूंटा तोड़ाकर भागने पर उसे ढूंढने निकल जाते थे लेकिन गाय मिलने पर भी उसे मारते नही थे क्योंकि गाय पूजनीय है।
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आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंश्रम से की गयी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।
सुप्रभात! सराहनीय रचनाओं की खबर देती सुंदर चर्चा! आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
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