सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी की गीतिका
"नभ पर घटा घिरी है काली" से -
सावन की है छटा निराली
धरती पर पसरी हरियाली
--
तन-मन सबका मोह रही है
नभ पर घटा घिरी है काली
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--
लेकिन ऐसे में विरहिन का
उर-मन्दिर है खाली-खाली
--
प्रजातन्त्र के लोभी भँवरे
उपवन में खा रहे दलाली
मैं ही सही और सभी गलत,
बेवजह फैलाते हो नफरत.
सब कुछ सहते ही रहते हैं वे,
मत रहना पाले ऐसी ग़फ़लत.
बेमानी परिभाषायें गढ़कर
कहते हो यही है महाज्ञान.
क्यों मचा रहे हो घमासान?
इन फासलों को कम किया जा सकता है -
तू याद कर मुझे और मैं तुझे
इस तरह वर्षों साथ जीया जा सकता हैं।
माना कोई जादू - टोना - टोटका नहीं
ज़नाब दिल है , बिन देखें - छुए भी
मोहब्बत किया जा सकता हैं।
मैं चाहूँ बन जाऊँ,
पीपल की पतलइयाँ।
आकर कुछ काल ठहरें,
श्रमित पथिक मोरी छइयाँ ।।
जगह नहीं बची है थमने,
राह भी रोक ली अतिक्रमण ने,
#बारिश का भी इस धरा में बसेरा है,
जिसे ढूंढ रही है अब हर घर आंगन में ।
लगता है
सड़क
सड़क नहीं, नदी है!
जिस पर चलने वाले वाहन,
पानी का सैलाब हैं।
खाटा मधुरा बोर जिमाती
मनड़े नेह जगावे है
कदी कूकती कोयल बोले
कद कागा बोल सुनावे है
ओल्यू मारी साथ सहेली
कोरां हीरा टाँक रही।।
भारत के विभिन्न राज्यों व क्षेत्रों में हिंदी के उच्चारण पर एक लेख में संदर्भ सहित विशेष चर्चा की गई है और सुझाव है कि हालातों को समझते हुए हम लोगों को सही उच्चारण की तरफ प्रेरित करें ,न कि उन पर हँसें।
संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि पुस्तक हिंदी के विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए एक अत्यंत ही उपयोगी दस्तावेज है।
--
वाणभट्ट: फुग्गा
यदि आप गौर कर सकें तो देखेंगे हर आदमी एक गुब्बारे की तरह है. किसी का गुब्बारा औकात से ज़्यादा फूला हुआ है तो किसी का चुचका हुआ. जिन्होंने अपने गुब्बारे में कम हवा भर रखी है उन्हें छोटी-मोटी पिन की चुभन से फ़र्क नहीं पड़ता. जिनके गुब्बारे में हवा ज़्यादा है, वो थोड़ा ऊपर उड़ना पसन्द करते हैं. लेकिन जरा भी पिन छू गयी तो उन्हें फटने में देर नहीं लगती.
आज सुबह से ही दादाजी न जाने किस काम में लगे हैं! न तो मुझे गोद में लिया न ही मुझे प्यार किया ... सोचता हुआ 3 साल का रग्घू अपने दादा जी के सामने जाकर खड़ा हो गया।
दादाजी लैपटॉप पर काम कर रहे थे। इसलिए अपने पोते को सामने खड़ा देख बोले- बेटा अभी जाओ, अभी मैं काम कर रहा हूँ और फिर काम पर लग गए। बच्चा इस व्यवहार के लिये तैयार नहीं था अत: कभी वह अपने दादाजी की ओर देखता तो कभी लैपटॉप की ओर। अचानक उसे न जाने क्या सूझा कि उसने एक हाथ मारकर लैपटॉप बंद कर दिया। दादाजी ज़ोर से चिल्लाए.... ये क्या किया???
--
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुंदर चर्चा। सभी लिंक्स शानदार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन। बहुत बधाई और धन्यवाद अनीता जी। मयंक सर के ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं कर पा रही हूँ क्योंकि गूगल प्रोफ़ाईल में कुछ दिक्कत आ रही है।
जवाब देंहटाएंसादर,
सभी रचनाएं अतुलनीय है महोदया, शुक्रिया मंच पर जगह देने के लिए
जवाब देंहटाएंआपका संकलन हमेशा से उम्दा रहा है ।
जवाब देंहटाएंआभार एवं धन्यवाद ! मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए ।
उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलेख फुग्गा को स्थान देने के लिये हृदय से धन्यवाद...🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंशीर्ष अंश मोहक।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक, पठनीय सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंशीर्ष अंश मोहक।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक, सुंदर पठनीय।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
सादर सस्नेह।
बहुत सुंदर संकलन!. सभी रचनाएँ बहुत अच्छी थी. अनीता जी को ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर इस प्रस्तुति को लाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनिता। सुंदर संकलन, जो हिंदी साहित्य एवं भाषा से आपका लगाव दर्शाता है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनीता मेम ,नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंमेरी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा इस अंक 'सावन की है छटा निराली'(चर्चा अंक -४४९४) पर करने के लिए बहुत धन्यवाद और आभार।
सभी संकलित रचनाएँ बहुत ही उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनायें एवं बधाइयाँ ।
सादर ।
बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं