शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "तुकबन्दी से होता वन्दन" (डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
महामान्य का करती आदर
तुकबन्दी से होता वन्दन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
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यूं ही...
कभी यूं ही, दे जाए बहके लम्हें,
उलझे शब्दों के, अनकहे,
खोले, राज सभी, बहके जज्बातों के,
स्वप्निल, सारी रातों के,
नींद चुरा ले,
अपनाए, गैर कहाए!
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जाल में पंछी फँसा ज्यों
भूलता अपना धर्म
रूढ़ियाँ पायल पगों की
कौन समझेगा मर्म
दामिनी गिरती सुखों पर
ले कलुषता के चरण
वृक्ष...।।
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पढ़ना यानी मिलना अपनी रूह से...
कश्मीर क्या है आखिर...कश्मीरी कौन हैं.
जिन कश्मीरी पंडितों के दर्द, तकलीफ को राजनीति ने बेहद
चालाकी से अपने नफे के लिए भरपूर उगाहा उनके दर्द असल में हैं क्या यह किसने पूछा? जिन कश्मीरी मुसलमानों के लिए
नफरत उगाई उनके भीतर जो प्यार था/है, जो अपनापन है उसे किसने देखा?
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एक गीत -शब्द -जल में चाँदनी की छवि शिकारे की
आज भी
यह एक चन्दन
वन कथाओं का
एक अनहद
नाद इसमें
है ऋचाओं का,
शब्द जल में
चाँदनी की
छवि शिकारे की.
बेहतरीन लिंकों से सजी सँवरी सिुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुंदर रचनाओं से परिपूर्ण बेहतरीन अंक ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन, सभी रचनाएं उत्तम , रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
सादर
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ साहब एवं आदरणीय रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंइस मरीज का सदैव उत्साह वर्धन करने के लिए व आशीर्वाद के लिए
आपको व समस्त चर्चामंच को बहुत बहुत आभार !
अंधकार को हर लेते गुरुवर के दोउ हाथ ,
आशीर्वाद मिलता रहे मंच-चर्चा के साथ ||
जय गुरुदेव ! सादर वंदन खूब खूब अभिनन्दन !!